आप बीती -६ - हिंदी भय कथा -HINDI HORROR STORY
हिंदी भयकथा |
लेखक : योगेश वसंत बोरसे.
योगेश ने वही किया जो शायद उसे नहीं करना चाहिए था। लेकिन उसने ठान लिया था ,'ऐसे ही ये लोग मुझे पागल समझ रहे है तो क्यों न कुछ वैसा ही करू ? वैसे भी मेरी किसी को जरुरत नहीं है !मौसी बराबर कहती थी ,माँ ने कभी मुझे अपना समझा ही नहीं। मौसी अच्छी थी ,वो भी मर गयी ,सुरेश भी ! अब क्या करे ?'
'दुनिया में ऐसा क्यों होता है ?अच्छे लोग मर जाते है और तकलीफ देने वाले ज्यादा दिन जीते है ?' वो स्टॅंड पर आ गया। और वहा जाने की ठान ली जहाँ सुरेश मिला था। वो गाड़ी की पूछताछ करने लगा ,लेकिन तबतक दोपहर ढल चुकी थी ,शाम हो रही थी। कोई गाड़ी मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे थे।
'घर से बाइक लेता तो उसपर निकल जाता। लेकिन वो दीपक भी नाटक करता है ,भाई है या दुश्मन पता नहीं। अगर दूसरा कोई होता तो भाई की फिक्र करता। साए की तरह साथ में रहता। वो ढाबेवाले ने भी न बोल दिया। अगर वो गाड़ी का इंतजाम कर के देता तो ? लेकिन वो क्यों देगा ?' 'और इतने पैसे भी साथ में नहीं लाया हूँ के प्राइवेट गाड़ी कर लूँ। बस से ही निकल जाता हूँ। वैसे भी मुझे कहाँ घर जाना है ? सुरेश को वहा मिलूंगा ,बाद में फैसला करूँगा ,कहाँ जाना है ? लेकिन क्या वो वहां मिलेगा ?नहीं मिला तो ?'
तभी बस आ गयी ,और वो बिना ज्यादा सोचे बैठ गया। क्या सही क्या गलत सोचके कुछ फायदा नहीं था। कुछ ही देर में अँधेरा होने लगा ,योगेश खिड़की के पास बैठा था। ठंडी हवा लगने से आँख लग गई। सुबह से कल रात से जो कुछ हुआ था सब सामने आने लगा। हर बात याद आने लगी ,और वो मन ही मन चौक गया।
' मै क्या करने जा रहा हूँ, ऐसा तो मै नहीं था। मैंने आज दिनभर जो किया वैसा तो मै बिलकुल नहीं हूँ तो फिर मैंने ऐसा क्यों किया ? नहीं मेरा जाना ठीक नहीं। बच्चे छोटे है, विद्या बेचारी मेरी फ़िकर में आधी हो गई होगी। माँ, मेरा कितना ख़याल करती है। नहीं मुझे वापस जाना चाहिए।'
' लेकिन फिर पता कैसे चलेगा की सुरेश ने छोड़ा या कोई और था। ' वो खड़ा हो गया और बस की घंटी बजा दी। कंडक्टर हैरान हो गया। "बेल किसने मारी ? " " मैंने ! " योगेश ने कहाँ, " मुझे यहाँ उतरना है। "
कंडक्टर चकरा गया। " भाईसाहब आपको पता भी है, आप क्या कर रहे हो ? शायद नए आए हो। देखो, ये इलाका बहुत ही खतरनाक है। यहाँ अकेले रहना खतरेसे खाली नहीं है, अकेले घूमना ठीक नहीं है। जहाँ का टिकट निकाला वहाँ उतर लेना, चलो भाई" उसने ड्रायव्हर से कहा।
बस निकलने लगी। योगेशने फिर से घंटी बजाई, "मुझे यही उतरना है। " कंडक्टर समझ गया, ये कोई सरफिरा है। वो दरवाजे के पास आया, बस रुक गई, दरवाजा खोला।
" उतरो। " उसने योगेश से कहा। योगेश उतर गया। बस चली गई। अंधेरा, चारो ओर अंधेरा। घनघोर अंधेरा। ना बंदा ना बंदे की जात। कुत्ता भी नहीं था आसपास। कही दूर से आवाजे आ रही थी उनके रोने की।
' मनहूस कही के, ऐसे रो रहे है जैसे इनका कोई मर गया है। ' योगेश बड़बड़ाता रहा।' अभी वापस कैसे जाए, घर पर सब परेशान होंगे, जाए तो कैसे जाए।' वो धीरे धीरे उसी दिशा में चल दिया जहा से बस में बैठा था। 'अगर इधर ना आता तो आराम से घर पे बैठा होता। रिश्तेदारों के साथ बाते करता और कल वापस घर निकल जाते। लेकिन नहीं मुझे सुरेश को मिलने की पड़ी थी। मरे हुए आदमी से मिलने के लिए ज़िंदा लोगो से बैर कर लिया, अभी लग रहा है मै सचमुच पागल हो गया हूँ।'
कितनी बार पीछे मुड़कर देखा, उसे भी पता नहीं चला। अभी तो भूख भी लग गई थी, और प्यास भी। और दूरदूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था। रात बढ़ गई। 'इतने समय में एक भी गाडी ना आई है ना गई है। इतना भी क्या डरना भूतों से !'
