CARROM - HINDI HORROR STORY | Hindi Bhaykatha

CARROM - HINDI HORROR STORY


HINDI KAHANIYA
 HINDI HORROR STORIES 

                                                  लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 

    रात का वक़्त था। और गरमी  के दिन थे। गरमी से सब लोग परेशान थे। दिन में टेंप्रेचर इतना रहता था, की घर से बाहर निकलना मुश्किल था। इस वजह से ज्यादा तर लोग सूरज ढलने के बाद ही घर से बाहर निकल रहे थे। और देर रात तक शहर क्या, गांव भी जाग रहे थे।
              ऐसे ही एक गांव के सुनसान सड़क पर एक साया हौले हौले आगे बढ़ रहा था। उसे शायद कोई जल्दी नहीं थी। टहल रहा था, झूम रहा था। गाने गुनगुना रहा था। कौन था पता नहीं। वह आगे बढ़ते बढ़ते उजाले की तरफ बढ़ा। हां उजाला। खाली नाम का ही उजाला था। एक पतरे का शेड था। उसके अंदर से रौशनी आ रही थी। और रौशनी के साथ साथ कुछ आवाज आ रही थी। टक - टक  जैसी उसने ध्यान से सूना।  आवाज किस चीज की है ? वह धीरे धीरे आगे बढ़ा उजाले की ओर।
             आवाज क्लिअर आने लगी और  उसकी बाछे खिल गई। जो आवाज आ रही थी, वो उसकी मनपसंद आवाज थी। कैरम की आवाज थी। जब कोई कैरम खेलता है, तो कैरमबोर्ड पर स्ट्राइकर की आवाज आती है। वही आवाज आ रही। वो साया जल्दीसे उस ओर  बढ़ा। वहा पंहुचा तो आवाज बढ़ गई थी। उसने अंदर झाक कर  देखा तो उसकी रूह काँप उठी। अंदर कोई नहीं दिखा।
            लेकिन कैरमबोर्ड के ऊपर बत्ती जल रही थी। जिसका उजाला मध्यमसा फैला हुआ था। और कैरमबोर्ड पर स्ट्राइकर अपने आप यहाँ से वहां जा रहा था। नहीं अपने आप नहीं। ऐसा जा रहा था मानो कोई खेल रहा हो। उसने गौर से, ध्यान से देखा कुछ धुंदला धुंदला दिख रहा था, जो कैरम के चारो ओर  मंडरा रहा था।
            ये क्या है ? और साफ़ साफ क्यों नहीं दिख रहा ? मेरी आँखे खराब हो गई है। उसने बाहर की ओर  दूर नजर डाली। सब कुछ साफ़ दिख रहा था। वापस अंदर झाका। इसका मतलब ये कोई आत्मा या भूत  का खेल तो नहीं ? यह विचार उसकी दिमाग में आया और वह घबरा गया।
            यहाँ आकर गलती तो नही कर दी ? सोचा था थोड़ा टाइमपास हो जाएगा। लेकिन...  वह आगे कुछ सोचता उसके पहले स्ट्राइकर रुक गया। मतलब खेल रुक गया। और कई निगाहे उसे घूर रही है, ऐसा महसूस होने लगा। मैंने कोई गलत तार छेड़ दी शायद।
       अब.. भागो.. वह बाहर की ओर  भागा.... लेकिन लड़खड़ाके गीर  गया।
             वह जैसे तैसे उठा, और पीछे मुड़कर देखा, कुछ चमकता हुआ गोल गोल घूमकर उसकी तरफ तेजी से आया। जैसे कोई चमकता स्ट्राइकर हो। फट से उसके चेहरे पर टकराया। इतने जोर से भला स्ट्राइकर लग सकता है। एक बार लगा तो इतना महसूस नहीं हुआ, लेकिन बार बार आके स्ट्राइकर चेहरे से टकराने लगा। वो शायद कम था तो एक  गुलाबी रौशनी चमचमाती हुई उसके इर्द गिर्द घूमने लगी। क़्वीन ! क्या अब ये भी... ... उसका अंदाज सही था। अब क़्वीन भी चेहरे से टकराने लगी। मतलब साफ़ था। बाकि अठारह गोटिया भी यही करने वाली थी। और वही हुआ।
