एकांत - हिंदी भयकथा | Privacy - Hindi Horror Story
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लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
एकांत, प्रायव्हसी, अपने पार्टनर के साथ रहने के लिए, प्यार करने के लिए, वक़्त बिताने के लिए। सबको प्रायव्हसी जरुरी है। आज के जमाने में दुनिया नजदीक आ गई है। शहरों की संख्या बढ़ गई है। हर शहर में 20 लाख से 50 लाख लोग रहते है। कुछ शहरों में तो यह संख्या करोडो में है। हर जगह भीड़ ही भीड़।ऐसे भीड़ भरे माहौल में हर कोई प्रायव्हसी पाने के लिए छटपटाता है, मौक़ा ढूंढता है। बनता है। पिकनिक जाने के लिए, भीड़ से दूर जाने के लिए लोग घर से निकलते है।
ऐसा ही एक कपल था। एक शहर में रहता था। शादी होके कुछ ही दिन हुए थे। परिवार की फायनांशियल कंडीशन अच्छी थी। दोनों जॉब करते थे। तनखाह भी अच्छी थी। इसलिए पैसो का सवाल नहीं था। सिर्फ जाना कहा पर और कैसे यही तय नहीं हो पा रहा था। हिलस्टेशन पे, या पिकनिक स्पॉट पे या किसी किलेपर या भगवान् के दर्शन करने ? अकेले ही जाए या दोस्तों के साथ प्लान करे या किसी नए कपल को साथ में ले ?
बहुत डिस्कस करने के बाद ये तय हुआ की भीड़ जमा नहीं करनी है। वैसे भी हम रोज इन सब के साथ रहते है। अभी बोर हो गए है ,प्राइवेसी चाहिए। इसलिए दोनों ही जायेंगे !
क्या होता है ,हम जिस विषय में बार बार सोचते है ,कुछ दिनों में वही घटनाए हमारे साथ घटने लगती है ,चाहे वो सही हो या गलत ,अच्छी हो या बुरी !इसे ही 'आकर्षण का सिद्धांत ' या 'LAW OF ATTRACTION' कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर कहा जाए तो अगर हम किसी रस्ते से गुजरते है ,और मंदिर दिखाई दिया तो आदतन हम भगवान को नमन करते है। लेकिन कई बार दिमाग में अलग अलग विचार आते है और हम भगवन को कोसते है ,ऐसे में सामने मंदिर भी आ जाये तो हम नजर अंदाज करते है ,लेकिन अंतर्मन में ये बात नोट की जाती है।
और जैसे ही हमारे साथ कुछ बुरा होता है ,वो याद उछाल कर ऊपर आती है ,की हमने भगवान को नजरअंदाज किया था इसलिए ऐसा हुआ,तो हम सब काम ,सब इमेरजैंसी छोड़कर उस भगवान के दर्शन करने निकल जाते है। और दर्शन करने पर दिल को सुकून मिलता है।
ऐसेही ही जब हम लोगो के बिच रहते है समाज के बिच रहते है ,सुरक्षित रहते है। लेकिन कई बार हमारे ध्यान में ये बात नहीं आती। उस सेफ सर्कल में हम बोर हो जाते है,छटपटाते है ,और ऐसे में हमारी मनोकामना पूर्ण हुई ,खुले माहौल में साँस लेने का मौका मिला तो जो ख़ुशी मिलती है उसका कोई ठिकाना नहीं होता।
इस कपल का भी कुछ ऐसा ही था कार लेकर निकले थे ,मैडम की इच्छा नहीं थी ,कर लेकर जाने की क्योंकि ,पिक्चर में ,सीरियल में ,हॉरर शोज में दिखाया जाता है की कही सुनसान जगह जाते ही कार बंद हो जाती है ,और आगे की स्टोरी वहीसे शुरू होती है ,इसलिए कार लेकर नहीं जाएंगे !लेकिन साहब का मानना था की घूमने के लिए जाना है प्राइवेसी चाहिए तो कार के बिना मजा नहीं आएगा।
पॉसिबल ही नहीं। दोबारा बहस शुरू हो गयी,प्यार भरी बहस !और तय हुआ की टॉस करेंगे ,जो जीता वही सिकंदर ,और मैडम बेबस हो गयी। साहब और मैडम नए ज़माने की नयी जोड़ी अपनी नयी कार से जो लोन करके ली थी ,उसमे घूमने केलिए निकलना तय हुआ।
कितने दिन जाना है ? कहाँ जाना है ?कुछ भी तय नहीं हुआ था,सात आठ दिन के लिए भी जाते तो छुट्टी मिल सकती थी। तो पहले यहाँसे ,भीड़ से बाहर निकलेंगे, फिर सोचेंगे ,ऐसा तय हुआ। जितना जरुरी सामान था डिकी में रखा। माँ-पिताजीके चरण स्पर्श किये ,और कार निकली।
निकले दोनों ही निकले,एक अज्ञात सफर की ओर ,अकेलेपन की ओर। प्राइवेसी की ओर ,जो उन्हें अपनी ओर खींच रही थी।
