रेसॉर्ट हिंदी भयकथा - Hindi Horror Story

                           रेसॉर्ट - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORY  


HINDI KAHANIYA
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                                                लेखक :- योगेश वसंत  बोरसे. 

NOTE :- ये कहानी आपको विचलित कर सकती है ! कमजोर दिलवाले न पढ़े  !

  •      शाम का वक़्त था। 

                       एक बस स्पीड में  घाटी के रास्ते से आगे बढ़ रही थी। रास्ता घुमावदार था। लेकिन सड़क खाली थी। आजु बाजू झाड़ियाँ ,बीच में रास्ता !ठंडी हवा चल रही थी। बस में ख़ामोशी का माहौल था। कोई चुप चाप बैठा था ,कोई खिड़की से बाहर झांक रहा था ,कोई गाने गुनगुना रहा था ,तो कोई सो गया था। 
            और...... अचानक ,अचानक ब्रेक की चरमराहट की आवाज से बस रुक गई। हर किसी को झटका लगा। किसी की नींद टूटी ,किसी के ख्वाब टूटे ,किसी की गर्दन ,तो किसी की कमर। कोई सामने वाली सीट से टकराया । 
          'क्या हुआ ?'हर कोई पूछने लगा। ड्राइवर के पसीने छूट गए ! वो सब की तरफ डर से देख रहा था। पर बोला कुछ नहीं !  इन्फेक्ट  कुछ बोल ही नहीं पाया। 
    'रमेश क्या हुआ ? '.. .. 'रमेश क्या हुआ ?' कंडक्टरने पूछा। ड्राइवर डर गया था ,वो डरते हुए, हिचकिचाते हुए बोला , "बस... के... निचे... कोई.... आ.. गया....... ! "कोई आ गया मतलब ?" कंडक्टरने फिर से पूछा ,और उसे मतलब खुद समझ में आ गया। 
       कंडक्टरने झट से दरवाजा खोला ,और निचे उतर गया। वैसे दो तीन लोग और निचे उतर गए। चारो ओर से मुआयना किया। आगे से ,पीछे से ,निचे झांककर भी देखा पीछे के टायर में कोई आया होगा , इसलिए पीछे जाकर भी देखा। कुछ नहीं था ,कुछ भी नहीं था। टोर्च जलाकर देखा ,कुछ भी नहीं !
       कंडक्टरने ड्राइवर को बताया ,ड्राइवर को समझ में नहीं आ रहा था। उसे यकीं नहीं हो रहा था। वह निचे उतर गया ,सब तरफ चेक किया ,कुछ भी नहीं ? ऐसा कैसे हो सकता है ? गाड़ी से कोई जोर से टकराया था ,वह तो हो ही नहीं सकता। कही आगे तो नहीं फेका गया ? वो आगे तक सड़क की साइड में चारो ओर घूम के आया ,और हैरान हो गया !
      उस बस में एक महात्मा सादे भेस में बैठे थे ,वो भी निचे उतर  गए। उन्होंने पुरे माहौल का जायजा लिया ,और अपनी शांत वाणी में सबको बोले ,"यहाँ पर खतरा है ,यहाँ से जल्दी निकलना ही ठीक रहेगा ! "
