झूठन - 3 हिंदी भय कथा | Jhuthan - 3 HINDI HORROR STORY |

                       झूठन - 3 - हिंदी भय कथा - HINDI HORROR STORY  

HINDI HORROR STORIES
 हिंदी भयकथा 

    PART : 3                      लेखक :  योगेश वसंत बोरसे.


     श्रुति और श्रेयस, और घर का एकांत ! माहौल का असर था या किसी अदृश्य शक्ति का साया ! सुबह ही घर से एक अंत यात्रा निकली थी , और रात में ये दोनों एक दूसरे के साथ थे।  जैसे जैसे रात बढ़ने लगी घर का माहौल बदलने लगा।  उनके हिसाब से घर में उन दोनों के सिवा कोई नहीं था ,लेकिन ये उनका वहम था।  

   दुबारा प्रणय का खेल शुरू हुआ।  दोनों ने पूरा आनंद उठाया।  श्रुति को समझ नहीं आ  रहा था।  जो नहीं होना चाहिए ऐसा लग रहा था ,उसी क्षण की वो जैसे प्रतीक्षा कर रही थी , या दोबारा वैसा होगा इसका उसे विश्वास था ,बस कब होगा वो पता नहीं था।  

   श्रेयस चुप चाप सोया हुआ था।  श्रुति सोच रही थी , उसे माहौल की ख़ामोशी खटक रही थी।'अपना घर इतना शांत कैसे रह सकता है ?' वो भी दो राते इतनी भयानक जाने के बाद ?कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है !' और उसे जैसे झटका लगा। ' शांति यहाँपर है ,यहाँ हम दोनों है।  रिंकी हॉस्पिटल में है।  और माँ जी .....नीलिमा के माँ के घर !वहा तो सब ठीक ठाक होगा न ? लेकिन कैसे पता चलेगा ? ' उसे लगा की उसे रिंकी के साथ रुकना चाहिए था।  

    'वो नन्हीसी जान हॉस्पिटल में अकेली है ,उसके पास कोई नहीं है ! नहीं !मुझे वहा  जाना चाहिए था। लेकिन माँ जी ?वो वहापर क्यों नहीं गयी ?उल्टा वो वह रूकती तो ज्यादा अच्छा होता !वैसे भी हॉस्पिटल में सोना क्या ?या नीलिमा के घर सोना क्या ? एक ही बात है !' और उसे इस बात का मतलब समझ में आया। ' माँ जी हॉस्पिटल में नहीं है ,मतलब .... बापरे ! मतलब वो अकेले ही कुछ करने का प्रयास करने के लिए गयी है ! शायद जानकी आंटी और श्रीधर अंकल उनकी हेल्प करेंगे भी ,लेकिन वो पढ़े लिखे ,आज की सोच रखने वाले लोग है , इस लगता नहीं वो कुछ हेल्प करेंगे !' 

     वो सोचती रही , और तभी ! बैडरूम के दरवाजे के पास कोई है ,ऐसा उसे महसूस हुआ।  उसके रोंगटे खड़े हो गए। कोई है जो धीरे धीरे बात कर रहा है ,वो ध्यान से सुनने का प्रयास करने लगी। 'आवाज तो रिंकी जैसी लग रही है ,लेकिन वो तो हॉस्पिटल में है !रिंकी ?वो यहाँ कैसे आएगी ? और बात करने की हालत में भी नहीं थी।' 

" श्रेयस ,उठोना !" "श्रुति ,बस ! अब नहीं ! मुझे सोने दो ! " "श्रेयस उठो भी ,रिंकी की आवाज आ रही है !" "श्रुति तुम्हे आराम की जरुरत है, आओ सो जाओ !" उसने श्रुति को अपनी और खींच लिया , श्रुति को उसकी ये हरकत अच्छी लगी , लेकिन रिंकी की आवाज उसके दिमाग पर जैसे टकरा रही थी ,वो डिस्टर्ब हो रही थी।  उसने आराम से अपने आप को श्रेयस की बाहो से छुड़ाया ,कपडे पहने !और बैडरूम का दरवाजा धीरे से खोला।  बाहर कोई नहीं था।