अट्रैक्शन 'लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन '
कार शहर से बाहर निकली। एक्सप्रेस हाइवे पर आने के बाद से दिल झूम उठा ,चलो घर से तो निकले!हाइवे पर बाकि गाड़िया स्पीड में भाग रही थी। लेकिन इन्हे कोई जल्दी नहीं थी ,आराम से गाना गुनगुनाते ,सिटी बजाते ,एक दूसरे के हाथ पकड़के कार आराम से चल रही थी। इनकी कम स्पीड से बाकी गाडियोको परेशानी होने लगी।
कुछ लोगो ने गाड़ी में झांककर देखा। नया कपल देखकर कमेंट भी पास किये ,लेकिन इन्हे किसी की परवाह नहीं थी। वो अपनी दुनिया में मस्त थे। साहब ने गाड़ी का डायरेक्शन चेंज किया एक्सप्रेस हाई वे छोड़कर कार एक सुनसान सड़क पर भागने लगी ,कुछ ही दुरी पर घाटी का रास्ता था ,सड़क छोटी थी घुमावदार थी।
आगे बढ़ने से पहले कही रुकेंगे यह सोचकर कार एक छोटे होटल के पास रुक गयी। थोड़ा फ्रेश होकर ,थोड़ी पेट पूजा करके आराम से निकलेंगे। तब तक दोपहर टल गयी थी ,सूरज देवता अपने घर की ओर प्रस्थान करने के मूड में आ गए थे। थोड़ी ही देर में शाम हुई ,माहौल बदल गया जो सब ने महसूस किया।
पर ये दोनों अपनी ही मस्ती में थे। इनको किसी और बात पर ध्यान देना जरूरी नहीं लगा। उनके ध्यान में भी नहीं आया। उस होटल में ज्यादा भीड़ नहीं थी ,पर सब जल्दी में थे। इन दोनों ने आराम से खाना खाया। और साहब काउंटर पर बिल देनेके लिए गए।
काउंटर पर बैठे आदमीने सवाल किया ,"साहब कहा से आ रहे हो ?" साहब ने शहर का नाम बताया।" कहा जा रहे हो? " "पता नहीं। ""क्या साहब आप भी ,आपके साथ लेडीज है ,फिर भी आपको पता नहीं कहा जाना है ?"क्या शादीशुदा है ?""हां एक महीना हुआ शादीको !""फिर ?"'फिर क्या,भीड़ में रहकर दम घुटने लगा था। तो सोचा थोड़ा घूमने जायेंगे तो प्राइवेसी मिलेगी ,कहा जाना है अभी तय नहीं किया ,अभी तय करेंगे "
उस व्यक्ति को साहब की बात ठीक लगी ,"लेकिन साहब शाम ढल चुकी है ,आगे घाट है ,जंगल जैसा रास्ता है ,ऐसे समय में वो रास्ता ज्यादा तर सुनसान होता है ,"ये सब बाते बताते बताते वह व्यक्ति अस्वस्थ हो गया था। परेशान हो गया था ,बताये या न बताए ?"ये बात साहब के ध्यान में आ गयी। उन्होंने पुछा," कुछ प्रॉब्लम है ?"
ऐसा कुछ नहीं ,लेकिन रास्ता डेंजरस है ,आये दिन कुछ न कुछ होते रहता है ,कोई कुछ कहता है ,कोई कुछ कहता है ! "मतलब?" " जाने दो साहब क्यों दिमाग का दही कर रहे हो ?अगर आपको जाना ही है तो जाओ ,वरना यहाँ ठहरने का इंतजाम हो सकता है। "
पर साहब ने उसकी बात का अलग ही मतलब निकाला,,ये हमारी वीडियो बनायेगा और.. नहीं !यहाँ से निकलना ही ठीक रहेगा ,ये होटल सही नहीं है। उन्होंने बिलपे किया ,और वहा से निकले। मैडम ने पुछा ,"क्या हुआ ?'"कुछ नहीं बिजनेस टैक्टिक्स ,और क्या ?आगे घाटी है ,रात होनेवाली है ,वह कुछ न कुछ होते रहता है !जाने दो चलो। " साहब पूरी तरह एक्साइट हो गए थे ,एक तो नयी नयी शादी हुई थी। ऐसे में आदमी अपने आपको प्रूव करने में लगा रहता है ,एक भी मौका नहीं छोड़ता। उन्होंने फुल स्पीड से गाड़ी भगाई।
मैडम हैरान हो गयी ,"क्या हुआ ?जरा आराम से चलाइये !"लेकिन साहब कहा मानने वाले थे?साहब आंधी तूफान की तरह घाटी के रास्ते में घुस गए। कुछ इलाका जंगल जैसा था ,घने घने पेड़ थे ,रास्ता संकरा था ,छोटा था, ट्रैफिक ज्यादा नहीं थी। लेकिन अँधेरे की वजह से और मोड की वजह से रास्ता दिखना मुश्किल हो गया था। वैसे साहब का दिमाग ठिकाने पे आ गया। वो आराम से कार चलने लगे। दिमाग में वही बाते आ रही थी ,जो होटल वालेने बताई थी। कोई कुछ कहता है ,कोई कुछ कहता है ,कोई कुछ कहता है !पागल कही के!नॉनसेंस !
