झूठन - 4 हिंदी भयकथा | JHUTHAN - 4 HINDI HORROR STORY | hindi bhaykatha

  झूठन - 4 हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORY 

HINDI HORROR STORIES
 HINDI BHAYKATHA

   PART : 4                                   लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 



           जब इधर समिधा और जानकी श्रीधर के साथ उनके घर गए तब ,श्रेयस और श्रुति को अकेला छोड़ने की समिधा की बिलकुल हिम्मत नहीं हो रही थी।  लेकिन मजबूरी थी।  जो कुछ करना था वो उस घर से बाहर निकलकर ही करना था।  घर  में बैठकर कुछ होने वाला नहीं था।  और रात के अँधेरे में श्रेयस अकेले बाहर जाने नहीं देगा ,ये समिधा जानती थी। क्या करना है ये जानकी ने उसे बताया था।  उसमे तकलीफ ये थी की रिंकी को भी अकेले छोड़ने का मन नहीं कर रहा था ।लेकिन दो तीन घंटो की ही बात थी।  

     रात के अँधेरे में 11 बजने के बाद जानकी और समिधा दोनों उनके घर से निकली।  ठंडी का मौसम था। तो दोनों ने शॉल ओढ़ रखी थी ,किसीकी को भी लगता की टहल रहे है।  जानकी आंटी का घर वैसे भी थोड़ा गांव के बाहर ही था ,उस वजह से ज्यादा बस्ती नहीं थी ,ना हीं रस्ते पर भीड़ रहती थी।  और नयी बस्ती होने के कारन कोई इतना पहचानता भी नहीं था ,की टोक लेता। 

     दोनों बाते करते करते एक जगह पोहोच गई ,चारो और नजर घुमाई।  हमें कोई नहीं देख रहा है ये जब उन्हें तसल्ली हो गयी तब वो एक पुराने घर के पास रुक गयी।  जानकी आंटी ने दरवाजे की कड़ी बजाई।  कुछ ही देर में दरवाजा खोला गया।  अंदर चारो ओर अँधेरा था ,जैसे अँधेरे का साम्राज्य हो। समिधा की धड़कने बढ़ गई।  हम गलत जगह आ गए ऐसा ही लगा उसे।  और उसे आश्चर्य भी हुआ ,जानकी जैसी प्रगत सोच रखनेवाली पढ़ी लिखी औरत उसे यहाँ लेकर आएगी ये उसने सोचा भी नहीं था।  

     लेकिन जानकी ने लड़की गवाई थी ,और समिधा ने पति ,लड़का और बहु गवाई थी।  मरते क्या न करते ? क्या सही क्या गलत ये सोचने का वक़्त नहीं था ,इनफैक्ट वक़्त ही नहीं था ,मौत कभी भी ,कैसे भी उन तक पोहोचने को बेक़रार थी।  इसलिए इसके आगे और हानि न हो इसका इंतजाम करना जरुरी था।  

      कुछ वक़्त ऐसा ही गुजर गया।  अँधेरे की आँखों को जैसे आदत हो गयी।  वैसे नजर चारो ओर का जायजा लेने लगी।  कोई तो वहा एक कोने में बैठा था।  शायद चिलिम ओढ़ रहा था ,उसके धुए से ,गंध से समिधा का जी घबराने लगा।  जानकी ने साड़ी के पल्लू से मुँह ढक रखा था ,तकलीफ तो उसे भी हो रही थी ,लेकिन उन्हें जरुरत थी ,और सामने जो भी था ,बेफिक्र था।  

     " बैठो "! उस आवाज से समिधा एकदम से चौक गयी।  'बैठो ? कहा बैठे ? अँधेरे में ?यहाँ तो बैठने के लिए भी कुछ नहीं है। ' "जहा खड़ी हो ,वही बैठ जाओ !" सामने वाला जैसे मन की बात जनता था।  जानकी ने समिधा का हाथ दबाया ,और उसे हाथ पकड़कर निचे बिठा लिया। " तुम्हारे लड़के के साथ कुछ अदृश्य शक्तिया तुम्हारे घर मे संचार कर रही है।  उन्होंने तेरी बहु की जान ली ,तुम्हारी नाती को सदमा लगा और अब तुम्हारे लड़के की और बहु की जान खतरे में है !" 

