झुठन - १ हिंदी भयकथा | Jhutan part 1 hindi horror story | hindi bhaykatha

झुठन - १ हिंदी भयकथा 


HINDI DARAWANI KAHANIYA
 हिंदी भयकथा 
part - 1 
                               लेखक : योगेश वसंत बोरसे 

        ठंडी !गुलाबी ठंडी ! ऐसा सुहाना मौसम जिसका हर प्रेमी इंतजार करता है ,इस मौसम में प्यार करने का मजा ही कुछ और होता है।कितना भी प्यार करो दिल नहीं भरता ! 

      ऐसा ही एक कपल ! दोनों एक दूसरे के प्यार में डुब चुके थे। हनिमून के लिए ये कपल एक हिल स्टेशन पर आया था।  शादी के दो दिनो बाद ही ये हनिमून के लिए घर से निकले थे।  चार पांच दिन रुकने का प्रोग्राम था।  सिर्फ और सिर्फ वो दोनों ! नो डिस्टर्बन्स ! न कोई रोकने वाला, न कोई टोकनेवाला ! 

   होटल भी बढ़िया था।  मतलब खास कपल के लिए ही बनाया गया था।  नो फॅमिली ड्रामा ! ONLY ENJOY ! 

    तो , ये दोनों ,श्रेयस और श्रुति ,रात के सुहाने मौसम में घूमकर होटल की और रवाना हुए।  दो दिन हो गए थे साथ में रह कर।  लेकिन दिल है की मानता नहीं ! ये दिल मांगे मोर ! थोड़ा और चलेगा ! थोड़ा और ! यही हाल था दोनों का !

    प्यार ऐसा ही होता है , दो पल चैन मिलता है , वापस बेचैनी ! दिल हमेशा तड़पता रहता है , उसकी प्यास नहीं बुझती ! 

  कब रूम में पोहोचेंगे और कब कॉट पर जायेंगे ऐसा उन्हें हो गया था।  और आखिर पोहोच ही गए।  कॉट पर दोनों ने अपने आप को झोंक दिया , दोनों की नजरे मिली ,फिर हाथ मिले ,फिर दो जिस्म एक दूसरे से टकराये ! दो जिस्म एक जान हो गए ! 

   स्वर्गीय सुख किसे कहते है इसका वो अनुभव कर रहे थे।  करे क्या ? कभी दिल की डिमांड ,कभी जिस्म की ! शायद इसीलिए 'हवस 'शब्द बना होगा ! 

  और वो पल आया.. रूम में जो फोन था उसकी घंटी बजी ! श्रेयस ने नाराजी से फोन उठाया। इमरजेंसी कॉल था ,अभी निकलना जरुरी था।  दोनों का दिल बैठ गया ! " अरे लेकिन हुआ क्या ?" श्रुति ने पूछा। "पापा गुजर गए ,और भैया भी !" "क्या ?" श्रुति से रहा नहीं गया।  लेंकिन  ऐसा क्या हुआ ?" "रात को बाइक से घर जा रहे थे ,टर्निंग पर बाइक स्लिप हो गयी ,सामने से आने वाले ट्रक के निचे भैया कुचल गए , और पापा डिवाइडर से टकरा गए !" 

  श्रेयस के जिस्म में जैसे जान ही नहीं थी ,कुछ ही क्षण पहले सपनोंकी दुनिया में खोनेवाले ,स्वर्गीय सुख का आनंद  लेने वाले श्रेयस और श्रुति व्यावहारिक दुनिया में लौट आये थे।  कपडे पहनके दोनों तैयार हो गए। जैसे तैसे सामान पैक किया।  और झट से निकले।  और कुछ ही घंटो में घर पोहोच गए।  

      घर में गहरा सन्नाटा छाया था।  श्रेयस की माँ समिधा चुपचाप बैठी थी।  उसकी आँखों से  एक भी आंसू नहीं निकल रहा था।  वही हाल श्रेयस की भाभी नीलिमा का था !नीलिमा की शादी होकर चार पांच साल ही हुए थे ,एक छोटी बच्ची थी ,'रिंकी 'ये सब बाते रिंकी के समझ के बाहर थी ,वो चुप चाप बैठी थी ,बस सहम गयी थी ,उसे शायद महसूस हो रहा था की कुछ बुरा हुआ है।  