अरे वो क्या अलग होते है, वो भी तो आत्माही होती है। हमारे अंदर भी तो आत्मा होती है। तो हम क्या डरते है ! इच्छा अधूरी रहती है, उनकी आत्मा भटकती है। इच्छा पूरी हो जाने के बाद आत्मा को शांती मिलती है। फिर वो क्यों भटकेगी ? '
यह विचार दिमाग में आते ही वो रुक गया। 'इसका मतलब सुरेश को मुझे मिलना था इसलिए वो भटक रहा था। जैसे ही मै मिल गया उसकी वह इच्छा पूरी हुई। अगर उसकी वही एक इच्छा हुई तो वो वापस नहीं दिखेगा। लेकिन और कोई इच्छा बाकी होगी तो जरूर मिलेगा। लेकिन कैसे पता लगेगा की उसकी अंतिम इच्छा पूरी हुई की नहीं ?'
कुछ दुरी पर एक बड़ा सा पेड़ था। और वहा थोड़ा बैठने की जगह भी थी। वहा पहलेसे कोई बैठा था। "कौन है ?" योगेश ने आवाज दी। " आओ बेटा। " योगेश झिझकते हुए वहा पहुंचा। " कौन हो तुम ? " " क्या फरक पड़ता है ? तुम्हारा भी कोई नहीं, मेरा भी कोई नहीं। " " तुम्हे किसने कहाँ की मेरा कोई नहीं। परिवार है, माँ है , भाई है। " " बेटा वो कहाँ किसीके होते है ? जो तुम्हारे होंगे ? अगर होते तो तुम इस वीराने में क्यों घूमते ? " " ये क्या वीराना है ? रास्ता है, लेकिन सुनसान है।"
और लोग डर के मारे नहीं आते। इसलिए सुनसान है। " " अरे उसे ही तो वीराना कहते है। " " मुझे बेवकूफ मत समझो मै लेखक हूँ। और फिल्मे भी देखता हूँ। वीराने मे तो भूत होते है। यहाँ तो एक भी भूत नहीं है। "
" खैर छोड़ो, ये बताओ तुम यहाँ क्यों घूम रहे हो ? तुम्हे डर नहीं लगता ? " " फिलहाल तो प्यास लगी है, " " तो पानी पीओगे ? " " यहाँ कहाँ पानी मिलेगा ? " " अरे ज़रा सुनो तो , ज़रा पानी लाओ।" कोई झट से पेड़ से निचे आया पानी लेके। योगेश की हँसी निकल गई।
" ये पानी लेके पेड़ पे क्या कर रहा था?" " ये रोज वही काम करता है। जो प्यासा हो उसे जाके पानी पिलाता है। " " क्यों उसको कोई कामधंदा नहीं है ? " " नहीं काम ही करता था। प्यासा ही मर गया। तो अब लोगो की प्यास बुझाता है। " योगेश के हाथ से पानी का लोटा निचे गिर गया। "क्यूँ ,क्या हुआ ? डर गए ? " "नहीं ! मै क्यों डरूंगा ?वैसे मजाक अच्छा कर लेते हो ! वैसे एक बात बताऊँ ,मैंने इतनी स्टोरीज खुद लिखी है ,बनाई है ,इतने भूतोंको पैदा किया है की मेरा डर ही मर गया है। " "तो तुम्हे ख़ुशी होगी ?" "नहीं उसमे क्या खुश होना ?"
..... "मौसी मिल गई तो ?"वो यहाँ क्यों मिलेगी ?" "क्यों ?तुम ही तो कह रहे थे की अगर किसी की इच्छा अधूरी होती है तो वो भूत बन जाता है !" "मैंने ऐसा कब कहा ?" "तो कब से क्या बड़बड़ा रहे हो ? वैसे तुम्हे पता भी है ,तुम्हारी मौसी कैसे मरी ?" ये बात योगेश को चौकाने वाली थी। न उसे किसीने बताया था ना उसने किसीको पूछा था ,की मौसी को अचानक क्या हुआ ?
