Lockdown - Hindi Kavita
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HINDI POEMS |
LOCK - DOWN
रोये के हसे समझ नहीं आ रहा ,
छुट्टिया ही चाहते थे जिंदगी में ,
LOCKDOWN के रूप में मिली है ,
फिर भी मजा नहीं आ रहा ,
बेचैन से हो गए है ,सामने वाले मंजर से ,
वक़्त तो बहोत है ,लेकिन कितना ? ये समझ नहीं आ रहा ,
जी रहे है ऐसे तैसे ,भूखे प्यासे कई लोग कही पर ,
उनकी ये हालत देख हमें भी जीना नहीं आ रहा ,
लॉक डाउन तो है ,लेकिन मजा नहीं आ रहा ,
खेल कूद करे ,या कुछ काम ,ये समझ नहीं आ रहा ,
जीना तो सबको है लेकिन इस जीने में मजा नहीं आ रहा ,
जीने और मरने की स्थिति से गुजर रहे है ,
उम्मीदे है की सब ठीक हो जायेगा ,
एक दिन आएगा ऐसा की इंसान इस काल चक्र से बाहर निकल जायेगा ,
उम्मीदे तो है बहोत सारी लेकिन उनमे विश्वास नहीं भा रहा,
विश्वास तो खुद बीमार है इस महामारी से ,उससे भी उठा नहीं जा रहा ,
कहते है चुनौतीया एडवेंचर होती है ,लेकिन ऐसे एडवेंचर है सजा ,
इसमें बिलकुल मजा नहीं आ रहा ,किस कदर ठहरा है ये वक़्त ,ये समझ नहीं आ रहा ,
ढूंढ रहे है भगवान् को लेकिन भगवान् सामने नहीं आ रहा ,
खोई है खुशिया ,खुशिया ढूंढने का भी मजा नहीं आ रहा ,
LOCKDOWN तो है ,मगर लॉक डाउन में मजा नहीं आ रहा !
कितने सपने रूठ रहे है ,अपने ही लोगो को मरता देख अंदर से टूट रहे है |
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