    ये सब श्रेयस से देखा नहीं गया।  वो जोर जोर से रोने लगा।  उसकी आवाज से समिधा और नीलिमा चौक गयी ! और उन्हें ध्यान आया की क्या हुआ है ? और एक ही हल्ला मच गया ! श्रुति को समझ नहीं आ रहा था की किसको शांत करे ? अभी अभी शादी हुई थी ,अभी अभी इस घर में आयी थी।  ठीक से सब के साथ बात भी नहीं हुई थी।  न ही अटैचमेंट हुई थी।  लेकिन इंसान जिस हालत में रहता है उसपर उस हालत का असर हो ही जाता है।  

  अगर  कोई हसेगा तो हम हसते है ,कोई रोयेगा तो हमें भी रोना आता है।  ऐसा सबके साथ नहीं होता लेकिन ज्यादातर लोगो के साथ ऐसा होता है ,किसी का दुःख बर्दाश्त नहीं होता।  कुछ न सही आँखों में आंसू तो आ ही जाते है। मतलब श्रुति भी रोने लगी।  और रोते रोते बाकि लोगो को शांत करने का प्रयास करने लगी।  

   बाकि रिश्तेदार ,पडोसी भी आगे आये ,जैसे तैसे सबको शांत किया।  बहोत वक़्त गुजर गया था।  अंत्यविधि करना जरुरी था।  पोस्ट मार्टम हो चूका था। डेड बॉडीज घर पे आ गयी थी ,इसलिए तैयारी की गयी।  सब विधि संपन्न हुए।  और जाने अनजाने में श्रुति पर ऊँगली उठी।  'इसके आने के बाद ही ये हुआ ,ये अपशकुनी है !' 'पति के घर में पाँव रखते ही ससुर और जेठ को खा गयी !' 

    श्रुति को समझ नहीं आ रहा था की इसमें उसकी क्या गलती है ? ये तो एक्सीडेंट केस है ! मै तो यहाँ थी भी नहीं ? लेकिन नई दुल्हन थी ,कुछ भी नहीं बोली , माँ बाप ने भी चुप रहने को कहा और चले गए।  वो चुप चाप सबकी बाते  सुनती रही।  देखते ही देखते घर खाली हो गया।  और घर में ये चार पांच लोग रह गए ,समिधा ,नीलिमा ,रिंकी , श्रेयस और श्रुति !

   श्रुति को महसूस हो रहा था की घर का माहौल उसके लिए ठीक नहीं है ,कोई उसके साथ सीधे मुँह बात तक नहीं करता।  श्रेयस तो उसकी और देखता भी नहीं था ,श्रुति को बेवजह गिल्टी फिलिंग आने लगी। अपनी गलती क्या है उसे अभी तक समझ नहीं आ रहा था।  लेकिन किससे पूछे ? कोई बोलेगा तो न ? ऐसे ही दो तीन दिन गए। 

       और ऐसी ही एक रात ! श्रेयस और श्रुति अपने बैडरूम में सोये थे।  श्रुति उलझन में थी सोच रही थी।  और  श्रेयस उससे दुरी बना के सोया था।  श्रेयस का मासूम चेहरा उससे देखा नहीं गया। बाप और भाई के जाने के बाद जैसे वो अनाथ हो गया था।  श्रुति को सहन नहीं हुआ।  वो श्रेयस से लिपट गयी।  "बहु अपने आप को सम्भालो !" श्रुति को जैसे झटका लगा।  वो पीछे हट गयी , इधर उधर देखा।  'श्रेयस के पापाने आवाज दी ? मुझे ? लेंकिन  वो तो ..... वो घबरा गई। ' ये क्या चक्कर है ?' 