"आपको पता है मौसी को क्या हुआ था ?" "हाँ बेटा ! तुम्हारी मौसी डर गई थी। " "किससे ?" "कोई था,जो पूरी तरह जल गया था।वो उसे हर जगह दीखता था !" "कौन सुरेश ?" "नहीं !वो बेचारा तो उधर ही मर गया था।भला आदमी था। वो क्या किसीको तकलीफ देगा ?" "तो कौन था ?" उनका कोई पडोसी था ,वह बुरी तरह जल गया था , लेकिन जिन्दा था ! उसे जैसे तैसे घर लाया गया था। जोर जोर से चिल्ला रहा था , और एक रात चिल्लाते चिल्लाते ही दम तोड़ दिया। मौसी को दिखता था ,बाते करता था ,मौसी परेशान हो गयी ,ना सो पाती थी , ना ठीक से खा पाती थी। ऐसे कितने दिन रहती ? बीमार पड गयी और मर गई !"
योगेश सोचने लगा 'इतनी बड़ी बात मुझे किसीने बताई नहीं ? 'तभी आवाज आई "तुम्हे कौन बताता ?सबको लगता है की तुम कहानियाँ लिखते लिखते पगला गए हो। और डरते भी हो !" "मै नहीं डरता !" "बेटा कहानिया लिखना अलग बात है और सच्चाई अलग होती है !
अभी और कुछ सच्चाई बाकी है ?और मुझे पूरा यकीं है की ऐसा कुछ नहीं होता !" "सुरेश मरा था ,उसने तुम्हे गांव तक छोड़ दिया था ,तो भी तुम्हे यकीन नहीं है ?" "नहीं ,सुरेश मर गया ये बात सही है ,लेकिन मुझे गांव तक छोड़ा था वो कोई और होगा। वरना क्या भूत भी गाड़ी चलाते है ?वो गाड़ी कहाँ से लाएगा ?गाड़ी क्या पानी पे चलती है ,या हवा पे ?"उसमे कुछ डालना पड़ता है तो चलेगी। उसके लिए पैसा कहाँ से लाएगा ? कोई था जो सुरेश के नाम से हमें वहा छोड़ गया था ,उसके जैसा ही लगता था लेकिन सुरेश नहीं था। और मै वही पता लगाने के लिए घर से निकला था। "
"तो मिला वो ?" "नहीं अभी तक तो नहीं मिला !" "तुम्हे उसका हुलिया याद है ?कैसा दिखता था ?" "ज्यादा नहीं ,लेकिन थोड़ा बहोत याद है ,क्योंकि ज्यादा रौशनी तो थी नहीं ,और उसने कुछ जर्किन जैसा पहन के रखा था !" "ऐसे ?" " हां ऐसे !"योगेश ने झट से बोल दिया ,और वो हैरान हो गया ,उसका मुँह खुला रह गया और वो उधर ही गिर गया !
क्योंकि सामने वही खड़ा था जिसने उन्हें गांव तक छोड़ा था ! उसकी आँख खुली तो दिन निकल आया था ,और उसके चेहरे पर कोई झुका हुआ था। जो मुँह पर पानी मारकर उसे जगा रहा था। "भैया ,ठीक तो हो ना ?"
'दीपक ? ये यहाँ क्या कर रहा है ?'"भैया ,ठीक तो हो न ?" योगेश उठकर बैठा। " मै यहाँ कैसे ? " "क्या भैया आप भी ?हम लोग रात भर कितना परेशान थे। ये कहा गए होंगे ? क्या कर रहे होंगे ? और सुबह आप हाई वे के पास बेहोश पड़े मिले ,वहा क्या कर रहे थे ?" 'हाईवे के पास लेकिन मै तो वहाँ .........'
योगेश सोच में पड़ गया ,इसका मतलब उसने मुझे वापस यहाँ पर छोड़ा ! दूसरी बार ! तभी विद्या आई। "जी अब कैसा लग रहा है ?"विद्या के चेहरे पर फिक्र थी। "मै बिलकुल ठीक हूँ। फिक्र मत करो। " चलो निकलते है ,बच्चे अकेले है ,इंतजार कर रहे होंगे ! " "नहीं अभी हम कही नहीं जायेंगे ! आप अभी तक ठीक नहीं हुए है !"
"क्यों ?" " मुझे क्या हुआ ?" " कुछ नहीं !" "बताओ भी !" "कुछ नहीं जी !... दीपक भैया बता रहे थे..... की.... आप के.. ऊपर.... मौसीजी का... साया है...!" "क्या?"........
THE END .
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लेखक :योगेश वसंत बोरसे
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