            उसके आजु बाजू रौशनीयोका घेरा बन गया। जैसे हर रौशनी उसे घूर  रही हो। और अपनी नजरो से उसपर घाव लगाना चाहती हो। शरीर पर गोटयो की बौछार सी होने लगी। वह भागने लगा वहा से चिल्लाते चिल्लाते बाहर आया।
            उसे लगा रास्ते पे कोई तो होगा जो उसकी मदद करने आएगा। लेकिन रास्ता सुनसान था। ना बन्दा ना बन्दे की जात। वहा से भागा, भागते भागते दम निकलने लगा। तो एक पेड़ के निचे चबूतरे पर बैठा। सांस फूल रही थी। जोर जोर से हाफ रहा था।
        थोड़ी  देर में नॉर्मल सांस हुई। घबराहट कम हुई। और टप  से उसके सर पर कुछ गिरा, पेड़ के ऊपर से, जैसे फल गिरता है, उसे लगा कुछ गिर गया होगा। उसने ध्यान नहीं दिया। और कुछ ही पल में और कुछ गिरा टप। अब वह जगह से हिला भी नहीं था। इसलिए निशाना दोनों बार एक ही जगह पे गिरा, सर पे। तो दर्द का एहसास हुआ। उसके बाद हर पल टपटप गिरने लगा। जैसे पानी की बुँदे गिरती है।
              आजु बाजू चारो ओर  गोलगोल गोटिया चमकती हुई ऊपर से गिर रही थी। ये तो कैरम की गोटीया है ? यहाँ भी पहुंच गई। लेकिन कैसे ? दर्द बढ़ता रहा, ना जाने कहा कहा से आकर स्ट्राइकर और गोटिया बरस रही थी। दर्द इतना बढ़ गया की वह वही ढेर हो गया। वह अपना होश खो रहा था। लेकिन एहसास हो रहा था  की उसे कोई खींच कर ले जा रहा है। कुछ ही पल में उसे वहां  पहुंचाया गया, जहा कैरम का खेल चल रहा था। सामने कोई था जो बड़े चाव से कैरम खेल रहा था।
              इतनेमे एक बार फिर स्ट्राइक हुआ और एहसास ख़तम हो गया। कुछ देर बाद आँखे खुली तो सुबह हो गई थी। वो चौक गया। और उठकर बैठा। उसे रात में जो हुआ दुबारा आँखों के सामने दिखने  लगा। लेकिन सामने खाली जगह थी। ना तो कैरम था, ना तो  लैंप था। ना ही गोटिया, ना ही कोई खेलने वाला।
              पूरा बदन दर्द से टूट रहा था। जगह जगह चोट के निशान थे। जहा पे स्किन काली पड़ गई थी। सुबह का वक़्त रास्ते पर चहलकदमी, धीरे धीरे बढ़ रही थी। जो भी उसे देखता हैरान होके उसे घूरता रहता, उसे समझ नहीं आ रहा था। ऐसा क्या हुआ है ? वो जैसे तैसे घर पहुंचा। घर में वो अकेला ही था। आयने के सामने खड़ा हो। गया। तो चीख निकल गई। पुरे चेहरे पर, गर्दन पर गोल गोल काले काले धब्बे दिख रहे थे। और दो आँखों  के बिच में माथे  पर एक बड़ा सा गोल काला धब्बा दिख रहा था। जैसे कोई टिका लगाया हो।
              सर पे हाथ लगाया तो खून बह रहा था। हाथ पूरा खून से भर गया। इसका मतलब रात से खून बह रहा था। फिर भी वह लड़खड़ाता हुआ, घर तक पंहुचा था। अगर ऐसे ही खून बहता रहा तो जिन्दा नहीं बचूंगा। डॉक्टर के पास जाना पडेगा। लेकिन शायद अब देर हो गई थी। वो बाहर जाने के लिए मुड़ा। लेकिन सर चकरा  गया। और धड़ाम से निचे गिरा। सर पे वापस चोट लगी। खून बहता रहा, बहता रहा.....  और वो उसी के घर में ढेर हो गया। आखरी एहसास यही था ,
                     क्या गलती थी मेरी ? मै  रात को टहलने निकला था...  कैरम खेलना चाहा.....  या कुछ और जो मै  समझ नहीं पाया। .......

                                                             THE END 

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