    लेकिन कुछ लोग शरारती रहते है ,वैसा ही एक था। वो बोला ,"महाराज आपके होते हुए भला हमें क्या खतरा हो सकता है ?" महात्मा ने उसकी ओर स्नेहपूर्ण नजरोसे देखा ,और बोले ,"तुम्हारा कहना सही है ,लेकिन होने वाली हर बात तो मै नहीं टाल सकता न ! जैसे अभी ये हुआ ! ये जंगल है !यहाँ कुछ अमानवी शक्तियों का बसेरा है ,ये उनका इलाका है ,उन्हें उकसाना ठीक नहीं !आगे तुम लोगो की मर्जी !"
    इतना कहकर वो शांतिपूर्वक खड़े रहे। ड्राइवर को उनकी बात सही लगी ,उसने झुककर प्रणाम किया,और बोला,"महाराज , आप की बात बिलकुल सही है !ये जंगल बड़ा है ,रास्ता खराब है, लेकिन मेरे लिए नया नहीं है ,कई बार यहाँ से गुजर चूका हूँ। लेकिन आज जो हुआ ,वो इससे पहले कभी नहीं हुआ। "
    "बेटा तुम्हारी बात सही है ,लेकिन हर दिन, हर वक़्त,एक जैसा नहीं होता। और आज तक जो हुआ नहीं ,वो आज के बाद भी होगा नहीं ये जरुरी तो नहीं ?"
    "महाराज आप बिलकुल सही कह रहे है ,आज मुझे भी अलग ही लग रहा है !कुछ अनोखा अटपटा होने वाला है ,ऐसा महसूस हो रहा है !आगे जाना खतरे से खाली नहीं रास्ता पूरी तरह ख़राब है ,तो धीरे धीरे जाना पड़ेगा। कम से कम तीन घंटे तो लग ही जायेंगे। "
     तब तक बाकी लोग उतरकर निचे आ गए थे। उन्होंने भी इनकी बात सुनी। एक आदमी बोला "आपको अगर मालूम था तो शाम के वक़्त बस क्यों निकालते हो ?यहाँ मरने के लिए ?सिर्फ दिन में ही आना चाहिए ना  ?"
       ड्राइवर  के पास कोई जवाब नहीं था ,वो क्या बोलता ? उसकी ड्यूटी थी। 
 "लेकिन आखिर हुआ क्या था ?आपने तो बताया नहीं ?"एक सज्जन ने उत्साह से पूछा। वैसे कुछ लोगो के रोंगटे खड़े हो गए। "मैंने तो बताया था ,की गाड़ी के निचे कोई आया था। " "लेकिन क्या था ?कुत्ता ,बिल्ली ,औरत या आदमी ?क्या था ?"
     ड्राइवर को कुछ समझ नहीं आ रहा था ,उसकी उलझन देखकर इसका उत्साह चार गुनाह बढ़ गया। "तो फिर भूत ही होगा !" "क्या ?" "हां ! भूत ही होगा ! नही तो गाड़ी के निचे जरूर दीखता !गाडीसे टकराया और गायब हो गया। "
      ड्राइवर ने  कंडक्टर से पुछा "अभी क्या करना है ?" "क्या करेंगे ?जाना तो पड़ेगा !"कंडक्टर बोला। "ठीक है ,चलते है जो होगा वो देख लेंगे !"ड्राइवर कुछ ठानकर बोला ,और बस में चढ़ गया ,बाकि लोग भी एक एक करके बस में सवार हो गए ,और अपनी अपनी जगह बैठ गए। और बस निकली। 
       घंटा दो घंटा सफर हुआ ,सब पैसेंजर चुप चाप दबक के बैठे थे।  सब को लगता था ,कभी भी कुछ भी हो सकता है। कंडक्टर ड्राइवर के बाजूवाली सीट पर बैठा हुआ था। 
    कंडक्टर का ध्यान बाई ओर गया। वहा  पर इतनी रात में भी चहल पहल थी। तीन चार गाड़िया साइड में लगी थी। कंडक्टर के ध्यान में आया ,की हम किसी रिसोर्ट के पास पोहोच गए है। उसे अच्छा लगा। 
     "अच्छा हुआ रेसोर्ट शुरू हो गया ,सालो से बंद था। " ड्राइवर बोला  . 