   उसने नैपकिन लिया , रगड़ रगड़ के मुँह साफ किया ,उसे लगा शायद मुड चेंज हो जाये ,पसीना कम हो जाये ? इतनी ठण्ड में भी पसीना छूटा था ,वो भी ठंडा !  वो फ्रेश हो कर आ गयी और कॉट पर सो गयी। उसने मुँह पर शॉल ओढ़ ली।  लेकिन आँखे खुली की खुली थी।  जो चल रहा था वो समझ के परे था।  सोचते सोचते कब आँख लग गयी ,पता ही नहीं चला।  कुछ ही देर में श्रेयस का हाथ नींद में उसके बदन पर पड़ा।  वैसे वो नींद में ही उसकी आगोश में खो गयी।  

  " क्या है ये भाभी ? थोड़ी तो शर्म करो !" वापस आवाज आयी।  लेकिन अब उसे समझ में आ गया था की ये बात श्रेयस ने ही की है।  उसके दिमाग में चीटिया दौड़ने लगी।  वो झट से उठकर बैठी।  उसने श्रेयस को भी हिला हिलाकर जगाया।  "श्रेयस उठो ! श्रेयस उठो ना ! आँखे मलते मलते श्रेयस उठकर बैठ गया।  "क्या हुआ श्रुति ? क्यों चिल्ला रही हो ? " 

    श्रुति को गुस्सा आ गया। " तुम्हारा क्या चल रहा है ? कभी बहु कहते हो !कभी भाभी कहते हो ? तुम्हे अगर मेरे पास नहीं आना है तो वैसे कहोना ! लेकिन उनका नाम लेकर मुझे तकलीफ क्यों दे रहे हो ? " "कौन मै ?" श्रेयस को आश्चर्य हुआ।  "लेकिन मैंने तुम्हे क्या किया ? मैंने तो तुम्हे हाथ भी नहीं लगाया ? " 

    "मै वही बात कर रही हूँ। पापा गुजर गए , जेठजी गुजर गए ! इसमें मेरी क्या गलती है ?वो तो एक्सीडेंट था।  जो हुआ बहोत ही बुरा हुआ ! लेकिन सब लोग मुझे क्यों जिम्मेदार मान रहे है ?मैंने क्या किसीका बुरा किया है ?" और बाते करते करते वो रोने लग गयी।  श्रेयस को भी उसपर तरस आया।  'बेचारी ,जो कुछ हुआ ,इसमें इसकी क्या गलती है ? लेकिन दो तीन दिन से मैंने भी इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।  बात तक नहीं की।  इसलिए ये टूट गयी है।'  

   श्रेयस ने उसको अपनी और खींच लिया।  श्रुति उससे लिपट गयी।  और दोबारा रोने लगी।  श्रेयस उसके मुलायम बालोंपर हाथ फेरता रहा।  उसे थपकता रहा। थपकते थपकते हाथ निचे आने लगा ,वैसे श्रुति को सुखद अनुभव होने लगा।  बदन में सुखद संवेदना उठने लगी।  उसने धीरे से आँख खोली ,और श्रेयस की तरफ देखा।  तो उसे जैसे झटका लगा।  श्रेयस उसके खिले हुए बदन को किसी भूखे दरिंदे की तरह देख रहा था। ये नजर श्रेयस की नहीं है ! ये स्पर्श भी श्रेयस का नहीं है।  

   वो जोर से चिल्लाई ,"श्रेयस छोड़ो मुझे ! छोड़ो ! दूर हटो !" और उसने शॉल से पूरा बदन ढक लिया।  उसकी आवाज से जैसे श्रेयस को झटका सा लगा।  "श्रुति क्या हुआ ?" "क्या हुआ ? अरे तू है कौन ? " "मै कौन ? अपने पति से पूछ रही हो कौन है करके ? " "नहीं ! तुम मेरे श्रेयस नहीं हो ! मेरा श्रेयस ऐसा कभी नहीं करता !तुम दूसरे कोई हो !" 

