समशान -HINDI HORROR STORY

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HINDI HORROR STORY

                                                समशान 

                                                                                                       लेखक : योगेश वसंत बोरसे. 
                                                               

     
 ' समशान' ! जानलेवा शब्द। जैसे ही ये शब्द जहन में आता है दिल घबरा जाता है। लेकिन हर किसी को आखिर यहाँ आना ही पड़ता है। अपनी इच्छा हो या ना हो। आखरी मंजिल यही होती है। 
          जनम और मृत्यू इस जीवन की अटल सच्चाई है। जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू। जनम हुआ तो मौत निश्चित है। लेकिन मौत हुई तो दुबारा जनम मिलेगा इसकी कोई गॅरंटी नहीं। फरक इतना ही होता है, की पुराना जाता है और नया आता है। बहुत बार पुराना जाने से नए जीव को संजीवनी मिलती है। वो बड़ा होता है, बढ़ता है। अमरवेल की तरह।   
          अमरवेल दिखने में पतली दिखती है। बड़े बड़े वृक्षोंका, पेडो का आधार लेके बड़ी होती है और एक दिन इतनी बड़ी हो जाती है की वो पेड़ ही सूखने लगता है। ये बड़े बड़े पेड़ बड़े दिल से सहारा देते है, उनके ध्यान में भी नहीं आता की एक दिन उसका ही अस्तित्व खतरेमें आ जाएगा।
          मनुष्य का जीवन ही कुछ इसी प्रकार का होता है। जबतक अपने पास सबकुछ होता है कुछ मिलने की, पाने की इच्छा होती है, उम्मीद होती है, आशा होती है, तब मौत भयानक लगती है। उसका डर लगता है।
           पर जब कुछ मिलने की उम्मीद टूट जाती है, जीवन के प्रति जो अपनापन  होता है वो ख़तम हो जाता है। जिंदगी बोझ लगती है। आशा, प्यार, रिश्ते-नाते, सब कुछ ख़तम हो गया ऐसा लगता है तो आदमी, इंसान मौत को अपना दोस्त बना लेता है। उसे अपनाता है। 
           रिश्ते-नाते स्वार्थी होते है। लेन - देन पर टिके होते है। जब तक हमारी देने की क्षमता होती है, नए नए रिश्ते बनते रहते है। अगर हम देने के लिए सक्षम रहे तो रिश्ते बढ़ते है, अपनापन बढ़ता है। पर जब हमारी देने की क्षमता कम होने लगती है एक एक रिश्ता दम तोड़ने लगता है, हमेशा भीड़ में रहने वाला इंसान अकेला पड़ जाता है, अकेला रह जाता है। उसके पास देने के लिए कुछ बचता नहीं। आखिर में रहता है खालीपन, अकेलापन। तब हम सोचते है, आखिर हमारी क्या गलती थी ? 
            हमारी गलती कुछ भी नहीं होती। हमें अपने लोगो ने रिश्तेदारोंने, समाजने गलत साबित किया होता है। और समझो हमसे कुछ गलती हो भी गयी तो पैसा होने के कारण उसपर ध्यान नहीं दिया जाता। कोई ध्यान नहीं देता। पैसे की वजह से हर गलती नजर - अंदाज हो जाती है। जैसे ही पैसा खतम होने लगता है, इंसान की गलतिया उभर के सामने आती है।
           और ऐसे वक़्त पे वह मौत को गले लगाने की कोशिश करता है। उसमे भी क़ामयाब हुआ तो ठीक, नहीं तो बेइज्जती, अपमान सहना पड़ता है। लोग बाते करते रहते है। 
           आदमी अगर पैसे वाला रहा और मर गया तो बिन बुलाए भीड़ जमा हो जाती है। लेकिन अगर गरीब रहा तो लोग जाने से कतराते है, टालते है, की इसके क्रियाकर्म का खर्चा हमें ना करना पड़े। कहा जाता है की शरीर नश्वर होता है, लेकिन आत्मा अमर होती है। मतलब जब हम मरते है, तो शरीर नष्ट होता है, आत्मा नहीं। वह शरीर छोड़ देती है। हम ऐसा भी कह सकते है की शरीर से आत्मा निकल गयी तो आदमी मर जाता है।   
          आत्मा क्या होती है ? आत्मा मतलब एनर्जी, हमारे जीवन की  ज्योत, प्राण। इंसान इस शरीर के, मन की हर ख़ुशी के लिए क्या क्या नहीं करता। अपनी आखरी साँस तक अपनी इच्छाए पूरी करने के लिए तड़पता है, छटपटाता है। और मरने के बाद यही शरीर मरने के बाद घरवालों को, रिश्तेदारोंको, अनजाना हो जाता है। ' अरे उठाओ इसको नहीतो बदबू आएगी। बास आएगा। जब तक शरीर में आत्मा का वास होता है, तबतक उसकी कीमत है, उसके बाद जीरो। बिग जीरो। फिर चाहे वो कितना ही धनवान हो। 
            जिस शरीर को, जिस्म को चोट लगती थी, थोड़ी खराश आती थी, तो माँ तेल लगाती, जल गया तो बर्नाल लगाती। उस शरीर को घी डालकर जलाया जाता है। कहते है की जल्दी जल जाएगा। 
            जो लकड़ी जलके हम खाना पकाते, अपना पेट भरते वही लकड़ी हमें जलाती है। हां हमें जलाती है, - जैसी करनी वैसी भरनी। अंतिम संस्कार करना ये इंसान ने अपने सहूलियत से बनाया है। लेकिन कुदरत ने अपना काम अपने तरीके से शुरू रखा है। सूक्ष्मजीवों के कारन निर्माण शुरू हो जाता है। पर्यावरण का परिणाम होने लगता है। और सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ जाती है। करोडो सूक्ष्मजीव उस मृत शरीर पर पलते है और मर जाते है।
      उदा;आम। आम पहले कच्चा होता है। बाद में सूक्ष्म जीवो की प्रक्रिया से वो खाने योग्य होता है। लेकिन ज्यादा पक जाए तो सड़ जाता है। मतलब उसमे सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ जाती है। और कुछ ही दिनों में वो आम  गल जाता है।
         