        "मतलब ये रेसोर्ट नया नहीं है ?"कंडक्टर ने पुछा ," नहीं ! कुछ साल पहले अचानक बंद हो गया था ,वैसे ही अचानक शुरू भी हो गया। किसीने चलाने के लिए लिया होगा ।"  ड्राइवर बोला। 
         "लेकिन इतने जंगल में कौन आएगा ? - कंडक्टर। 
   "कौन आएगा ?तो फिर ये गाड़ियां कहाँसे आयी ?और हम भी तो आए। - ड्राइवर। 
          कंडक्टर  को समझ में नहीं आ रहा था ,रस्ते में जितनी गाड़ियां नहीं मिली थी उससे ज्यादा गाड़ियां यहां  खड़ी  है। इतनी गाड़िया आयी कहांसे ?" की सभी गाड़िया दूसरी ओर से आयी ?
     तब तक बस सड़क के एक साइड में रिसोर्ट के आंगन में रुक गयी थी। सबको अच्छा लगा। चलो यहां तक तो आए ,और थोड़ी देर ,फिर अपने मक़ाम तक पोहोच जायेंगे। लेकिन इसके बाद इस रास्ते से कभी नहीं आएंगे !
    इनफैक्ट इधर ही क्या रात को सफर ही नहीं करेंगे !एक एक करके सब पैसेंजर उतर गए। 
       किसी के ध्यान में आया ,महाराज बस में ही बैठे है ,निचे नहीं उतरे। कंडक्टर के भी ध्यान में आया,उससे रहा नहीं गया। महात्मा उसे पोहोची हुई चीज़ लग रहे थे। उसने महात्मा से बात की।" महाराज थोड़ा फ्रेश हो जाईये ,अच्छा लगेगा .
   " बेटा ,तुम गलत जगह पर रुके हो !ये सब भरम है ,आभास है ,ये सब छलावा है। हमें यहाँसे जल्द से जल्द निकलना चाहिए। यही सब के लिए अच्छा रहेगा!" एक आदमी से रहा नहीं गया। 
     वो झट से बोला ,"महाराज ,वैसे तो ये दुनिया ही एक मोहमाया है। भ्रमजाल है ! यहाँ शाश्वत कुछ भी नहीं ! आज है तो कल नहीं !आज जो है वो कल हो न हो ?किसे पता ? लेकिन मुझे आज ये रिसोर्ट दिख रहा है ! और भूक भी लगी है ,ये भी समझ में आ रहा है ,और फिलॉसफीसे तो पेट नहीं भरता ?फिर मुझे मज़बूरी में  ही सही ,कर्तव्य भावना से ही सही ,दो निवाले पेट में डालने पड़ेंगे !" "कंडक्टर साहब अगर आपका पेट भर गया हो तो आप भी यही रुकिए !और phylosophy का आनंद लीजिये ! हम तो जाते है !" इतना कह कर वो हसने लगा ,वैसे ही उसके साथी भी हसने लगे। महात्मा का मजाक उड़ने लगे। 
     यह सब देखकर महात्मा के चेहरे पर गहरी मुस्कान  छा गयी। ' कुछ बाते हम टाल  नहीं सकते ,यही सत्य है। लेकिन इसकी बातोसे माहौल थोड़ा हल्का हुआ ,ये भी बहोत है। हसने से दर्द का एहसास कम होगा !'
     सब लोग रेस्टोरंट गए ,उन सबके पीछे कंडक्टर भी गया , महात्मा बस में बैठे रहे। 
     रेस्टोरंट में जाने के बाद धीरे धीरे सबके ध्यान में आ गया, यहाँ का माहौल अलग है। भीड़ बहोत है,लेकिन किसी को भी जल्दी नहीं है। किसी को कही जाना नहीं है। हर कोई जैसे अपनी मंजिल पर पोहोच गया था। 
       बस में  से जितने पैसेंजर आये थे, उनकी नजरे मिली,और एक एक करके सब निकलने लगे।  ये सब देखकर मैनेजर आगे आया। उसने पुछा ,"क्या हुआ ?""कुछ प्रॉब्लम है क्या ?" एक मुंहफट था ,उसने सीधा बोल दिया ,यहाँ का माहौल अलग ही है !हम जा रहे है !" तो मैनेजर हसने लगा। 
      "साहब ,आप भी कमाल करते है ,आप इस वक़्त जंगल में है !बाहर का माहौल अलग है !तो यहाँ का भी अलग ही होगा ना ?" "बैठिये ,टेंशन मत लीजिये !"
  उसकी बातो ने सब पर असर किया। अच्छा या बुरा ?वो बोलना मुश्किल था। लेकिन सभी वहा रुक गए !
        और.... कुछ ही पल में एक जोरदार चीख कानो में गुंजी ! किसी औरत की आवाज थी। वैसे सब लोग उठकर बाहर की और भागे। तो मैनेजर जोर से बोला "आप लोग इस झमेले में मत पड़िए ,आप नए है ,यहाँ पर ऐसी आवाजे आती रहती है !"
      लेकिन उसकी कौन सुनने वाला था ?... सब बाहर की और भागे !  
     सड़क पर एक औरत खून से लथ पथ थी।  जोर जोर से चिल्ला रही थी !लोगो को लगा इसी गाड़ी ने उडा दिया होगा। लेकिन कुछ लोगो का कहना था के यहाँसे एक भी गाड़ी नहीं गयी ! तो फिर इस औरत को.... 