  "श्रुति यहाँ आओ ! "दोबारा कोई दुसरी ही आवाज गुंजी।  लेकिन अभी आवाज में आक्रमकता थी।  "तुम आती हो या मै आऊँ ?" और उसे सोचने के लिए वक्त ही नहीं मिला ,श्रेयस उसपर टूट पड़ा।  उसने एक ही झटके में उसकी शॉल खींच ली।  और भूखे शेर की तरह उसपर टूट पड़ा।     नहीं शेर की तरह नहीं ,उसे शेर कहना शेर का अपमान था।  ऐसे दरिंदे की तरह जो सदियोसे स्त्री शरीर पाने के लिए तड़प रहा हो, मचल रहा हो ,और आज कोई हाथ लगा था वो भी ऐसी स्त्री ,जिसकी अभी अभी शादी हुई थी ,हल्दी भी नहीं छूटी थी।वो उसके साथ जैसे खेलने लगा।  उसने श्रुति को अपने निचे खींच लिया।  

    पहले श्रुति काफी एक्साइट हुई।  उसे श्रेयस का ये अंदाज, ये आक्रमकता अच्छी लगी।  वो स्वर्गीय आनंद में डूब गयी।  उसकी आँखे असीम सुख के कारण बंद हो गयी।  लेकिन कुछ ही समय में उसे एहसास हुआ की श्रेयस रुकने का नाम नहीं ले रहा था ,उसे ऐसा लगने लगा जैसे हर बार कोई नयी  व्यक्ति उसका भोग ले रही हो।  बस शरीर श्रेयस का था।  

      परिणाम वही हुआ ,जो हो सकता था।  श्रुति की चीखे निकलने लगी।  श्रेयस के शरीर में जो कोई था वह किसी शैतान की तरह हसता रहा और अपना काम करता रहा।  उनकी आवाज से समिधा और नीलिमा की नींद खुल गयी।' ये क्यों चिल्ला रही है ?क्या हुआ ? पहली बार तो नहीं है ?' दोनों श्रेयस की बैडरूम की ओर भागी।  और दरवाजा पीटने लगी।  "श्रुति ,श्रेयस क्या हुआ ?" लेकिन श्रुति का चिल्लाना कम नहीं हुआ।  और एक विकृत विकट हास्य उस घर में गूंजने लगा ,और हुंकार भी ! समिधा ,नीलिमा डर गयी और  समझ भी गयी की ये श्रेयस की आवाज नहीं है।  फिर किसकी है ?'कुछ भयानक हो रहा है ,बहोत ही भयानक हो रहा है।  

      कुछ अमानवी शक्तिया घर में घूम रही है ये वो समझ गयी।  समिधा पहले ही शोक में थी।     उसमे और ये नई समस्या ! उसे टेंशन सहन नहीं हुआ ,वो चक्कर खाके निचे गिर पड़ी।  नीलिमा समझ नहीं पा रही थी , श्रुति को बचाये या सास को संभाले ! लेकिन श्रुति दरवाजे के पीछे थी ,और सासु माँ नजरोके सामने !दोनों को बचाना जरुरी था लेकिन अब आवाज आनी बंद  हो गयी थी।  बस श्रुति की सिसकिया सुनाई दे रही थी।  नीलिमा ने समिधा के चेहरेपर पानी छिड़का। 

     कुछ ही पल में समिधा उठकर बैठ गयी। दोबारा दोनों समिधा को बचाने के लिए दरवाजा पीटने लगी। कुछ ही देर में दरवाजा खुला और श्रुति बाहर आ गयी।  श्रुति की हालत देखकर उसे झटका लगा ,नीलिमा झट से भागी और चददर ले आयी ,और श्रुति का पूरा बदन ढक दिया। श्रुति नीलिमा से लिपट गयी और सिसकने लगी।  नीलिमा की आँखे भर आयी। वो भी एक औरत थी ।  श्रुति ने क्या सहा होगा ये उसकी हालत देखकर पता चल रहा था।  'श्रेयस ऐसा करेगा ?इतनी दरिंदगी ?नामुमकिन !' लेकिन अभी ये वक़्त नहीं था ,ये सब सोचने का !न ही किसी सवाल का जवाब ढूँढ़नेका । फ़िलहाल तो श्रुति को संभालना जरुरी था।  

   श्रेयस क्या कर रहा है ये देखने की उनकी हिम्मत नहीं हुई। नीलिमा ने बाहर से दरवाजा लॉक कर  लिया और श्रुति को बाथरूम में ले गए।  उसे गरम पानी से नहलाया।  तो श्रुति को जरा होशियारी महसूस हुई।  लेकिन अपने बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है ये देखकर वो शरमा गई। उसे लज्जित महसूस होने लगा।  

