उल्लू हिंदी भयकथा | The owl - Hindi horror story | hindi bhaykatha

उल्लू - हिंदी भयकथा | The owl -  Hindi horror story


HINDI KAHANIYA
 HINDI HORROR STORIES

                        उल्लू -THE OWL

        पेड़ पर बैठे उल्लू की तरफ ध्यान गया ,और धड़कन बढ़ गई।  उसका रहना ,दिखना अशुभ क्यों माना  जाता है ? ये उसे देखकर ही पता चल रहा था।  घर के सामने बड़ा सा पेड़ था।  पेड़ काफी पुराना  था।  वैसे तो हमारा घर भी काफी पुराना था। पुरखो की धरोहर ,जायदाद ,पीढ़ी दर पीढ़ी संभाली गयी थी ,जतन की गयी थी। पूरा वाडा ,पूरा मकान पत्थरोंसे बनाया गया था।  

       आजु -बाजु कुछ पेड़ पौधे जानबूझकर लगाए गए थे।  कुछ आ गए थे।  बरगद के पेड़ , पीपल के  पेड़ ! ऐसेही एक पेड़ के ऊपर ,पीपल के पेड़ पर वो बैठा था।पेड़ बड़े होने के कारन पंछीयोने अपना आशियाना बना के रखा था।  दिनभर अपना पेट भरने के लिए ,बाहर रहने वाले पंछी शाम होते होते अपने घर लौटे थे ,और किलबलाहट से माहौल जाग उठता। लेकिन क्या हुआ ?समझ में नहीं आया।  मतलब जब तक समझ में आया तब तक देर हो चुकी थी।  पंछी आते है ,जाते है ,उसमे क्या बड़ी बात है ? तोते, चिड़िया ,कौए ,बगुले ,कबूतर जैसे सब पंछियो की आवाजाही रहती थी !

        लेकिन धीरे धीरे ये पंछी कम होने लगे।  मैंने सोचा अच्छा हुआ ,किलबिल ,शोर शराबा ,कम हो गया। लेकिन आज  उल्लू  को देखने के बाद ऐसा अहसास हुआ के कुछ अनहोनी तो नहीं होगी ? मैंने उसे भागने का प्रयास किया।  लेकिन वो जाने का नाम नहीं ले रहा था।  दो तीन बार प्रयास किया ,तब जाके कही वो उड़ गया।  मेरा ध्यान पीपल के पेड़ की तरफ गया और पहली बार उसका आकार देख के मै  हैरत में पड़ गया।

      ' बाप रे ! इतना बड़ा पेड़ मेरे आँगन में ?और मैंने कभी गौर ही नहीं किया।  ध्यान ही नहीं दिया। पेड़ के ऊपर तक नजर गई।  चमगादड़ उलटे लटक रहे थे।  दो तीन ही होंगे ,पर ये शुरुवात थी।  और पहली बार फरक समझ में आया के बाकि पंछी कम क्यों हुए ?

       शाम को बाहर आके देखा ,ध्यान पेड़ की और गया।  और सर चकराने लगा।  सामने वो आफत की पुड़िया बैठी थी।  मतलब वो मनहूस  उल्लू बैठा था।  और मेरी तरफ एकटक देख रहा था।  लेकिन वो अकेला नहीं था।  साथ में और एक था ,चारो और गर्दन घुमाकर जायजा ले रहा था ! जैसे हालात का जायजा ले रहा हो। 

     उनके पीछे ध्यान गया। और देखता ही रह गया।  पीपल का लगभग आधा पेड़ चमगादड़ोसे भरा हुआ था।  सब उलटे लटके हुए थे।  और ऐसा लग रहा था की ,इनमे से कुछ नजरे मुझे घूर रही है। एहसास इतना गहरा था की रोंगटे खड़े हो गए।  मै वाड़े के अंदर गया।  हाथ पाव धोकर माँ के पास गया।  उसे बताया।  

       माँ ने ध्यान नहीं दिया ,या फिर मै डर  जाऊंगा  इसलिए कुछ नहीं बोली। रात को खाना हुआ।  मैंने वाड़े के अंदर  आंगन में  खटिया डाली।  और वही सो गया।  कुछ आवाज के कारन आधी रात में नींद खुली ,मैंने ध्यान नहीं दिया,करवट बदली ,लेकिन आवाज आती रही। हमारे वाड़े  के अंदर एक कुआ था। उधर नजर गयी ,और मै  चौक गया। कुए की डंडी पर वो मनहूस उल्लू बैठा था ,और मेरी ओर ही देख रहा था मेरी नींद उड़ गयी। मैंने उसे उड़ा ने का प्रयास किया तो वो घर की खिड़की पर जाकर बैठ गया।  

