आप बीती - 1 - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORIES

आप बीती -  1 - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORIES


         
                                                       
    लेखक : योगेश वसंत बोरसे.

               डरावनी कहानिया लिखते लिखते उसका माइंड  इतना सेंसिटिव हो गया, की उसे हर जगह पे कुछ दिखने लगा। अजीब अजीब आवाजे आने लगी। अपने आसपास हर कोई रहता है ये महसूस होने लगा। माइंड इतना सेंसिटिव हो गया था की वो हर चीज में कुछ डरावना ढूंढने लगा, अगर नहीं मिलता तो मायूस हो जाता। 

              योगेश नाम था उसका, नौबत यहाँ थक आ गई थी की उसे ही लगाने लगा की मुझे डॉक्टर की जरुरत है, संयोगवश उसका दोस्त डॉक्टर था। एक दिन डॉ.साहब ने योगेश को घर बुलाया था, उन्होंने उसका बहुत सम्मान के साथ, प्यार से स्वागत किया। एक दूसरे को गले लगाया, दोनों बहुत दिन बाद मिले थे। 

               डॉ. निखिल सायकोलॉजिस्ट थे। और योगेश को बहुत पसंद करते थे। उसे देखकर उन्हें अच्छा लगा। " यार बहुत दिन बाद मिले। चलो अपने रूम में बैठते है। " उन्होंने अपनी पत्नी शिला को आवाज दी, " शिला योगेश आया है। " 

             शिला के चेहरे पे मुस्कान थी। उसने बड़ी विनम्रता से पूछा, " भाईसाहब कैसे हो ? " " भाभीजी बस आपका आशीर्वाद है, बहूत बढ़िया। " योगेश ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया। " अभी खाना खाकर ही जाना। " "नहीं भाभीजी शुक्रिया, पर विद्या घर पर  राह देख रही होगी। निखिल से मिलना था, तो जल्दी में आ गया। " " ऐसे कैसे, इतने दिन बाद आया है, खाये बिना  नहीं जाएगा, शिला बढ़ियासा नाश्ता बनाओ चाय के साथ, दोनों खाएंगे। " निखिल ने कहा। शिला ने हामी भर दी। और योगेश से पूछा, " फिर भाई साहब आजकल कौनसी स्टोरी लिख रहे है ? " यह बात निकली और योगेश का मुँह लटक गया। जो दोनों ने ऑब्जर्ब किया। पहले खुद ही अपनी कथाओ पे बाते करनेवाला योगेश आज उसके नाम से ही सिहर उठा। 

                निखिल समझ गया, कुछ ना कुछ जरूर हुआ है। वह उनके स्टडी रूम में जाकर बैठे। " योगेश क्या बात है ? इतने डिस्टर्ब क्यों हो ? " " निखिल, कहानिया लिखते लिखते माइंड इतना सेंसिटिव हो गया है की हर जगह हर वस्तु में कुछ ना कुछ ढूंढता हूँ। " " ये तो अच्छी बात है, तो अभी कहानिया बढ़िया निकलती होगी। " 

             " निखिल अच्छी बात तब होती, जब मुझे इसकी तकलीफ नहीं होती। लेकिन अब में सहन नहीं कर पा रहा हूँ। " " क्यों क्या तकलीफ है ? " " अरे अगर दिवार की तरफ भी देखता हूँ तो कुछ दिखता है,   अगर नहीं दिखे तो दिमाग ढूंढने लगता है। " " योगेश इतना मत सोचो, नहीं तो एक काम करो , थोड़ा ब्रेक लो अपने काम से। थोड़ा कही घूमके आओ, सब ठीक हो जाएगा, टेंशन मत लो। " 

               योगेश का सर भारी हो गया था। लेकिन वो निखिल को ज्यादा बोल भी नहीं पाया। वैसे भी उसे खुदपर भरोसा था। की इस समस्या की तहतक वो खुद पोहोचेगा। इधर उधर की बाते हुई, चाय - नाश्ता ख़तम करके वह निकला, तबतक रात हो चुकी थी। "  चलो निखिल निकलता हूँ। रात बहुत हो गई है। " निखिल ने कहा " आराम से जाना, ज्यादा सोचना मत। जो कथाए लिखते हो, वो दिलसे निकलने दो, दिमाग पे ज्यादा जोर मत डालो। और हो सके तो थोड़ा घूमके आओ। मतलब ऐसी जगह जहा दिल को सुकून मिले, शांती मिले। "