     समिधाने उसे समझाया "घबरा मत ,तू मेरी बेटी जैसी है।  अपने आप को संभाल ,टॉवल ले ,और कपडे पहन ले।  फिर अगर तुम्हे लगे तो बताना क्या हुआ ?ठीक है ?" "नीलिमा इसके लिए थोड़ी चाय बना ,उसे अच्छा लगेगा।  समिधा ने  नीलिमा से कहा। ओर श्रुति को लेकर उसके बेडरूम में गयी।  चाय पिने के बाद श्रुति को जरा अच्छा लगा। पूरा बदन दर्द कर रहा था।  लेकिन मन की अवस्था बुरी थी।  जो हुआ वो अच्छा भी लगा था और बुरा भी।                               क्या अच्छा ?क्या बुरा ?वो समझ ही नहीं पा रही थी।  समिधाने उसे प्यार से सहलाया , और पूछा श्रुति क्या हुआ ? वैसे श्रुति उससे लिपट गयी।  नीलिमा पास में ही बैठी थी।  श्रुति ने जो बताया वो इतना भयानक था की दोनों के रोंगटे खड़े हो गए।  लेकिन श्रुति ने ससुर का या अपने जेठ का जिक्र नहीं किया ,उन्होंने तो उसे सावधान किया था ,लेकिन श्रुति को समझ ने में देर लग गयी।  और जो कुछ हुआ वो अत्यंत अमानवी था।  इतनी घिनौनी हरकत कोई नजदीकी व्यक्ति कर ही नहीं सकता।  ये बात तीनो के समझ में आ गयी थी ।

     लेकिन अब आगे क्या करे ? मतलब तो साफ था ,श्रेयस के शरीर में कुछ अतृप्त आत्माओने प्रवेश किया था। और वो उसका इस्तमाल कर के अपनी इच्छाएं पूरी कर रही थी।  उसमे आज श्रुति बलि चढ़ गयी थी।  और शायद आगे भी। .... 

    लेकिन ये सब हुआ कैसे ?और कहा पर ?हिल स्टेशन पर या समशान में जाने के बाद ?समिधा सोच रही थी।  उसे अंदाजा हो रहा था।  इसमें से कुछ हिल स्टेशन पर हुआ ,और कुछ समशान में।  उसने नीलिमा की तरफ देखा नीलिमा भी वही सोच रही थी।  समिधा की नजरो में जो सवाल था वो नीलिमा समझ गई।  उसने श्रुति से पूछा "श्रुति एक बात पुछु ?"श्रुति ने उसकी ओर देखा।  "जब फोन आया था तब तुम दोनों ......" नीलिमा को आगे की बात करने की जरुरत नहीं पड़ी।  श्रुति ने सर झुका लिया ,उसमे ही वो समझ गयी।  

        " मतलब तुम लोग बगैर नहाए ,धोए ,वैसे ही यहाँ पोहोच गए।  हिल स्टेशन था तो रास्ता भी वीरान ही होगा या जंगल से होगा।  और ऐसा फोन आने के बाद कौन नहाएगा ?ये दोनों वैसे ही उठकर यहाँ आ गए।  उसके बाद श्रेयस समशान भी गया। " "श्रुति ,तुम्हे और श्रेयस को भी नहाकर निकलना चाहिए था।  जो गलती तुम्हे टालनी थी ,तुम दोनों ने वही कर दी।  वरना ये मुसिबत घर तक नहीं आती !" श्रुति सन्न हो गई।  उसे यकीं नहीं हो रहा था की ऐसा भी हो सकता है।  विश्वास करना चाहिए या नहीं ?ये सवाल ही नहीं था ,जो हुआ था उसने सहा था ,और जो हुआ था वो किसी इंसान का काम नहीं था।  

    लेकिन इससे छुटकारा कैसे पाए ? श्रेयस को इसमेसे बाहर कैसे निकाले ?क्योकि लड़ाई शैतानी ताकदो से थी !और वो काफी ताकदवर थी ! जवाब किसी के पास नहीं था !.....                 

                                          TO BE CONTINUED ........ 

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                                                                लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 

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