GALAXY :- FLAT NO .47 - HINDI HORROR STORY
HINDI HORROR STORY |
मुंबई का एक उपनगर, मुंबई जिस तरह बढ़ रहा था,उसका इंपैक्ट यहाँ पर भी था। बड़ी बड़ी इमारते यहाँ भी खड़ी हो रही थी। PM साहब की कृपा से नोटबंदी हुई थी। जिसका सीधा असर कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर हुआ। एक बड़ा कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। १० - १० मंजिल के पांच टॉवर जिसमे लक्झरियस फ्लॅट बन रहे थे। खड़े हो रहे थे। जगह बहुत बड़ी थी, बढ़िया थी। कंस्ट्रक्शन कंपनी के पास अच्छा ख़ासा पैसा जमा हुआ था।
एडवांस बुकिंग के पैसो में ही दो टॉवर्स का काम लगभग पूरा हुआ था। तीन टॉवर का काम अभी बाकी था। जो दो टॉवर्स बन गए थे उनका काम पूरा करके, बड़ा फंक्शन आयोजित करके धमाका करना जिससे कंपनी रातोरात टॉप पर पोहोचने वाली थी। उसी के बारे में डिस्कस चल रहा था।
एडवांस बुकिंग के पैसो में ही दो टॉवर्स का काम लगभग पूरा हुआ था। तीन टॉवर का काम अभी बाकी था। जो दो टॉवर्स बन गए थे उनका काम पूरा करके, बड़ा फंक्शन आयोजित करके धमाका करना जिससे कंपनी रातोरात टॉप पर पोहोचने वाली थी। उसी के बारे में डिस्कस चल रहा था।
हर मंजिल पर दो फ्लॅट,मतलब एक टॉवर में २० फ्लॅट थे। पांच टॉवर में टोटल १०० फ्लॅट थे। पर जब नोटबंदी हुई तो फ्लॅट ओनर हैरान,परेशान हो गए। जिनका पेमेंट भरना बाकि था,वो कहा से भरे ? जितना पैसा था वो पहले ही बुकिंग के टाइम जमा कर दिया था। उसमे रियल इस्टेट की,फ्लॅटस की कीमते गिरने वाली है,मकान,घर,सस्ते होने वाले है ऐसी न्यूज़,अफ़वाए,खबरे या तो फ़ैल रही थी,या फैलाई जा रही थी। जिन्होंने बुकिंग किया था,वो सही किया की गलत इसी उलझन में पड़ गए थे। और ऐसे में एक दिन हर फ्लॅट धारक के पास कंपनी का इन्विटेशन कार्ड पोहोचा।
कंपनी ने सब के लिए गेट - टू गेदर रखा था। उसमे पझेशन कब लेना है वो डिसाइड करने की पूरी सहूलियत फ्लॅट- धारको को दी गई थी। इसमें कंपनी का क्या व्हीजन था,किसी के समझ में नहीं आया था। लेकिन सबको ख़ुशी हुई। अपनी मिल्कियत देखने का मौक़ा और सब को मिलने का मौका, इन बातो से सभी खुश थे। आखिर फंक्शन का दिन आया, हर कोई सज धज के फंक्शन में जाने के लिए तैयार हुआ। शाम को पांच बजे से रात तक गेट - टुगेदर का आयोजन किया गया था। जिसमे एंटरटेनिंग प्रोग्राम, खाना और बाद में फ्लॅट देखने का प्रोग्राम रखा गया था। जाते जाते हर किसी को अपनी राय सजेशन बॉक्स में डालनी थी। देखते देखते शाम हो गयी। और सब लोग फंक्शन में पोहोच गए। कंपनी ने बहुत पैसा खर्च किया था।
लाइटिंग और स्वागत के लिए शहनाई की धुन बज रही थी। हमने यहापर फ्लॅट लिया इसका गर्व महसूस हो ऐसहि आयोजन था,जो देखते ही बनता था। ठंडी के दिन थे, लेकिन ठंडी ज्यादा नहीं थी। मौसम सुहाना था। सब लोग खुश थे। जान पहचान हुई, खाना पीना हुआ, अब सब उत्सुक थे अपना घर देखने के लिए, अपना खुद का घर देखने के लिए बेताब थे। जिनका काम बाकि था ,वो कुछ बोल नहीं पाए ,क्योंकि पैसा भी देना बाकि था, कंपनी अपनी और से जितना हो सके उतना कर रही थी। तो जिनका काम बाकि था ,वो दूसरे फ्लैट देखके अपने सपने सजाने वाले थे. . धीरे -धीरे हर कोई अपने फ्लैट की और टावर की और बढ़ा. स्टाफ बहुत था, लेकिन फिर भी सबको पर्सनली अटेंड करना पॉसिबल नहीं था. और स्टाफ की मेंन प्रायोरिटी पहले दो टावर थे ,जिनका काम पूरा हो चूका था।उन्हें पजेशन देकर उनसे पेमेंट निकालना आसान था.