       कुछ सोचकर मै खटिया से उठा ,कुए के पास गया ,रस्सी हाथमे पकड़कर बाल्टी कुए  में डाली ,वैसे फड़फड़ाने की आवाज सुनाई दी।  और कुए के अंदर से दस बारह चमगादड़ फड़फड़ाते हुए बाहर निकले।ये सब इतना अचानक हुआ  की मै बाल्टी वही फेककर खटिया  की तरफ भागा।  और चददर ओढ़के सो गया।  

       कुछ समय बाद। .... किसी की धीरे धीरे बात करने की आवाज आई।  फुसफुसाने की ,हसने की ,आवाज वाडे  के अंदर से आ रही थी। वहापर नौकरो के लिए दो तीन रूम थी रहने के लिए। मै उठकर आवाजकी दिशा में जाने लगा।  वैसे हसने की आवाज बंद हो गयी।  और कुछ फुसफुसाने की आवाज आने लगी ,वो मनहूस उल्लू उड़कर अंदर की तरफ गया ,और उस रूम की खिड़की पर जाकर बैठा। मेरी तरफ देखते हुए !

   मुझे आशंका हुई ,कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।  ये लोग ऐसा  कुछ कर रहे है जो शायद मुझसे छुपाना चाहते है।  उन्हें मेरी आहट सुनाई दी होगी ,आवाज बंद हो गई ,मै दरवाजे के पास जाकर रुका। दरवाजा बंद था तो अंदर झाकने का प्रयास किया। तभी किसीने पीछे से कंधे पर हाथ रखा।  "यहाँ क्या कर रहे हो ? तुम्हे देखना है ?तो अंदर चलो !" स्वर इतना  ठंडा था की मै सहम गया।  आवाज पहचान की थी।  तभी गर्दन में कुछ चुभने का एहसास हुआ।  

    दरवाजा खोला गया।  अंदर मध्हम सी रौशनी थी।  और उस रौशनी में कुछ लोग बैठे थे।  चेहरे अनजाने थे। 'ये सब अंदर कब आये ?'और मुझे पता भी नहीं चला ?' पीछे से मुझे धक्का दिया तो मै उनके पास पोहोच गया। वो लोग राउंड बनाकर बैठे थे।  और उस सर्कल के अंदर कुछ था।  और 'वो ' उल्लू उनमे से एक आदमी के कंधे पर बैठा था।  मेरी तरफ देखते हुए , मेरा खून खौल गया। ' तो ये इसका उल्लू था ,और कुछ दीनो से मुझपर नजर रखे हुए था। जाने कहासे लाया है ?

      उस सर्कल के अंदर एक औरत पड़ी हुई थी। और एक आदमी हवामे हाथ लहराते हुए कुछ बड़बड़ा रहा था।  वो हमारी नौकरानी थी। 'अरे ये क्यों लेटी  है ? या बेहोश पड़ी  है ?या मर गयी है ?या इन्होने इसके साथ कुछ.... मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उन्हें धमकाते हुए पूछा "ये सब क्या चल रहा है ? तुमने क्या किया इसके साथ ?" 

  "ये सब तुम्हारे लिए चल रहा है !" "मेरे लिए ?लेकिन मैंने तो नहीं कहा था।  " "हां !तुम्हारे लिए ! क्योकि तुम्हारी जान खतरे में है ! आज की पूनम की रात तुम्हारी आखरी रात है !तुम्हे बचाने के लिए इसकी बलि दी जा रही है ! "ऐसा कुछ नहीं होता !तुम लोग निकलो यहांसे !" "तुम्हारे पिताजीने हमें ये काम सौपा था। और वो नहीं चाहते थे की तुम्हे पता चले ! लेकिन तुम यहाँ आ ही गए !" " मैंने कहा ऐसा कुछ नहीं होता ,निकलो यहाँसे ! पिताजी से मै  बात कर लूँगा !"

      "ठीक है तुम एक काम करो ,तुम्हे भरोसा नहीं है न ,तो बाहर जाओ , कुए से पानी निकालो ,और नहालो ! और वापस आ जाओ ! तब तक हम लोग देखते है क्या करना है ?"

