आप बीती - 5 - हिंदी भय कथा - HINDI HORROR STORY

                     आप बीती - 5 - हिंदी भय कथा - HINDI HORROR STORY  


HINDI KAHANIYA
 HINDI HORROR STORIES

                                                 लेखक : योगेश वसंत बोरसे. 

         योगेश की इस बात से दीपक के रोंगटे खड़े हो गए। " भैया आपको पता भी है आप क्या कह रहे हो ?" "दीपक पता तो लगाना पड़ेगा ये चक्कर क्या है ?" "लेकिन भैया जरुरत क्या है ? आपको मौसी के अंतिम संस्कार में आना था ,वो हो गया है ,तो फिर फालतू  बात को बढ़ावा देने में क्या मतलब है ?बच्चो के एक्ज़ाम चल रहे है ,उन्हें आप दुसरो के घर छोड़ आए है ,वो ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है या ये पता लगाना की आपको यहाँ किसने छोड़ा ?" 

    "दीपक , तू मेरा छोटा भाई है ,समझाना !छोटा भाई !तो छोटे भाई की तरह रहना सिख ! क्या सही है ?क्या गलत है ?क्या जरुरी है ?क्या नहीं ? ये मुझे तुमसे सिखने की जरुरत नहीं है!तेरा कहना ठीक है जिस काम से आये थे वो हो गया है। तो विद्या बच्चोके पास चली जाएगी। और मै  भी कही बाहर गुजारा कर लूंगा , तुझे फिक्र करने की जरुरत नहीं है !"

     "भैया मेरा वो मतलब नहीं था। " "तो क्या मतलब था तेरा ? मै  सुबह से गौर कर रहा हूँ ,तुम लोगो को मेरा यहाँ आना पसंद नहीं। माँ को भी नहीं। तो इसके आगे ध्यान रखूँगा की आप लोगो को मेरी वजह से कोई तकलीफ ना  हो ! कल मै अगर मर भी जाऊँ तो कोई मत आना मुझे जलाने के लिए !मै मेरा इंतजाम खुद कर लूंगा !" 

     "क्या भैया आप भी बात को कहाँ से कहाँ ले जा रहे हो ? भला हमें क्या आपत्ति होगी आपके आने से ?माँ को आपकी फिक्र हो रही थी  इसलिए उसने कह दिया। और मै  भी वही कह रहा हूँ। अगर कुछ ऊंचनीच हो गयी तो बच्चोको कौन संभालेगा ?" 

    "मेरे बच्चो की तुम पर जिम्मेदारी नहीं आएगी ,उसकी तुम फिक्र मत करो ! उनके लिए मैंने इंतजाम कर के रखा है। " "भैया ये बात ठीक नहीं है ,आप हर बात का अलग मतलब निकालते हो। " "हां बराबर है !मै ही गलत हूँ ! मैंने गलती ही कर दी यहाँ आकर ! " और योगेश वहाँ से उठकर जाने लगा ,तो ढाबेवाला  जल्दी में बोला।,"साब मेरे पैसे ?" "योगेश ने पांच सौ का नोट उसे थमा दिया। "क्या साब सिर्फ पांच सौ ?" "तो क्या तुझे पांच लाख का इनाम दूँ ! वैसे तो तुम्हारी पुलिस में कंप्लेंट करनी  चाहिए !" "साब मैंने क्या किया ?" "अरे उधर टॉयलेट में वो औरत घूमती है ,उसे बंद क्यों नहीं रखते ? दूसरा टॉयलेट बना ले !अगर कही बाहर आने लगी तो ? वो भी छोड़ ! उसे डरकर कोई और मर गई तो ,तेरा ढाबा ही बंद हो जायेगा।  

   उसकी बात से ढाबेवाले सोच में पड़ गया। उसे योगेश की बात सही लगी। " लेकिन तुम्हे और पैसे मिल सकते है !" "कैसे साब ?"ढाबेवाले की आंखोमे चमक आ गयी। "मेरा रहने का ,और गाड़ी का इंतजाम कर दे !" उसकी बात सुनकर दीपक घबरा गया। "भैया ,मै आपके पाँव पड़ता हूँ। आप घर चलिए। " "दीपक मै घर तो आऊंगा ,लेकिन वहा  रुकूंगा नहीं ! विद्या को ट्रैन में बिठा दूंगा ,वो चली जायेगी। मै बाहर इंतजाम कर लूँगा। जितना ड्रामा सुबह से हो रहा है ,बहोत हो गया। वो विद्या की बच्ची भी मुझे पागल बनाने पर तुली है ,ये सब रायता उसने ही फैलाया है। उसे तो मै बाद में  निपटूंगा !खाली जी जी करती है !अकल तो कुछ है नहीं। "

     "भैया ,आप यहाँ से चलिए। घर चलकर बात करते है। " दीपक के पसीने छूट गए थे। उसे लग रहा था भैया को सचमुच डॉक्टर की जरुरत है। इनके साथ आकर गलती कर दी।

      योगेश ने ढाबेवाले से कहां, " अभी हम जा रहे है, मै शाम को वापस आऊंगा, तबतक वो टॉयलेट बंद होना चाहिए और दुसरा इंतजाम कर ! और मेरे रहने का और खाने का, गाडी का इंतजाम भी कर, दीपक चल। " ढाबेवाले देखते रहा गया। ये आदमी है या हैवान ? ऐसे बता रहा है जैसे मै इसका नौकर हूँ ! 

