चक्रव्यूह हिंदी भयकथा | Hindi horror story
HINDI HORROR STORIES |
लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
पीठ थपथपाके वो आदमी चला गया ,हसते हसते। पर मेरे दिल से वो बात नहीं जा रही थी। किसी ने खटिया के निचे से लाथ मारी थी। वो भी इतनी जोर से की अबतक पीठ में दर्द हो रहा था।मन में विचार आया, की कल बस में सफर किया था ,रास्ता ख़राब था,इसलिए ऐसा लग रहा होगा। ज्यादा थका होने के कारण सपना आया होगा ,पर रात में तो नींद खुली थी ,थोड़ी चहलकदमी भी की थी। तारे भी गिने थे ,खैर क्या सत्य क्या भ्रम समझ नहीं आ रहा था। ऐसे ही सोचते सोचते वक़्त गुजर गया।
दोपहर हो गयी। और दोपहर में शादी भी हो गयी। खाना हो गया, लगभग साडेचार पांच बजे सब लोग निकले। पीछे रुकना मुमकिन नहीं था। बस निकली वापस जाने के लिए। वही रास्ता ,वही पेड़ ,वापस दिखने लगे। और मुझे बेचैनी होने लगी,मैं अगर वापस लौट गया तो ये बात हमेशा हमेशा के लिए रहस्य बन जाएगी। और तकलीफ देती रहेगी। अगर राज ढूंढना भी चाहा तो कैसे पता लगेगा ?उसी वक़्त ध्यान देना चाहिए था।
कुछ ही देर में वो जगह आ गयी ,जहा बस ख़राब हुई थी। और सब कुछ यही से शुरू हुआ था।' जहाँ समस्या वही समाधान ! ' एक पल भी नहीं गवाया। और बेल् की डोर खिंच दी। बस में बैठे सारे बाराती मेरी ओर अलग ही नजरोसे देखने लगे।ड्राइवर भी सोच में पड गया। उसने पीछे मुड़कर देखा और मुझ से पूछा "साहब क्या हुआ ?"
" मुझे यहाँ उतरना है ," " क्या?" "मुझे यहाँ उतरना है !"लेकिन साहब गांव तो पीछे रह गया आप तो बाराती है ना ?"फिर यहाँ उतरकर क्या करेंगे ?"लेकिन उसने बस साइड में लेकर रोक दी थी। मैं निचे उतर गया फिर उसी जगह पर !बस का दरवाजा धाड़ की आवाज़ से बंद हुआ तो बस निकल गई।
"मैं बस से निचे उतर गया ?"क्यों ?"सुबह का गुस्सा, एक्साइटमेंट, दर्द अभी महसूस नहीं हो रहा था। शायद माहौल का असर था। लेकिन कुछ अलग ही फीलिंग थी ,जो समझ के बाहर थी , कोई मुझे देख रहा है, घुर रहा है, मुझपर नज़र रखे हुए है, ये अहसास बढ़ गया।
अरे यार! मै यहाँ कैसे उतर गया ? गलती हो गयी , मैं खुद अपने मन से उतरा या उतारा गया। समझ नहीं आ रहा था। वक़्त गुजरता गया शाम ढल गयी रात होने लगी , चारो और पेड़ पौधो के अलावा कुछ नहीं था। सोच सोच के परेशान हो गया। क्या करें ? रात कहा गुजारे ? सड़क पर ? पेड़ के नीचे ? फिर खाने पीने का क्या ? भूक भी लगी थी और प्यास भी। दूर तक चारो ओर नज़र दौड़ाई , खुले मैदान में दूर आग जल रही थी, मतलब वहा कोई रहता होगा।
दिलको तस्सली मिली , पैर अपने आप उस दिशा में चल दिए , जैसे कोई खींच रहा हो। गला सुख गया था, पेट में चूहे कूद रहे थे।
जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया माहौल में बदलाव आने लगा , जैसे जैसे उस और बढ़ने लगा , अजीब सी गंध उस जगह फैल रही थी , कुछ जलने की ? नहीं जैसे कोई जल रहा हो।
मतलब ये चीता तो नहीं, हां ! चीता ही होगी। मतलब वहा जरूर कोई न कोई होगा , जान में जान आगयी , तेजी से उस और बढ़ा। फिर भी वहा तक पहुंचते पहुंचते बहुत वक़्त लगा, तब तक कुछ परछाईयां वहा से हिलती हुई नज़र आने लगी , मतलब यहाँ कुछ लोग थे मदद मिल सकती थी, उनके पीछे पीछे जाना ठीक रहे गा ? खैर छोडो जाने दो।
चीता जल रही थी वहा कोई था , और कुछ कर रहा था। मै वहा जाकर खड़ा रह गया। उसको शायद मेरी आहट से पता चला था। उसने पीछे मुड़के देखा और पूछा "तू कोन है ? यहाँ क्या कर रहा हे ?"