   दोस्तों यह कुदरत है, जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तब से यह काम अपने आप हो रहा है। कुदरत अपना काम शांतिपूर्वक करती है। तो कभी रौद्र रूप धारण कर लेती है। पंचमहाभूतो की मदद से जैसे निर्माण होता है, वैसे ही उनकी मदद से विनाश भी होता है। कुदरत अपना अस्तित्व हमें दिखा देती है। मानने  पर मजबूर कर देती है। उसका अस्तित्व हमेशा बना रहे इसका ध्यान रखती है। 
             कुदरत का यह गुण जिसने सिख लिया, अपनाया वो दुनिया पे राज करता है। मतलब अपना अस्तित्व  बनाए रखने के लिए दुसरो का इस्तेमाल करना। यह जिसको जम गया वही टिकता है। बाकी सब इस्तेमाल होते रहते है। और कचरे की तरह एक दिन ख़तम हो जातेँ  है। 
            जीवन हमें आसक्ति की ओर खींचता है, इच्छा, आकांक्षा, प्यार, लगाव, आशा, मोह। लेकिन समशान हमें विरक्ति की ओर धकेलता है। हर चीज से अपना ध्यान हटाता है। मोह से निर्मोही बनाता है, की एक दिन हमारा यही होने वाला है। इसका ख़याल  आता है। जो बहुत लोगो को विचलित करता है। चाहे कुछ पल के लिए ही सही। आदमी जमी पर आ जाता है। 
             इसलिए कभी कबार समशान में जाना भी हमें याद दिलाता है। की हम भी एक दिन मरने वाले है। इसलिए जब तक जिएंगे पाव जमी पे रख कर जिएंगे। नहीं तो क्या होगा ये बताने की जरुरत नहीं........ ...... 

                                                                                                       लेखक :योगेश वसंत बोरसे.  
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