इस वजह से स्टाफ पहले दो टावर में डिव्हाइड हो गया। और जो रह गए, वो बाकि तीन टावर में डिव्हाइड हो गए। ये बात कुछ लोगो को हजम नहीं हुई,कंप्लेंट करनेसे कुछ फायदा नहीं था। इस लिए चुपचाप रहे। 3 NO.टावर की तरफ लोग जाने लगे , लिफ्ट का काम बाकी था। लेकिन फ्लॅट को देखने के लिए लाइट की व्यवस्था की गई थी। लोग निचे टावर के पास जमा हो गए। कुछ लोगो को ख़ुशी हुई, कुछ लोग नाराज हो गए। वैसे आपस में बात करने लगे। तो स्टाफ ने पूछा, ''कुछ प्रॉब्लम है क्या ? '' ''नहीं, लेकिन अभी काम चल रहा है,साथ में फॅमिली है , छोटे बच्चे है, तो ऐसे रात के वक़्त जाना ठीक नहीं। उससे अच्छा हम बाद में आएंगे। दिन में आएँगे। काम पूरा होने पर आएँगे।'' कुछ लोगो को सही लगा, कुछ लोगो को ये बात हजम नहीं हुई। ये मुंबई है, यहाँ क्या होने वाला है ? कुछ भी !कुछ देर में बाकी लोग निकल गए, फिर भी चार - पांच फॅमिली बाकी रह गई। हर कोई आपने टावर की ओर , फ्लॅट की ओर बढ़ गया। 3 NO. टावर की दो फॅमिली थी। मि.हर्डीकर और मि.चाफळकर। मि. हर्डीकर का फ्लॅट नंबर था,43 ,और मि. चाफळकर का नंबर था,47 . मतलब मि. हर्डीकर का फ्लॅट पहली मंजिल पे था। और मि. चाफळकर का तीसरी मंजिल पर।सिढीयोंसे चढ़ते हुए दोनों फॅमिली ऊपर जा रही थी, उनके साथ एक स्टाफ का आदमी था। बाते करते करते वह मि. हर्डीकर के यहाँ रुक गया , और चाफळकर फॅमिली अपने फ्लैट की ओर बढ़ गई।
चाफळकर फॅमिली में चार लोग थे। मिया बिबी और दोनों लडके बड़ा था , फ्लॅट बड़ा था ,2 BHK लड़के बड़े हो गये थे , वो बाते करते करते बालकनी में गए। मि. चाफळकर और मैडम बाते करते करते अपना घर देख रहे थे। और..... इतने मे एक चीख सबने सुनी। वैसे बच्चे आवाज की दिशा में भागे। चाफळकर मैडम फ्लॅट देखते देखते एक बेडरुम में गई थी। बच्चे भागते भागते वहा गए। तो वह डर के मारे पसीना -पसीना हो गई थी ,मि. चाफळकर उनसे पूछ रहे थे। " क्या हुआ ? " लेकिन मैडम की जबान से एक शब्द नहीं निकल रहा था। वो सिर्फ सीलिंग की ओर इशारा करके थरथर कांप रही थी। मि. चाफळकर ने मैडम की पर्स खोली , उसमे छोटी पानी की बोतल थी। थोड़ा पानी उनके मुँह पे मारा , थोड़ा पीने के लिए दिया।
बच्चोने पूछा" मम्मी क्या हुआ ?" मैडम सीलिंग की ओर इशारा कर रही थी , थोड़ी देर बाद वो थोड़ी नार्मल हुई , और बोली " वह| एक औरत थी , छत से लटकी थी , जबान बाहर थी, मेरी तरफ देख रही थी !"
