खेल मौत का - हिंदी भयकथा | HINDI HORROR STORY
KHEL MAUT KA |
SECURITY- AN UNEXPECTED LIFE !
PART -2 लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
ऐसी ही एक रात। घना अँधेरा चारो ओर फैला हुआ था। ठंडी इतनी थी की पूछो मत। ठंडी ठंडी हवाए बह रही थी। पेड़ो के पत्ते भी शायद ठण्ड से सिकुड़ रहे होंगे, काँप रहे होंगे। उनमे भी हलचल मची हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे हमें बुला रहे हो। पेड़ पर कोई है जो हमें पेड़ हिलाकर पुकार रहा हो।
दिन में खूबसूरत दिखने वाले पेड़ रात के अँधेरे में जान के दुश्मन बन जाते है। ऐसे माहौल में हाथ में डंडा लिए एक कंपनी में सुरक्षा में लगे हमारे चाचा, अंकल। जिनका हमने पहले भाग में परिचय दिया था ,वही सिक्योरिटी अंकल !
कंपनी बहुत बड़ी नहीं थी। दो शिफ्ट में काम होता था। सुबह 7 से रात 12 बजे तक कंपनी का काम चलता था। रात 12 से सुबह 7 बजे तक कंपनी में सिर्फ दो सिक्युरिटी रहते थे। एक हमारे अंकल जिनकी हमने अभी अभी पहचान कराई। और दूसरे रिटायर्ड आर्मी के थे। वो भी बूढ़े ही थे लेकिन शरीर तंदुरुस्त था।
लेकिन आज किसी वजह से वो डयूटी पे नहीं आने वाले थे। और सुबह के ऑफिसर को डयूटी ख़तम करके सुबह वापिस 7 बजे आना था। तो वो भी रुकने वाला नहीं था।
फिर कौन बचा, यही अपने रिटायर्ड अंकल ! शरीर से थके हुए थे। लेकिन दिल साफ़ था। इमानदार थे। डयूटी करने की जिस्म को इतनी आदत पड़ गई थी। मन को इतनी आदत पड़ गई थी, की वो आखरी सांस तक छूटने वाली नहीं थी।
12 बजे डयूटी ख़तम होने पर सब लोग निकल गए। पीछे सिर्फ और सिर्फ अंकल रह गए। कंपनी का मेनगेट बंद कर दिया। और सोचा की कंपनी में इर्द गिर्द सर्च राउंड मार के आएँगे, उसके बाद गेट पर रुकेंगे। तो कभी सिटी बजाते बजाते, तो कभी डंडेसे आवाज करके राउंड पूरा किया। all is well . सब कुछ ठीक है। खिड़कियों से अंदर कंपनी के शॉप फ्लोअर पे झांक के देखा, सब कुछ ठीक था।
ठंडी बहुत थी। स्वेटर और मफलर से थोड़ा बहुत बचाव हो रहा था। वैसे ही गेट पे पहुंचे। लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गई, वैसे ही ठंडी भी चरम सीमा तक पहुंचने लगी। इस कारन सिक्युरिटी केबिन में जा बैठे। और गेट की ओर ध्यान देने लगे।
लेकिन अकेला आदमी कितनी देर बैठेगा, नींद आने लगी। तो झट से उठकर खड़े हो गए। और केबिन से बाहर आ गए। चारो ओर नजर घुमाई। अंधेरे में, घने अंधेरे में कंपनी का वो माहौल डरावना लग रहा था। दिल के अंदर कुछ यादे ताजा हो गई और रोंगटे खड़े हो गए।
और इतने में कुछ आवाज आई। वो चौक गए, आवाज कंपनी के पिछले हिस्से से आ रही थी। यह आवाज कैसी थी ? जाके देखना होगा। और अंकल चौकन्ने होकर उस ओर जाने लगे। शांती, चारो ओर भयानक शांती, कुछ भी नहीं। शायद आभास हुआ होगा, ऐसा उन्हें लगा और वो वापस निकले। इतनेमे गेट की तरफसे कुछ आवाज हुई। अभी कदम गेट की तरफ बढ़ने लगे। वो गेट के पास, केबिन के पास पहुंचे। कुछ भी नहीं था। साला क्या चक्कर है ? समझ में नहीं आ रहा।
लेकिन कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर है। इतने में दुबारा आवाज सुनाई दी। लेकिन इस बार आवाज कुछ और ही थी। जैसे कोई बुला रहा हो।
अंकल को यकीं हो गया कुछ तो है, और में अकेला हूँ। अगर कोई हुआ और कुछ गलत काम करता होगा तो ? किसी को फोन करके बुला लेते है। लेकिन क्या बोलेंगे ? उससे अच्छा है की पहले देख लेते है। कुछ प्रॉब्लम लगा तो किसी को बुला लेंगे। मै सिक्युरिटी हूँ, मेरा फर्ज है ? मन में ठान लिया पहले खुद निपटेंगे।