    ' कमाल है !आवाज तो एकदम नजदीक से आ रही थी !तो अब ये है कहाँ ?' दुबारा किसी की फुसफुसाने की आवाज कानो ता पोहोची।  अब आवाज नीलिमा के बैडरूम से आ रही थी।'क्या चल रहा है ? पहले रिंकी , अब नीलिमा दीदी की आवाज ?'उसकी धड़कने बढ़ गयी। मन नहीं मान रहा था ,लेकिन शरीर निलिमा के बैडरूम की तरफ बढ़ रहा था।  उसने उस बैडरूम का दरवाजा धीरे से धकेला ,कर कराते हुए दरवाजा अंदर की तरफ खुल गया। औरउसके बदन से एक ठंडी लहर निचे तक गयी !

     'यहाँ आकर गलती कर दी!' बेडपर कोई था ,उनका ध्यान श्रुति की ओर गया , "श्रुति ,आओ ना ! ऐसे दूर क्यों खड़ी हो ? आओ !" और उसके पीछे दरवाजा झट से बंद हो गया ! " दीदी ,छोड़ो मुझे ! मै कहती हूँ छोड़ो मुझे ! " उसने अपने आप को छुड़ा लिया " श्रुति सुन तो सही !" "श्रेयस, श्रेयस !" वो दरवाजे की तरफ बढ़ी ,और दरवाजा पीटने लगी ! श्रेयस ने कैसे तो भी दरवाजा खोला ,"श्रुति क्या हुआ ? तुम यहाँ क्या कर रही हो ? " "श्रेयस ! नीलिमा दीदी !... वो आगे बोल नहीं पायी।  "श्रुति क्या हुआ ?" श्रेयस ने बैडरूम में नजर दौड़ाई।  'यहाँ तो कोई नहीं है ? तो फिर ये भाभी का नाम क्यों ले रही है ? ' श्रुति ने अपनी सुध खोई थी।  श्रेयस ने उसे उठाया और अपने रूम में ले गया।  

    मुँह पर पानी के छींटे डाले।  वैसे वो घबराकर उठ गयी।  और श्रेयस को सामने देखकर उससे लिपट गयी।  "श्रुति ,क्या हुआ ? " "श्रेयस नीलिमा दीदी है उनके रुम में !" "श्रुति ,दिमाग ठिकाने पर है क्या ?वो बेचारी सुबह ही  मर गयी !" "श्रेयस मै वही कह रही हूँ ! वो मुझे कुछ बता रही थी ! पास में रिंकी भी थी ,शायद उसके बारे में बता रही थी !" 

  "श्रुति, लेकिन रिंकी तो  हॉस्पिटल में है ! वो यहाँ कैसे आएगी ?" "वही तो मै  भी समझ नहीं पा रही हूँ ! श्रेयस हमने गलती कर दी ! हमे रिंकी के पास रुकना चाहिए था।" "अरे श्रुति ,यार डॉक्टर घर के ही है ,वहा पर रिंकी सुरक्षित है ,वरना माँ वहापर नहीं रूकती क्या ?" "नहीं ! माँ जी नहीं रुकी ,उसकी दूसरी वजह है !" "क्या ?" "हां ! वो सुबह बोल रही थी न के इसका बंदोबस्त करना पड़ेगा ! और वो उसी काम के लिए कही गयी होंगी !" 