बच्चोने पूछा" मम्मी क्या हुआ ?" मैडम सीलिंग की ओर इशारा कर रही थी , थोड़ी देर बाद वो थोड़ी नार्मल हुई , और बोली " वह| एक औरत थी , छत से लटकी थी , जबान बाहर थी, मेरी तरफ देख रही थी !""क्या , क्या बात कर रही हो ? नया काम चल रहा है , यहाँ कोई रहता नहीं , फिर तुम्हे कैसे दिखेगी ? तुम्हारा वहम होगा। " " नहीं ! वह| एक औरत थी , छत से लटक रही थी, जबान बहार थी , मेरी तरफ देख रही थी। " देखो ज़रा शांत हो जाओ , ऐसा कुछ नहीं है , तुम्हारा वहम होगा, हम यहाँ से निकलते है। "उनकी आवाज़ सुनकर मि.हर्डिकर और स्टाफ का आदमी भागते- भागते ऊपर आये। "क्या हुआ ?" मि. चाफळकर ने पूरी बात बता दी. तो स्टाफ का आदमी बोला ,"ओ मैडम कुछ भी अफ़वाए मत फैलाइये,नयी जगह है ,नया काम है,चलिए! बहुत देर हो गयी है,अभी इसके बारे में किसी से बात नहीं करना ,वरना कंपनी की बदनामी होगी,जो आपको भारी पड सकती है. सब लोग वहासे निकले,लेकिन चाफळकर मैडम बड़बड़ करती रही। "मैं यहाँ नहीं रहूंगी. यहाँ कभी वापस नहीं आउंगी। " मि. चाफळकर उनको शांत करने का प्रयास करते रहे। कुछ देर सब अपने अपने घर लौट गए, तब तक रात हो चुकी थी। दिन गुजरते गए, फ्लैट का काम पूरा होता रहा ,इधर चाफळकर फॅमिली के घर माहौल भी नार्मल हो गया। कुछ ही दिनों में कम्पनी का इनविटेशन कार्ड आया.फ्लैट का पजेशन लेने के बारे में बाकि लोगो की तरह चाफळकर फॅमिली वह रहने को आ गयी।
और एक दिन.. चाफळकर मैडम घर पे अकेली थी, बच्चे पढाई के लियेलिए बाहर रहते थे ,मि.चाफळकर देर रात तक घर पोहोचे,और बेल बजायी। दरवाजा नहीं खुला दो तीन बार ट्राय किया ,लेकिन रिस्पांस नहीं आया। उन्हें याद आया ,उनके पास एक चाबी थी ,वह धुंध के दरवाजा खोला ,मैडम को आवाज़ दी। घर में पूरा अँधेरा था। मि. चाफळकर लाइट ऑन करते गए, एक एक रूम चेक करते गए,उनकी बैडरूम का लाइट ऑन किया,और सामने जो देखा उससे काँप जान हलक में आ गयी। सर चकराने लगा ......
और एक दिन.. चाफळकर मैडम घर पे अकेली थी, बच्चे पढाई के लियेलिए बाहर रहते थे ,मि.चाफळकर देर रात तक घर पोहोचे,और बेल बजायी। दरवाजा नहीं खुला दो तीन बार ट्राय किया ,लेकिन रिस्पांस नहीं आया। उन्हें याद आया ,उनके पास एक चाबी थी ,वह धुंध के दरवाजा खोला ,मैडम को आवाज़ दी। घर में पूरा अँधेरा था। मि. चाफळकर लाइट ऑन करते गए, एक एक रूम चेक करते गए,उनकी बैडरूम का लाइट ऑन किया,और सामने जो देखा उससे काँप जान हलक में आ गयी। सर चकराने लगा ...... चाफळकर मैडम सीलिंग से लटकी हुई थी ,जबान बाहर थी ,और नजर उन्हें घूर रही थी,जैसे उनसे सवाल कर रही हो,मै यहाँ आने से मना कर रही थी अगर मेरी बात मानते तो ? ... आज मै ज़िंदा होती..... !
लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
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