            निखिल उसे बाहर तक छोड़ने आया। घर ज्यादा दूर नहीं था, तो योगेश पैदल ही निकला था। घुमना भी हो जाएगा और थोड़ा रिलॅक्स भी लगेगा। रास्ते में एक बगीचा लगता था। पूरा हराभरा बगीचा, पेड़ पौधों से भरा हुआ। योगेश रुककर देखने लगा, ये पेड़ दिन में छाव  बिखरते है। सुंदरता बिखरते है। हरेभरे रहते है और रात होते ही अजीब दिखने लगते है। अलग अलग आकार, परछाईया नजर आने लगाती है।

               कुछ पेड़ तो हवासे इस तरह झूमते है, झूलते है , जैसे कोई मदमस्त हाथी झूम रहा हो। हवा की सांय - सांय की आवाज, पत्तो की हलचल, अच्छे - खासे इंसान को डरा देती है। 

                और अगर हवा ना भी हो पूरी खामोशी हो तो भी रूह काँप जाती है। उसका ध्यान  बगीचे के अंदर गया।  कमाल है रात के 11.00 बज रहे है। अभी तक बगीचा खुला है। शायद वॉचमैन बंद करना भूल गया होगा। अंदर चहलपहल थी। हैरानी की बात ये थी की हर किसी की नजर उसपे थी। जैसे इन्तजार कर रहे हो, कब ये अंदर आएगा। ' यहाँ का वॉचमैन कहा गया ? अगर कुछ उच - नीच हो गई तो बिचारा बाद में परेशान होगा। '

                उसने चारो तरफ देखा कुछ दुरी पर उसे वॉचमैन नजर आया, वो किसी से बात कर  रहा था। " अरे अनिल " " जी साहब " " अरे रात के ग्यारह बज रहे है, अभी तक गेट बंद नहीं किया ? " " क्या साहब मजाक कर रहे हो, मुझे गेट बंद करके एक घंटा हो गया। दोस्त मिल गया था इसलिए बाते कर रहे थे। "

                "तो अंदर इतनी भीड़ क्यों है ? " अनिल हैरान हो गया। " क्या साहब मजाक करते हो। " उसने अजीब नजरो से योगेश की तरफ देखा। " अंदर कोई भी नहीं है। " " अच्छा साहब चलता हूँ। " और वो उसे घूरते हुए निकल गया। योगेश का सर चकरा गया। उसे गेट खुला दिख रहा था। अंदर लोग दिख रहे थे। और वॉचमैन कह रहा था की ताला लग चुका है। कही मै पागल तो नहीं हो गया ? वह झट से मुडा और घर की तरफ बढ़ा। 

                      चप्पल साइड में निकाली। तभी दरवाजा खुला। वह फिर चौक गया, मैंने तो बेल भी नयी बजाई तो इसने दरवाजा कैसे खोला। तभी विद्या बाहर आई। " तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी। " " क्यों ? क्या हुआ ? " " गांव से फोन आया था। आपकी मौसी गुजर गई। " " क्या ? " योगेश हैरान रह गया। उसकी एक ही मौसी थी, जिससे वो बेहद प्यार करता था।                                                                                                                                                                     "लेकिन कैसे गुजर गई ? मौसी ना तो बीमार थी , ना ही उसकी उम्र थी जाने की।  "  " ज्यादा बाते नहीं हो पाई। उन्होंने फॉरन निकलने को कहा है। " " फॉरन ही जाना पड़ेगा। " " एक काम करता हूँ, मै निकलता हूँ। " " नहीं मै आपको अकेला नहीं छोडूंगी। एक तो आपकी तबियत ठीक नहीं रहती। कुछ ना कुछ सोचते रहते है हालत देखि कैसी हो गई है ? " " मेरी चिंता छोड़ो तुम बच्चो का ख़याल रखो। उनके एक्झाम नजदीक आए है। "

                    विद्या उलझन में पड़ गई। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करे ? क्यों की योगेश की हरकते वह देख रही थी। पहले किसी बात से ना डरनेवाला योगेश अब हर बात से डर रहा था। शांतिपूर्ण जीवन पसंद करनेवाला योगेश अब हर बात पर रिएक्ट कर रहा था।