   "यहाँ आओ !" "क्या ?" "यहाँ आओ !" "कौन ?" समिधाने डर के पूछा ," "तुम ! यहाँ आओ !" समिधा पसीना पसीना हो गई थी ,बाहर जो शॉल अछि लग रही थी वही यहाँ पर बोझ बन गयी थी ,ऐसा लग रहा था ,के निकाल के फेक दे !"  डरो मत ! तुम्हारे पास वक़्त बहोत कम है ,जल्दी आओ !" समिधा मजबूर थी वह धीरे धीरे दबे पाव से आगे बढ़ी।  " रुको !" वो बौखला गयी।

    " ये रक्षा लो और तुम्हारे लड़के का और बहु का नाम लेकर फुंक दो घरकी दिशा में ,जल्दी ! लेकिन ध्यान रहे ,मन में कोई भी शंका कुशंका मत रखना ,तुम्हे ये काम पुरे विश्वास के साथ करना है ,जितनी शक्ति इस रक्षा में है उतनी ही तुम्हारे विश्वास में है ,अगर विश्वास नहीं रहा तो उनको कोई नहीं बचा पायेगा।  तुम्हारी बड़ी बहु की आत्मा तुम्हारे घर में घूम रही है ,वो अपनी छोटी सी लड़की की फिक्र में भटक रही है।  वो लड़की को साथ में ले जाने का प्रयास कर रही है।  वो तुम्हारी दूसरी बहु को मिलने का प्रयास कर रही है।  तुम्हे तय करना है की क्या करना है !" 

    समिधा चकरा गई। श्रेयस और श्रुति की जान को खतरा है ये वो जानती थी , लेकिन इन सब बातो से रिंकी का क्या लेना देना ? ये उसे समझ नहीं आ रहा था।  "ज्यादा मत सोचो !ये काम सिर्फ विश्वास से हो सकता है ,बाद में किसीको दोष मत देना !" समिधाने आँखे बंद कर ली।  कुलदेवता का नाम लिया मन ही मन उसके पाँव पकडे ! श्रेयस और श्रुति का नाम लेकर रक्षा फुंक दी।  

   " चिंता मत करो ,अभी के लिए जो आपत्ति थी वो टल गयी है ! लेकिन हमेशा के लिए नहीं।   कल बच्चोको यहाँ लेकर आना ! रही बात तेरी बच्ची की ! " "बच्चीकी ?" समिधा समझ गयी ,  ' ये जानकी से बात कर रहे है !' वैसे जानकी उठकर आगे आ गयी।   " तुम्हारी लड़की बड़े दिलवाली थी ,उसने खुद का बलिदान देकर दो जिन्दगिया बचाई ,लेकिन उसकी जान अपनी लड़की में बसती है।  उसे अगर यकीं हो गया की  उसकी लड़की सुरक्षित हातो में है ,तो उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाएगी।  उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ये तुम लोग तय करो ! और ये रक्षा ले कर जाओ ,उस बच्ची को लगाना ,लेकिन पुरे विश्वास के साथ ,वरना कुछ फायदा नहीं होगा ! उसकी माँ उसे साथ में लेकर जायेगी ,चलो !अभी जल्दी निकलो ! जल्दी जाओ यहाँ से वक़्त कम है !"  

     दोनों की धड़कने बढ़ गयी थी।  ख़ुशी और चिंता एक साथ दिल में उछल रही थी।हसे या रोए समझ नहीं आ रहा था।  पहले यहाँ से निकलना जरूरी था ,खुली हवा में सांस लेना जरुरी था।  दोनों ने शॉल निकाल ली थी।  लेकिन बाहर आये तो थोड़ी देर अच्छा लगा और कुछ ही देर में ठंडी बजने लगी।  दोनों ने शॉल ओढ़ ली और घर की ओर निकल पड़ी।  समिधा को समझ में नहीं आ रहा था की पहले रिंकी को देखे या श्रेयस श्रुति का हालचाल जाने।  लेकिन उसका दिल कह रहा था की उनके ऊपर का जो संकट था वो टल गया है।  उसने पहले हॉस्पिटल जाने का निर्णय लिया।  तो दोनों उधर निकल पड़ी। 