    "कमाल है ! माँ मुझे बताये बगैर गयी ? श्रुति ,मुझे लगता है की सुबह उसने जो कुछ भी कहा भावुकता में कहा था " " श्रेयस औरतो के निर्णय दिल से ही लिए जाते है। वो जरूर कुछ न कुछ करेगी ! श्रेयस ,मुझे बहोत डर लग रहा है !माँ जी की जान को खतरा है ! " श्रुति कुछ भी मत बोल !" "श्रेयस ,तुम ही सोचो ,हम यहाँ पर सुरक्षित है !रिंकी हॉस्पिटल में है ,बस माँ जी जानकी आंटी के घर पर है या नहीं वो पता करना पड़ेगा !और रिंकी हॉस्पिटल में है या नहीं ! " " क्या ? इसका क्या मतलब ? " "श्रेयस कुछ देर पहले मैंने रिंकी की आवाज सुनी थी ,मुझ  पर भरोसा रखो।  और प्रत्यक्ष नीलिमा दीदी और रिंकी को साथ में देखा !" 

    " श्रुति ,तुम्हे समझ में भी आ रहा है की तुम क्या कह रही हो ? कभी कहती हो रिंकी हॉस्पिटल में है ,कभी कहती हो यहाँ पर देखा ! " "तुम नहीं समझ रहे हो श्रेयस ! या समझना  नहीं चाहते , रिंकी अब इस दुनिया में नहीं है !" "श्रुति !" श्रेयस का अपने आप पर काबू नहीं रहा, उसने एक थप्पड़ श्रुति को जड़ दिया। वो निचे गिर गयी। श्रेयस को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने श्रुति को उठाया ,"SORY ! मुझे माफ़ कर दो !" "IT'S OK श्रेयस !मैंने तुम्हे सिर्फ क्या हुआ होगा वो बताने की कोशिश की।  वैसा ही हुआ होगा ऐसा मै  नहीं कह रही हूँ। हम फोन करके देखते है और कन्फर्म कर लेंगे की सब कुछ ठीक है ! चलो ! "

     श्रेयस को भी ठीक लगा , उसने पहले अस्पताल में फोन किया ,रिस्पॉन्स नहीं मिला ,दो तीन बार प्रयास किया ,रिस्पॉन्स नहीं मिला।  " श्रेयस क्या हुआ ?" "कोई फोन नहीं उठा रहा है !हम ऐसा करते है ,डायरेक्ट हॉस्पिटल जाते है , चलो !" " श्रेयस ,एक मिनिट ! पहले नहा लो ,बाद में निकलते है !""श्रुति दिमाग ठिकाने पर है क्या ?" "दिमाग ठिकाने पर है इसीलिए बोल रही हूँ। मुझे कुछ नहीं सुनना ,झट से नहा लो ,  मै भी वही करती हूँ।  और हां ,माँ जी को भी फोन करो !उन्हें पूछो कुछ प्रॉब्लम तो नहीं है ना !"

    फोन श्रीधर ने उठाया ,"क्या हुआ श्रेयस ? अंकल हॉस्पिटल में फोन किया था ,कोई  नहीं उठा रहा है !" "अरे रात का समय है ,स्टाफ कम रहता है ,कुछ समझ है के नहीं ? और वहा  क्यों  फोन किया ?" "अंकल ,रिंकी की फ़िक्र हो रही है !" "अभी रात में ! सब कुछ कर लेने के बाद ख्याल आया ?" "अंकल , क्या बोल रहे हो ? माँ के पास फोन दीजिये न !" "वो दोनों बाहर गयी है ,अभी तक नहीं लौटी।  " "कहाँ गयी है ?" "पता नहीं !लेकिन बहोत देर हो गयी ,अभी आ जाएँगी। " "अंकल ,तो मुझे क्यों नहीं बताया ? " 