" क्या हुआ ? मैडम ने घबराके पुछा ,क्या बड़बड़ा रहे हो ? ""अरे वो होटल वाला !कह रहा था की अगर जल्दी न हो तो यहाँ रुक जाइये। रात को सफर करना..... ठीक नहीं है।लोग अलग बाते बताते है।
" लेंकिन क्या बाते बताते है ?"क्या बताएँगे ?वही जो हम पिक्चर में देखते है ,सीरियल में देखते है ,एक्सीडेंट ,आत्मा, भूत,पिशाच, दूसरा क्या ?'
"what?"मैडम जोर से चिल्लाई ,"अब तुझे क्या हुआ ?"साहब ने पुछा। "आपने पहले क्यों नहीं बताया ?मुझे डर लगता है। " "अरे क्यों डरती हो ? मै हूँ ना !" "तुम?तुम क्या करोगे ?कोई मंत्र आता है क्या ?" "क्यों ?"
"क्यों ,क्या ?कोई भूत सामने आया और हमने मंत्र पढ़े तो भूत भाग जाते है !'
तुम्हे आते है न ?" "हां ,मैंने तो याद करके रखे है ,कभी भी जरूरत पड सकती है। साहब मन ही मन मुस्कुराए ,'नॉनसेंस '!
इतनी देर में वो बहुत आगे तक निकल आये थे। ठंडी ठंडी हवाए ,सुनसान रास्ता उन्हें आकर्षित कर रहा था। नई नई शादी हुई थी ,गरम जवान खून था ,साहब ने रस्ते के एक साइड में कार रोक दी। कार बंद हो गयी। और कार में ही, दो जिस्म एक जान हो गए !दोनों ने पूरा आनंद उठाया ,दिल भर गया ,खुश हो गया। आँखे बोझल हो गयी थी ,पुरे बदन में मीठा मीठा दर्द उठ रहा था ,'ये दिल मांगे मोर'!थोड़ा और ,थोड़ा और !
आजु बाजु चारो ओर पूरा जंगल ,और उस वीराने में ये दो जिस्म एक जान !उन्हें लग रहा था हम यहाँ अकेले है ,हमे कोई नहीं देख रहा ,लेकिन वो उनका वहम था !
कुछ ही देर में साहब कार से निचे उतरे , पानी की बोतल निकाली,मुँह पानी से धोया ,नजर चारो ओर घूमी, यहाँ कुछ ठीक नहीं है !यहाँ से निकलते है !
साहब झट से कार में बैठे ,कार निकली ,मैडम खुश थी ,उनकी आंखो में चमक थी , जो साहब ने नहीं देखी। साहब के कंधे पर सर रखके मैडम आंखे मूंदकर बैठी थी। घाटी ख़तम हो गयी थी ,लेकिन अभी जंगल बाकी था। साहब ने हसते हुए मैडम से पुछा "क्या, कुछ भूत वगैरह देखा के नहीं ?" जवाब नहीं मिला।" मै क्या पूछ रहा हूँ ,कुछ भूत ,चुड़ैल, पिशाच कुछ देखा के नहीं ? " "हां"! "क्या!" "हां !क्यों आपने नहीं देखा ?" "नहीं !""देखना है ?" और... मैडम खिलखिलाके हसने लगी और... गायब हो गयी।
साहब की बस पैंट गीली होनी बाकी रह गयी। "अरे ! ये कहां गयी ?अगर ये भूत या चुड़ैल थी तो रीटा कहा गई ? और मैंने कुछ देर पहले किस के साथ.... बापरे !वो रीटा थी या कोई चुड़ैल ?"कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
साहब ने कार वापस घुमाई ,और उनकी आवाज चारो और गुंजी "रीटा..... रीटा... "लेकिन शायद देर हो गयी थी ,उनकी रीटा उस 'एकांत ' में खो गयी थी ,उसे ढूंढते भी तो कहाँ ढूंढते ?
साहब का नया सफर शुरू हो चूका था ,अकेले पन की ओर ,अज्ञात की ओर ,रहस्य की ओर....
वो लगभग पागल हो चुके थे ,उन्हें समझ नहीं आ रहा था ,जाए तो जाये कहा... ?
लेखक : योगेश वसंत बोरसे
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