और आवाज की दिशा में चल पड़े। लेकिन इस बार हाथ में टॉर्च था। आगे बढ़ने लगे। कौन है ? आवाज देने लगे। जवाब नहीं मिला। शांती, खामोशी। अंधेरे में चारो ओर टॉर्च घुमाया, पेड़ो के ऊपर रौशनी पड़ी तो पंछी फड़फड़ा उठे लेकिन कुछ ही पलो में दुबारा खामोशी छा गई।
इतने में पीछे कुछ गिरने की आवाज आई। उन्होंने पीछे की ओर टॉर्च घुमाया। कोई नहीं। साला क्या नाटक है ? में तो राज डयूटी करता हूँ। कभी कुछ नहीं हुआ। तो आज ये क्या चल रहा है ? कुछ समझ में नहीं आ रहा। चलो पहले सर को फोन करके बता देते है। पीछे वापस कुछ गिरने की आवाज आई। लेकिन इस बार आवाज बहुत नजदीक से आई थी।
पीछे मूडके देखा, कुछ ना कुछ जरूर है। यहाँ से जल्दी निकलना चाहिए, जल्दी। तभी आवाज आई, शुक........ शुक, शुक.. .... शुक। इतनी ठंडी में भी पसीने छूटने लगे। जोर से चिल्लाकर पूछा कौन है ? सामने क्यों नहीं आता ?
दिल की धड़कन बढ़ गई। जान हलक में आ गई। फिर ख़ामोशी छा गई। मुझे यहाँ से फॉरन निकलना चाहिए। जल्दी से गेट पर पहुंचकर किसी को फोन करना चाहिए। सोचते सोचते कदम जल्दी जल्दी गेट की ओर बढ़ने लगे। तभी आवाज आई पीछे से कुछ गिरने की, किसी के पुकारने की, बुलाने की, शुक.... शुक.....
अभी दिमाग घूम गया। जहा से आवाज आ रही थी, उस और घूम के अंकल ने डंडा मारा। लेकिन इस चक्कर में टॉर्च दिवार से टकराई और फुट गई। लाइट बंद, अंधेरा,पूरा अंधेरा, सन्नाटा, ख़ामोशी।
अब क्या करे ? पूरा बदन पसीने से लथपथ हो गया। धड़कने बढ़ने लगी। उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे वो भाग रहे है। लेकिन गेट तक पहुंच नहीं पा रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था की आज इतना वक़्त क्यों लग रहा है ? गेट तो इतनी दूर नहीं है ? हे भगवान् कुछ और पल दे दे, मुझे गेट तक पहुंचने दे। फोन करने दे। कुछ पल दे दे, मुझे वहा तक पहुंचा दे।
लेकिन आज...... तक़दीर में कुछ और ही लिखा था। अंकल गेट तक पहुंच ही नहीं पाए..........
सुबह 7 बजे लोग डयूटी पर आए। देखा तो गेट पर कोई नहीं था। सिक्युरिटी सुपरवाइज़र को लगा की अंकल राउंड मरने के लिए गए हो। लेकिन अंकल नजर नहीं आ रहे थे। तभी उसकी नजर एक पेड़ के निचे गई जो कंपनी के पिछले हिस्से में था। जहा अंकल निचे पड़े हुए मिले। आँखे खुली की खुली रह गई थी। और हाथ कुछ दिखाने के इरादे से एक ओर इशारा कर रहा था । जो सख्त, बेजान हो गए थे। अंकल अब इस दुनिया में नहीं थे.........
दोस्तों सिक्युरिटी। अपनी जान पर खेल कर समाज का रक्षण करते है। फिर चाहे वो सिक्युरिटी हो, वॉचमेन हो, होमगार्ड हो, पुलिस हो। ये भी देश के पहरेदार ही है। जैसे हमारे जवान देश की सीमा पर खड़े होकर देश की और हमारी रक्षा करते है। उसी प्रकार ये सारे लोग हमारे साथ रहकर , हमारा, समाज का, ख़याल रखते है। देखभाल करते है। उसकी रक्षा करते है। और उनका आदर करना, सम्मान करना हम सबकी जिम्मेदारी है और फर्ज भी है। जो करना हमारी डयूटी है। जो हमें करनी ही चाहिए। हमारे सभी जवानो को, पुलिसकर्मियों को, सिक्युरिटीज को और इस फिल्ड में काम करने वाले हर व्यक्ती को बोरसे ग्रुप सलाम करता है। सेल्यूट करता है। कोटी - कोटी नमन करता है। क्यों की ये लोग है तो ही हमारा वजूद ज़िंदा है, हम ज़िंदा है।
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लेखक : योगेश वसंत बोरसे
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