      इधर श्रीधर इंतजार करके थक गए थे वो हॉस्पिटल पोहोच गए ,कुछ ही देर में श्रेयस और श्रुति भी पोहोच गए थे।  हॉस्पिटल का माहौल गंभीर था। डॉक्टर को भी समझ नहीं आ रहा था की लड़की अचानक इतनी सिरियस कैसे हो गयी।  उसकी  धड़कने कम ज्यादा हो रही  थी सीना ऊपर निचे हो रहा था , वो भी जोर जोर से। कुछ समय पहले नर्स रिंकी को चेक करने के लिए आई थी तब उसे समझ में आया की इसकी धड़कने बंद हो गयी है ,उसने झट से डॉक्टर को बुलाया।  डॉक्टर आने तक धड़कने दुबारा कम ज्यादा हो गयी थी ,खतरा अभी टला नहीं था। 

     लेकिन क्या मानसिक आघात होने से ऐसा  कैसे हो सकता है ? वो भी पेशंट नार्मल होते हुए।  क्योकि रिंकी सिर्फ शांत बैठती थी ,बाते नहीं कर पाती थी। बाकि तो कुछ प्रॉब्लम नहीं थी। उतने में समिधा और जानकी वहाँ पोहोच गयी। उन्हें  देखकर पता चल रहा था की वो कितनी टेंशन में थी।  समिधा को खतरा महसूस हुआ उसकी और जानकी की नजरे मिली। इन सब के सामने रक्षा लगाना ठीक नहीं था।  विश्वास की बात थी वरना बच्ची बेवजह बलि चढ़ जाती।  

   आखिर समिधा ने बोल ही दिया ," डॉक्टर प्लीज ,पांच मिनिट के लिए आप सब बाहर जायेंगे ? प्लीज ,सब जाइये ! " "भाभी जी बच्ची की जान खतरे में है ,कुछ भी हो सकता है !" "इसीलिए बोल रही हूँ ,प्लीज बस पांच मिनिट के लिए बाहर जाये !" डॉक्टर को मानना पड़ा।  उन्होंने श्रीधर की ओर देखा उसने भी सहमति दर्शाई ,वो दोनों बाहर निकल गए ,उनके पीछे नर्स ,श्रुति और श्रेयस भी !

    जानकी ने झटसे दरवाजा बंद किया ,पर्दा लगा लिया खिडकी का !समिधाने रक्षा निकाली , और कुलदेवता का नाम लेकर रिंकी के माथे पर ,जबान पर ,गले पर लगाया , चारो ओर फुंक दिया।  और भगवन के सामने नतमस्तक हो गयी। जानकी की अवस्था अलग  नहीं थी वो तो पहलेसे वही कर रही थी।  समिधाने जानकी के कंधे पर हाथ रखा।  तो उसने आँखे खोल दी।  और झट से दरवाजा भी खोल दिया।  डॉक्टर इंतजार ही कर रहे थे वो झट से अंदर आ गए। उन्होंने रिंकी की ओर देखा और माथे पर रक्षा भी देखि। मगर वो कुछ नहीं बोले ,बात श्रद्धा की थी और वो किसी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे।  

      डॉक्टर हैरान रह गए क्योंकि रिंकी की धड़कने धीरे धीरे नार्मल हो रही थी।  उनके चेहरे के हावभाव देख कर सब समझ गए की खतरा टल गया है।  उन्होंने समाधान पूर्वक समिधा और जानकी की तरफ देखा।  और सहमति दर्शाई "  खतरा टल गया है ,रिंकी अब नार्मल है।  समिधा और जानकी की जान में जान आ गयी।  आधी लड़ाई वो जित चुकी थी ,आधी अभी बाकि थी।  उन्होंने श्रुति और श्रेयस को साइड में लिया और कहा "कल तैयार रहना ! हमे कही जाना है।" श्रुति और श्रेयस की नजरे मिली। माँ की वजह से अभी जिन्दा है ये श्रेयस की समझ में आ गया था उसने तुरंत हामी भर दी।  " मम्मी , तुम आज भी कहती तो मै आता था।  THANK YOU !" "क्या ?" हां मम्मी ,तुम दोनों ने हमारी और रिंकी की जान बचाई  !"तुमसे किसने कहा ?" "श्रुति ने !"  "क्या ?" 

         समिधाने हैरानी से श्रुति की ओर देखा ,लेकिन उसके चेहरे पर हलकी सी मुस्कान देखकर वो सोच में पड गई की 'इसे कैसे पता चला ?'....... 


झूठन -6 हिंदी भयकथा

झूठन - 7 हिंदी भय कथा


                                         TO BE CONTINUED ...... 



                                                              लेखक :योगेश वसंत बोरसे 


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