  तभी होटल के वेटर भागते हुए आये। और उस औरत को उठाकर ले गए। वैसे एक  आदमी बोला ,"औरत बहोत मस्त थी ! किस  गाड़ी में थी क्या मालूम ?"
     कुछ ही समय में सब लोग होटल में वापस आ गए। एक वेटर आया उसने आवाज लगाई ,"नॉनवेज खाने वाले कितने लोग है ?"
    अजीब सा सिस्टम था। कुछ लोगो को पसंद नहीं आया। "अरे मेनू कार्ड नहीं है क्या ?वो दो ना ! जिसे जो चाहिए वो ले लेगा !"पर उस वेटर ने उसकी ओर ऐसे देखा की वो चुपचाप बैठ गया। 
      उसने दोबारा आवाज लगाई ,"यहाँ नॉनवेज सस्ता मिलता है ,रेट ऐसे है के सब ले सकते है !"  " अरे लेकिन रेट तो बता !"
    वैसे वेटर रेट बताने लगा ,इनके पैरो के नीचे से जमीं खिसक गयी।' इसका दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया ? कुछ भी बोल रहा है मुंडी ,तंगडी ,मांडी ,.... बाप रे बाप। ऐसा कौनसा जानवर होता है ?जिसके इतने पार्ट होते है ? औरतो जैसे !' 
  'औरतो जैसे ? ' एक आदमी के ध्यान में आया , "अरे भागो यहाँ से !वो औरत जो कुछ देर पहले चिल्ला रही थी ना ,उसे काटकर ये  हमें खिला रहे है !"ये हमें उसके बारे में ही  बता रहा है "
   ये सुनते ही कितनो की चीखे निकल गयी ,कोई भागने लगा ,और एक ही हड़कंप मच गया। भागम भाग शुरू हो गयी। और देखते ही देखते होटल का माहौल  बदल गया। 
   अब... जो पहले चुप चाप बैठे थे ,वो एक्टिव हो गए। और जोर जोर से हसने लगे। हसी इतनी भयानक थी की कुछ लोग रोने लग गए डर  के मारे ! कुछ बेहोश हो गए !कुछ लोगो के पांव जैसे जमीं में धस गए। वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहे थे !कुछ लोग प्रतिकार कर रहे थे ,लेकिन अमानवी ताकदो के आगे वो कितनी देर टिक पाते ? एक एक करते करते उनका दम टूटने लगा !
        भयानक ,खौफनाक ! जो वहा चल रहा था ,वो शब्दों में बयां नहीं हो  सकता !
    जो जिन्दा थे उन्हें नोचा जा रहा था ,उनका मांस  दातो से काट काट कर खाया जा रहा था।  और जो मर गए थे उन्हें तो घसीट ते हुए लेके जा रहे थे ,किसीको कच्चा चबा रहे थे ! मांस  को मुँह से तोड़ ने की दातो से चबाने की  अजीब सी आवाज आ रही थी। खून की गंध चारो ओर फ़ैल गयी थी ! देखते ही देखते सारे पैसेंजर ख़त्म हो गए ! 
      शायद.... उनमे से एक भाग्यवान था ,वो इस सब जंजाल से बच निकला !और जैसे तैसे बाहर की ओर भागा। जैसे ही वो बस के पास पोहोचा सब उसे बस में जल्दी चढ़ने के लिए बोलने लगे। इसकी समझ में नहीं आ रहा था ,की ऐसे कैसे हो सकता है ? ये तो सब होटल के अंदर मर गए थे ! तो बस में कैसे पोहोच गए ? वो भी मेरे पहले ? 
       उसका ध्यान महात्मा की और गया ,महात्मा की आँखो में चमक थी। उनके शब्द  इसके जहन  में गूंजने लगे !  'ये सब भ्रम है ,छलावा है, धोखा है,इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है !'
    '  नहीं ! मै  जो देख रहा हूँ वही सच है ! ये  जिन्दा हो ही नहीं सकते !यहाँ खतरा है ! यहासे बचना है तो भागने में ही समझदारी है !
    वो सड़क की ओर भागा। और अगले ही पल एक गाड़ी पीछे से जोर से आयी और इसे उड़ाकर तूफान की तरह चली गयी। और उसकी चीख चारो ओर गुंजी। 
     कंडक्टर और ड्राइवर का कही पता नहीं था ,शायद.. उनकी भी बलि चढ़ गयी थी। या फिर उन्होंने उनका कॉन्ट्रैक्ट पूरा किया था ? लोगो को उस होटल में लाने का ?
     महात्मा.... शांतिपूर्वक बस से उतरे। उनके चेहरे पर गहरी मुस्कान थी ! रस्ते से जाने लगे। .... और... गायब हो गए। ..... 
       और थोड़ी ही देर में होटल के वेटर बाहर रस्ते पर आये , उस बॉडी को उठाया !  और अंदर ले गए।      
           क्यों नहीं नए मुसाफिरों का ,पैसेंजर्स का स्वागत भी तो करना था !!.....

                                                          लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 




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