    "तुम सब लोग अभी के अभी  यहासे निकलो। " "बेवकूफ लड़के ! तुझे जितना बोला है उतना कर ! हम यहाँ का सब समेट  लेते है।  पूजा बंद करते है। अभी इसे जगाना भी तो पड़ेगा। वरना तू कैसे जगायेगा ?" मेरी ट्यूबलाइट जल गयी ,अरे हां ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। मुझे इनका सुनना  पड़ेगा ! 

   मै बाहर निकल आया ,सीढिया उतरकर आंगन में आया। कुए के पास गया ,बाल्टी ऊपर ही थी। 'मैंने तो कुछ देर पहले बाल्टी कुए में डाली थी ?ऊपर कैसे आ गयी ?' सोच सोच कर दिमाग ख़राब हो गया।  मैंने बाल्टी वापस कुए में डाली।  पर बाल्टी कुए में गिरने की आवाज नहीं आई।  बहोत सारी  रस्सी कुए के अंदर तक गयी थी। मै कुए के किनारे पर खड़ा हो गया। और अंदर झांककर देखा। अंधेरे के सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया। 'रोज तो पानी निकलता हूँ !तो आज क्या हुआ ?' इसलिए कुए में झाँकने लगा। 

   तो पीछे से फड़फड़ाने की आवाज सुनाई दी।  आवाज नजदीक आती गयी,तो मैंने पीछे मुड़कर देखा।  एक के पीछे एक चमगादड़ मेरी तरफ आ रहे थे।  और.... जो नहीं होना चाहिए था वही हुआ। मेरा बॅलन्स बिगड़ गया। और मै धड़ाम की आवाज से कुए में गिर गया ,हाथ पाँव मारने लगा ,ऊपर से कुछ मदद मिलेगी ,ये सोचकर ऊपर देखा ,तो... ऊपर डंडी पर वही मनहूस उल्लू बैठा था ,मेरी तरफ ही देख रहा था ,'ये मुझे पोहोचा कर ही दम लेगा। '  जोर से आवाज देनी चाही लेकिन नाक में ,मुँह में पानी जाने लगा।  बाद में क्या हुआ पता नहीं चला , अँधेरा !सिर्फ अँधेरा !

     मुँह पर पानी गिरने का एहसास हुआ,तो मै  घबराकर उठ गया। दिन निकल चूका था। सूरज देवता अपने रथ में बैठ कर जगत की परिक्रमा करने निकल चुके थे।  मै  हक्का बक्का रह गया। सामने माँ थी। मैंने माँ से पूछा ,"माँ ,मै यहाँ कैसे आया ?"मै तो ?..... 'अरे यहाँ कैसे मतलब ?रोज तो यही सोता है ? लेकिन इतनी देर तक कोई सोता है क्या ? चल उठ मुँह धो ले !मै चाय लाती हूँ !" "लेकिन मै  तो। .. " मै तो क्या ?" "कुछ नहीं। "माँ को बोलके कुछ फायदा नहीं। सामने ध्यान गया ,वो उल्लू सामने की दिवार पर बैठा था ,मेरा दिमाग घूम गया। मैंने पत्थर उठाया ,और उसकी ओर फेका। "अरे बेटा ,क्या हुआ ?पत्थर क्यों मार रहा है उसे ?" 

    उल्लू तो चला गया था।  पीपल के पेड़ की तरफ ध्यान गया ,और मै देखता रहा ,मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ,क्योंकि पंछी अपने घर लौट आये थे ,उनकी आवाज सुनकर अच्छा लगा।           इसका मतलब शायद बला टल गई थी। या फिर कुछ और होना बाकि था। ........ जो मेरी समझ के परे था। .....   

    दोस्तों ,वैसे तो इस दुनिया में अच्छा बुरा कुछ नहीं होता।  या तो हमारी सोच होती है ,या जो हम अनुभव करते है ,या जो हमारे साथ होता है उससे हमारी सोच बनती है। वैसेही शुभ अशुभ भी कुछ नहीं होता। कुछ लोग उल्लू को मनहूस मानते है ,तो कुछ लोग उसे माँ लक्ष्मी का प्रतिक मानते है। कौन क्या मानेगा ? ये हर किसीकी विचार धारा है। हम किसीकी सोच पर तो पाबन्दी नहीं लगा सकते ! अगर लगा सकते तो ये दुनिया कितनी हसीन होती ?.....      

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                                          लेखक : योगेश वसंत बोरसे 

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