"श्रेयस , तुम्हे बताने के लिए मना किया था , तुम्हे क्यों डिस्टर्ब करू ,तुम्हारी अभी अभी  शादी हुई है ,कोई जिए या मरे तुम्हे उससे क्या ? वैसे भी मेरी नीलिमा अब नहीं रही, और रिंकी हॉस्पिटल में है , तो तुमसे बात करने की मुझे बिलकुल भी इच्छा नहीं है ! वो तो जानकी की वजह से बोलना पड़ रहा है ! वो बेचारी श्रुति में उसकी लड़की ,और तुम्हारे अंदर उसका दामाद ढूंढ रही है।  उस फ़िक्र में दोनों बाहर गयी है की तुम दोनों को कुछ हो न जाये !" और ,वैसे भी उनके आने के बाद मै हॉस्पिटल जाने ही वाला हूँ ,मेरी नाती है !मुझे फ़िक्र है उसकी !तुम घर में रहो ! मजे मारते रहो !रखो फोन !"

   और फोन कट हो गया।  "श्रेयस क्या हुआ ?" श्रुति ने पूछा। "तुम शायद सही कह रही थी श्रुति ,माँ और जानकी आंटी बाहर गयी है हमें बचाने के लिए ! उनके आने के बाद अंकल हॉस्पिटल जाने वाले है तबतक रिंकी वहां अकेली है ,चलो हम जल्दी से निकलते है !" "श्रेयस पहले नहा लो !" "श्रुति ये क्या बेवकूफी है ? यहाँ कंडीशन क्या है ,और तुम्हारा क्या चल रहा है !" "श्रेयस इस बेवकूफी की वजह से  हमने नीलिमा दीदी को खोया है ,और मै मौत के मुँह में पोहोच ही चुकी थी ,तुम्हारी कृपा से ! उस दिन फोन आने पर हम ऐसे ही भागे थे ,और तुम्हारे माध्यम से अमानवी शक्तिया घर तक पोहोच गयी ,वापस समशान गए !"

  "लेकिन वहां तो नहाया था !" "इसी लिए तुम बच गए ,वरना घर तक भी नहीं पोहोचते !" "श्रुति क्या तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है ? इतनी पढ़ी लिखी होकर ऐसी बाते करती हो ? " "मैंने सहा है वो सबकुछ श्रेयस ! तुमने नहीं ! लेकिन शायद मेरी जिंदगी अभी बाकि थी इसलिए मैंने सब सहन कर लिया ,लेकिन  नीलिमा दीदी नहीं सह पायी !वो उन शक्तियों के आगे कमजोर पड गयी !"

    "श्रेयस , इस दुनिया में ऐसी बहोत सी बाते है ,जिनके बारे में हम नहीं जानते !उनसे लड़ सको इतनी ताकद तुम्हारे अंदर नहीं है ,न मुझमे है ! और तुम्हारी योग्यता भी नहीं है ,वरना  घर में किसी के गुजर जाने के बाद तुम वो सब नहीं करते ! अरे तुम्हारी माँ हमारी फ़िक्र में बाहर घूम रही है और तुम यहाँ घर में पड़े हो ?" 

   "श्रुति ,बहोत हो गया !बहोत बोलती हो तुम ! और तुम भी कुछ कम नहीं हो ! माँ ने जाने का जिक्र किया तो तुम कितना खुश हुई थी ,वो मैंने देखा था !" " वो ख़ुशी क्यों हुई थी तुम नहीं समझोगे !" "क्यों ?" "क्योंकि, मैंने तयारी कर ली थी उन अनजान ताकदो से लड़ने की ! और वो हमारे इर्द गिर्द घूम रही थी ,लेकिन हम तक पोहोच नहीं पायी !" 

  "श्रुति , मुझे कुछ भी समझ नहीं आया ! " "श्रेयस , आंटी और माँ जी किसी पोहोचे हुए व्यक्ति के पास पोहोच गयी है ,जिन्होंने हमारा रक्षण किया ! वरना  हमारा घर अभी तक उन अनजान ताकदो के कब्जे में है ! बस ,मुझे एक बात समझ नहीं आई ,की मैंने रिंकी को देखा था वो सच्चाई थी या कुछ और।" ... .....                               

                                            TO BE CONTINUED ......



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                                                लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 

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