                     हर नॉर्मल बात उसे एब्नार्मल लग रही थी। और अगर वहा गया, जहा पहले ही हादसा हुआ है तो ये कैसे संभल पाएगा ? उसने कहा, " आप खाना खा लीजिए मै निकिता को बुला लेती हूँ। वह बच्चो का ध्यान रखेगी। लेकिन आपको अकेले नहीं छोड़ सकती। " " देखो विद्या जिद मत करो, मै बिलकुल ठीक हूँ। मै अभी निखिलसे मिलके आ रहा हूँ। " " क्या कहा उन्होंने ? " " कोई बड़ी बात नहीं है, थोड़ा अलग माहौल में जाऊंगा , तो ठीक लगेगा। " " फिर भी आप अकेले नहीं जाएंगे। और वह सही भी नहीं रहेगा। सगी मौसी थी आपकी। हम दोनों जा रहे है बस, आप खाना खालो। " 

                      योगेश समझ गया, विद्या उसे अकेला नहीं छोड़ेगी। उसे उस माहौल में भी ख़ुशी महसूस हो रही थी, क्यों की उसे विद्या जैसी बीबी मिली थी जो उसका इतना ख्याल रखती थी। और उसे बेहद प्यार करती थी। जान से भी ज्यादा। विद्या खाना परोसने लगी तो योगेश ने मना कर दिया, " अरे मै निखिल के यहाँ से खाके आया हूँ अभी इच्छा नहीं है। तुम निकिता को फोन करके पूछो वो क्या कहती है। "

                     विद्या ने निकिता से बात की। निकिता ख़ुशी ख़ुशी राजी हो गई। लेकिन वो इतनी रात को उनके घर नहीं आ सकती थी। निकिता विद्या की मुँह बोली बहन थी। उसने जाते जाते बच्चो को उनके घर छोड़ने को कहा। वो भी ठीक था। बच्चो की देखभाल करना जरुरी था। चाहे यहाँ हो या वहा। राहुल और रोहित वैसे भी समझदार थे 8 वी 10 वी के लड़के क्या परेशान करेंगे ? 

                  दरवाजे को ताला लगाकर चारो निकल गए। टॅक्सी पकड़के दोनों बच्चो को निकिता के यहाँ छोड़ दिया, योगेश और विद्या स्टेशन की ओर रवाना हुए। टिकिट निकालके प्लॅटफॉर्म पहुंचे, कुछ ही देर में ट्रेन आई, उसमे बैठ गए। ज्यादा भीड़ नहीं थी। तो आराम से जगह मिल गई। तीन चार घंटे में गांव पहुंचने वाले थे। इसलिए सोना ठीक नहीं था। 

                  अगले स्टेशन पर  बाजूवाला पैसेंजर उतर गया, तो योगेश को खिड़की के पास जगह मिल गई। वह उधर खिसक गया, और विद्या उसके बाजु में। ट्रेन शुरू हुई। वैसे खिड़की से ठंडी हवा अंदर आने लगी। तो विद्या सिहर के योगेश के पास चिपककर बैठ गई। और ठंडी हवा के वजह से दोनों  को नींद आ गई। 

                   " योगेश उठो,....  योगेश !" विद्या उसे हिलाहिलाकर आवाज दे रही थी। वह चौककर उठा, " क्या हुआ ? " " अरे हमें पिछले स्टेशन पे उतरना था। हम आगे आ गए। " अब ? " " अब क्या ?" " अगले स्टेशन पे उतरकर वापस पीछे आना पडेगा। कैसे नींद लग गई पता ही नहीं चला। " "अरे लेकिन हमें तीन चार घंटे लगने वाले थे। अभी तो टाइम था। तो इतने जल्दी से कैसे पहुंच गए ? अच्छा ही होता अगर हम नहीं सोते। तो दो घंटे में गांव पहुंच जाते।" तबतक अगला स्टेशन आ गया। और दोनों जल्दी उतर गए। 

                     रात का वक़्त था। स्टेशन खाली पड़ा था। गाडी से आने जाने वाले लोगो के बाद स्टेशन खाली हो गया और गाडी निकल गई।

                                                                                                                                                                                                TO BE CONTINUED......... ........       

                                                लेखक : योगेश वसंत बोरसे. 


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