बदला - हिंदी भयकथा | Revange - hindi horror story
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" अगर मै तुमसे कहुँ, कुए मी कूद जाओ, तो क्या कूद जाओगे ? "
" हाँ क्यों नहीं, तुम कह कर तो देखो ! "
" बेवकुफो जैसी बाते मत करो, इतना भी प्यार अच्छा नहीं की तुम्हारी जान पर आए। "
शिला रवि को समझा रही थी। दोनों तालाब के पास बैठकर बाते कर रहे थे। तालाब बड़ा था। गहरा था। पानी बहुत था। दिनभर वहाँ भीड़ रहती थी। शाम को तो कुछ ज्यादा ही रहती थी।
शिलाने रविसे कहाँ,
" देखो मेरी शादी तय हो गई है, मै अब तुमसे मिलने नहीं आ पाउंगी। अच्छा होगा की तुम भी संभल जाओ। "
" नहीं मै तुम्हे ऐसे छोड़ नहीं सकता, मै मर जाऊंगा। " रवि तालाब की ओर देखते हुए बोला।
शिलाने कहाँ,
" ठीक है, तुम्हारी मर्जी। "
और वहाँसे उठकर जाने लगी। रवि आवाज देता रहा, लेकिन उसने पीछे मुड़के नहीं देखा,
" शिला मै सचमुच मर जाऊंगा ! " रवि जोर से चिल्लाया।
" तुम्हारी मर्जी। "
रवि ने आव देखा ना ताव , वो तालाब में कूद गया। तालाब गहरा था। पानी बहुत ज्यादा था। इसका एहसास उसे कूदने की बाद हुआ, लेकिन अब देर हो गयी थी।
उसके पानी में गिरने की आवाज से सब लोग उधर भागे। शिला हड़बड़ा गई, उसे यकीन नहीं हो रहा था, की ये बेवकूफ ऐसा करेगा। लेकिन अभी देर हो चुकी थी। कुछ लोग तालाब में कूदे। थोड़ी ही देर में रवि की बॉडी बाहर निकाली गयी। उसका काम तमाम हो चुका था। वो अब इस दुनिया में नहीं था।
शिला हैरान थी, कुछ देर पहले उसे पागलों की तरह प्यार करने वाला उसके साथ था, और अब उसकी बेवकूफी की वजह से वो दुनिया मै नहीं था। एक इंसान की उसकी वजह से मौत हो गई थी। वो घर पहुँची, किसी को क्या बताती, चुपचाप बैठी रही।
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शादी का दिन आया, तैयारियाँ होने लगी। शाम को शादी थी। मेहमान आने लगे, दुल्हन को मंडप में लाया गया। वो आके बैठी, और उसकी नजर सामने के चेयर पर गई , और वो हैरान हो गई। सामने जो बैठा था, वो उसे पहचानती थी।
जो अब इस दुनिया में नहीं था। वो उसे घूर रहा था, आँखो मे नफरत थी। बदले की भावना थी। शिला को समझमे नहीं आ रहा था, की क्या करे ? तभी वो उठकर पास आ गया। उसे लगा कोई उसे देखेगा , तो हंगामा हो जाएगा, लेकिन वो गलत थी। रवि के होने का एहसास उसके सिवा किसी को नहीं था।
वो उसके पास आकर बोला,
" अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, ये शादी कॅन्सल कर दो, वरना मै तुम्हारा वो हाल करूंगा की तुम्हारी रूह काँप उठेगी !"
और वो वहाँसे चला गया , लेकिन शिला मजबूर थी , वह चुपचाप बैठी रही। जो होगा उसे सहने के लिए मजबूर थी।
थोड़ी ही देर में शादी संपन्न हुई। शिला ने राहत की साँस ली। बारात निकली , वो अपने ससुराल पहुँची।
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.... सुहागरात थी। वो घूंघट ओढ़े बैठी थी। रवि का चेहरा उसे हरपल सामने नजर आ रहा था। चाहकर भी भूल नहीं पा रही थी। वह जानती थी, की यह गलत है, लेकिन दिल मानने को तैयार नहीं था।
और उसे दूल्हे की आहट सुनाई दी। वह आया, उसने दरवाजा बंद किया, उसके पास आकर बैठा वह सर झुकाए बैठी थी। दूल्हे ने अपने हाथ से उसका चेहरा ऊपर किया।
शिलाने जैसे ही सामने का चेहरा देखा, उसके पसीने छूट गए।
वो जोर से चिल्लाई, और दरवाजे की तरफ भागी।
दरवाजा बंद था। वो खिड़की की ओर भागी। खिड़की खोली और वहाँसे बाहर कूद गई।
बाहर अंधेरा था। वो लड़खड़ाती, भागती जाने लगी। थोड़ी देर में भागते भागते उसकी साँस फूलने लगी। वह थक गई और एक जगह जाके बैठ गई।
" क्या हुआ, इतनी डरी हुई क्यों हो ? "
वो आवाज से चौक गई। आवाज पहचान की थी, रवि की थी। वो पास मै बैठा था। और उसकी आवाज गूंज रही थी।
" तुम मुझे छोड़के नहीं जा सकती, तुम्हे मेरे साथ ही रहना पडेगा। "
शिला पहले ही थकी हुई थी, घबराई हुई थी। रवि की आवाज सुनते ही उसका सर चकराने लगा और वो पीछे की ओर गिर गई।
पीछे कुआ था !
पीछे गिरी तो सीधा कुए में !
जोर जोर से चिल्लाई ,लेकिन उसकी आवाज सुनने वाला रविके सिवा वहाँ कोई नहीं था।
उसके चेहरे पे मुस्कुराहट थी । वह उसी को घर रहा था। शिला हाथ पांव मारती रही लेकिन फायदा नहीं हुआ !
रविने अपनी शिला को अपने पास बुलाया था , और अपने साथ ले गया था................
-: THE END :-
लेखक : योगेश वसंत बोरसे.