      उसने जोर से आवाज दी ,"सुनिए साब !"योगेश ने चिल्लाकर पुछा ,क्या है ?"ये आपके पैसे ले जाइये ,मुझे नहीं चाहिये ,और आप का इंतजाम कही बाहर कर लेना यहाँ नहीं होगा ! योगेश के चेहरे पर गहरी मुस्कान थी ,जो दोनों के समझ के परे थी। तो तू ढाबा बंद करके ही मानेगा ! "

     "साब आप के साथ रहने से अच्छा है के मै ढाबा ही बंद कर दू ! " "ठीक है। मै शाम को वापस आता हूँ तब तक सोच ले ,या फिर ढाबा ही बंद कर ले ! चल दीपक !" दीपक ने बाइक स्टार्ट की ,और दोनों वहां से निकल गए। ढाबेवाला सोचता रहा ,'अजीब आदमी है ! इतनी गॅरंटी के साथ कह रहा था जैसे मै इसकी बात मैंने वाला हूँ !न जाने इसके घर वाले इसे कैसे झेलते होंगे ?' 'लेकिन ये मेरे ही पीछे क्यों पड़ा है ?मै तो इसे जानता भी नहीं ?'

      दीपक और योगेश घर पोहोचे। योगेश ने विद्या को आवाज दी ,वो आ गयी। चलो निकलते है यहाँसे !दीपक रोने पर आ गया। विद्या असमंजस में पड़ गयी। "क्या हुआ जी ?तबियत तो ठीक है ?" " जी की बच्ची ! ये हर बार तबियत का जिक्र करना जरुरी है ?"योगेश जोर से बोला। विद्या घबरा गयी ,कुछ न कुछ जरूर हुआ है ,वरना ये ऐसे बात नहीं करते। "चलो ,निकलो यहाँसे !" 

       सब लोग उसकी तरफ देख रहे थे ,इतने में माँ आ गयी। "बेटा ,क्या हुआ ?" "कुछ नहीं माँ !" "दीपक क्या बात है ?"दीपक जैसे इसी बात का इंतजार कर रहा था , वो जल्दी जल्दी में सब बोल गया ,जो उसके पल्ले पड़ा था। माँ और विद्या दोनों हैरान थे ! 'अभी ये क्या नाटक है ?ये गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा है ?'

         विद्या परेशान हो गयी।उसने कहा "हम यहाँसे से सीधा घर जाते है !" "नहीं विद्या !मेरा फैसला हो गया है ,मै यही करने वाला हूँ ,और मेरी एक बात ध्यान में आ गयी है ,मेरी वजह से तुम्हे और सबको परेशानी हो रही है। तो अच्छा है तुम अकेली ही चली जाओ। वैसे भी तुम चाहती थी की मै कही दूर जाऊं ! तो मैंने ठान लिया है ,मै सुरेश की बात क्लियर करके ही दम  लूँगा ! चाहे मौत क्यों ना हो जाए !"

     माँ को चिंता होने लगी , "योगेश तुझे हो क्या गया है ? कैसी बहकी बहकी बाते कर रहा है ?अरे तेरा परिवार है ,रिश्तेदार है ,ऐसा कोई करता है क्या ?  'आया मन में चले तपोवन में ' दो दिन शांति से गुजार ले और वापस घर जा ! बच्चे छोटे है ,कुछ जिम्मेदारी है या नहीं ?" "नहीं  माँ ,मै कहाँ जिम्मेदार हूँ ?मै तो ऐसा ही हूँ ! यहाँ वह घूमता रहता हूँ !सबको परेशान  करता हूँ !पागल हूँ न मै !" "हां ,हूँ मै पागल !तो मुझे अकेला छोड़ दो !" और वो वहा से चला गया।  

          विद्या रोने लग गयी ,उसे समझाते समझाते माँ की और दीपक की हालत ख़राब हो गयी।  दीपक सोचने लगा ,'अच्छा होता अगर मौसी न मरती,वो भी ऐसा ही करती थी। 'और वो चौक गया। 'मौसी ऐसा करती थी ,लेकिन भैया तो पहले ऐसे नहीं थे !बिलकुल शांत स्वभाव के थे। इसका मतलब मौसी का साया तो नहीं है भैयापर ?'

     "हे भगवान !" माँ ने पूछा "दीपक क्या हुआ ? उसने वही बात बताई,तो माँ और विद्या दोनों सहम गयी। 'ऐसा हो सकता है ? हो तो गया है ! और यही सही होगा तो आगे कुछ अलग ही होने वाला है!'

         हां ! ऐसा ही हुआ जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते थे !........  


                       TO BE CONTINUED ......... 

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                                               लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 


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