मेरे मुँह से एक शब्द निकलना मुश्किल था , मैं उसकी ओर देखता रहा। कोई बूढ़ा था , दुबला पतला सा , जैसे सिर्फ हड्डिया ही बची थी। दाढ़ी बढ़ी हुई थी !कपडे अलग ही थे ! लेकिन नज़र? नज़र धारदार थी ! वो मुझे
घूर के देख रहा था ,मेरा गला सुख रहा था। जबान अपने आप होटोंपर घूम रही थी। उसे शायद पता चल गया की मुझे प्यास लगी है। उसकी नजरो में जो भाव थे उनमे बदलाव नजर आया।
वो मुझे वहा से थोड़ी दुरी पर ले गया। वहा बड़ा सा एक पत्थर था ,वहा बैठने को कहा। वहा नजदीक ही एक बर्तन था ,जिसमे पानी था। मुझे गिलास में पानी दिया। "ये ले !पानी पी !"आवाज़ में रौब था ! आज्ञा थी !मैंने चुपचाप पानी पिया।
" आप यही रहते है ? "मैंने ऐसे ही पूछ लिया। "नहीं"!"तो ?"" थोड़ी देर में पता चल जायेगा।"जल्दी ही समझ जायेगा !"
वहा नजदीक ही एक पेड़ था ,उस पेड़ पर वह झट से चढ़ गए,जैसे रोज की आदत हो ,मुझे लगा कुछ लेने के लिए गए होंगे !लेकिन वो वापस आये ही नहीं !
तो ? मुझे पानी किसने दिया ?जान हलक में आ गई। सामने की ओर नजर गई ,कोई आ रहा था ,उसके हाथ में लकडीकी एक काठी थी। वह व्यक्ति जैसे जैसे नजदीक आने लगी ,साफ साफ दिखाई देने लगी। तो मैं अनजानेमें ही एक पेड़ के पीछे छुप गया।
वह चिता के पास पोहोचा ,जल्दबाजी में हाथ में जो लकड़ी थी वो चिता में घुसेड़ दी और ऊपर की ओर की,तो.... चिता में जो लकडिया थी वह चारो ओर उछाल दी !और आगे जो देखा उससे मैं पसीने पसीने हो गया ! उसने सीधा चिता के अंदर हाथ डाला। एक मांस का गोला उसके हाथ में आया ,वो उसने मुँह में डाला औरऐसे खाने लगा,चबाने लगा , जैसे जन्मो का भूखा हो !
जिन्दगी मे जो पहले कभी नहीं देखा वो आँखों के सामने हो रहा था, तो सर चकराने लगा। मैंने डर के मारे आँखे बंद कर ली ,और अगले ही पल खोल दी ! मै उसी पेड़ के नीचे खड़ा था ,जिसपर वो बूढ़ा चढ़ा था। अरे ये गया तो गया कहाँ ?
ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ से भागना ठीक रहेगा ,लेकिन कैसे भागे ?और कहा भागे ?इसने अगर मुझे भागते देखा तो मुझे भी भून के खा जायेगा !डर के मारे सिट्टी पिट्टी गुम !सोचते सोचते कब पेड़ के पीछे से बाहर आ गया पता ही नहीं चला।
और उसने मुझे देख लिया,दोनोकी की नज़रे मिली। उसके मुँहपर, चेहरेपर जगह जगह मांस के छोटे छोटे टुकड़े लटक रहे थे। वो बेहद ही डरावना लग रहा था। उसने मुझे इशारा किया, मै जगह से हिल भी नहीं पाया। तू आता है या मै वहा आऊं ? मै डरते सहमते उसके पास पंहुचा। भूख लगी है ना ? तो ये खाले ! उसने दुबारा चिता में हाथ डाला और मांस का एक गोला निकालकर मेरे सामने पकड़ा। वैसा मेरा सर चकराने लगा और में धड़ाम से निचे गिर गया। और वातावरण में पुरे माहौल में एक डरावनी, खौफनाक हंसी गूंजने लगी जो कितनी देर गूंजती रही।
उसने मेरे सर पे हाथ रखा और कुछ मंत्र पढ़ने लगा। उन मंत्रो में कौनसी ताकद थी ? पता नहीं। लेकिन अब डर गायब हो चूका था। सब नॉर्मल लग रहा था। मै इसी माहौल में पला बड़ा हूँ , इसी माहौल में रहता हूँ , ऐसा लगने लगा।
उसके शब्द कानो में गूंजने लगे, " जो भी तेरे साथ हुआ है उसे भूल जा, इसीमे तेरी भलाई है ! जा ,यहाँ से निकल जा !दोबारा कभी मत आना ,वरना बेमौत मारा जायेगा !"
और कुछ ही पल में वो जैसे आया था ,वैसे ही चला गया। मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई। वहा मेरे अलावा कोई नहीं था। लेकिन अब न भूख लग रही थी ,ना प्यास !पेड़पर नजर गयी ,वो बूढ़ा पेड़ पर बैठा हुआ था। उसने मुझे देखा और जोरसे चिल्लाया "चला जा ! निकल जा यहाँ से !ये तेरी नहीं ,मेरी जगह है! मेरा इलाका है !दोबारा यहाँ कभी मत आना ,वरना बेमौत मारा जायेगा !"
बेमौत मारा जायेगा ?मुझे दोनों के चेहरे सामने दिखाई देने लगे। उस बूढ़े का और मांस खाने वाले का ! मतलब ! ये दोनों एक ही थे ?फिर ऐसे अलग अलग रूप क्यों धारण किये ?जवाब नहीं मिला ,न जाने क्यों ? वहा से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था। पैरो में जैसे बेड़िया पड गई थी ! एक सवाल का जवाब ढूंढते ढूंढते यहाँ पोहोचा था ,उसका जवाब मिलने की जगह कई सारे सवाल सामने आ गए थे १
जैसे जिंदगी करवट बदल रही हो ,नए मोड़ पे आके खड़ा हो गया था !
जब से शादी में आया था , विचित्र घटनाए घट रही थी एक के बाद एक,जैसे कोई सिलसिला चल रहा हो। एक के बाद एक कोई कड़ी जुड़ रही हो ,और मै उसमे उलझ रहा था ,उलझ गया था।उसमे ही खींचा जा रहा था।
उस बूढ़े बाबा ने मुझे पानी पिलाके मेरी प्यास बुझाई थी ,और दूसरे ने सर पर हाथ रखकर डर भगाया था ,भूख भगाई थी।
इसका मतलब क्या है ?मन में विचार आया ,और थर्रा गया !इसका मतलब और कुछ होने वाला था जो इससे भी भयानक था ! हो सकता था !
शायद उसकी तैयारी मुझसे करवाई जा रही थी ! ये खेल शुरू हो चूका था ,और इतनी आसानी से ख़तम होगा
इसकी कोई गुंजाईश नहीं थी !सोचते सोचते वहासे निकला ,कहा जाना था ? कहा पोहोचना था ?क्या करना था ?वो शायद मेरे हाथ में नहीं था ! ......
लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
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