आप बीती - 4 - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORY

                    आप बीती - 4 - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORY     


HINDI BHAYKATHA
 HINDI HORROR STORIES

                                                   लेखक : योगेश वसंत बोरसे.

     सब कार्य  विधिपूर्वक सम्पन्न हुए। और कुछ देर बाद सब लौट आए। धीरे धीरे घर में बाते बढ़ने लगी। लोग अजीब तरीके से दोनों को घूर रहे थे। योगेश को समझ में नहीं आ रहा था ,ये क्या चक्कर है ?उसने विद्या से पुछा  "क्या हुआ ? तुम्हारी कुछ बात हुई क्या ?" "जी मैंने सिर्फ इतना कहा की हमें सुरेश ने यहाँ छोड़ा। " "सही तो है ! लेकिन ये लोग इतने हैरान क्यों है ?" विद्या उलझन में पड़ गयी। इन्हे बताये या न बताए ?"विद्या बात क्या है ?बताओ भी ?" "जी ये लोग बाहर कह रह थे की ....." "क्या ? बताओ भी ?"  

      "कुछ दिनों पहले सुरेश का एक्सीडेंट हो गया था !" "क्या ?" लेकिन हमें किसी ने बताया नहीं ? उसे क्या हुआ था ?" "वो मर गया था !" "विद्या क्या बकवास कर रही हो ?क्या तुम्हे मैं  पागल दीखता हूँ ?" "नहीं जी लेकिन इसीलिए ये लोग हमें पागल समझ रहे है ! और आप को याद होगा वो ढाबे पर भी हमें देखकर लोग हँस रहे थे ! क्योंकि सुरेश हमें दिख रहा था। उन्हें नहीं !"योगेश कुछ सोचने लगा।

      विद्या को उसकी फ़िक्र होने लगी। "देखिये आप ज्यादा सोचिए मत !  एक तो ऐसेही   आपकी  तबियत ठीक नहीं रहती।लोग कुछ भी समझे ,मुझे कोई फरक  नहीं पड़ता। दो दिन यहाँ शांतिसे रहते है ,और चले जाते है। वापस यहाँ नहीं आएंगे ! "नहीं विद्या वो बात नहीं है। लेकिन इतनी बड़ी बात हमसे क्यों छुपाई गई ?"

      "क्यों की विस्फोट में वो पूरी तरह जल चूका था ! आपसे बर्दाश्त नहीं होगा ,इसलिए आप को नहीं बताया ,हमें नहीं बताया। " "विद्या एक बात कहूं ? तुम मेरी फिक्र करती हो ये  अच्छी बात है। लेकिन तुमने अच्छे खासे आदमी को बीमार साबित कर दिया है ! मै मजाक बनकर रह गया हूँ। लेकिन मै इतना भी कमजोर नहीं हूँ। लेकिन ना हीं हम पागल है , ना ही ये लोग गलत कह रहे है ! हम यहाँ कार से ही आये थे। उड़कर तो नहीं आए ,ना ही हमें कोई भूत उठाकर या उड़ाकर यहाँ तक छोड़ गया। "विद्या 'LOW  OF ATTRACTION ' का सिद्धांत कहता है की जो बात हम बार बार सोचते है ,वो एक न एक दिन सच हो जाती है !"

     " लेकिन मै तो ऐसा नहीं सोचती ,ना ही मेरी क्षमता है। मै तो बस आपके साथ रहती हूँ। "विद्या कुछ न कुछ चक्कर जरूर है !" योगेश सोचते हुए बोला। "और एक बात ,तुम मेरी फिक्र मत करो। मै इतना कमजोर भी नहीं हूँ की इतनी आसानी से दम तोड़ दूंगा !"

       "क्या बात कर रहे हो जी ? शुभ शुभ बोलो ! नहीं तो एक  काम करो ,ये लिखना बिखना छोड़ दो। हमारे पास इतना पैसा आ गया है की हमारी जिंदगी आरामसे कट सकती है !गुजर सकती है। कुछ दिनों के लिए तो छोड़ ही सकते हो। जरा कही घूम के आओ ,अच्छे माहौल में ,भगवन के दर्शन करके ,सब ठीक हो जायेगा !" 

    "विद्या भगवान के दर्शन करके सब ठीक हो जाता तो इतना बड़ा हादसा होता ही नहीं। ना ही सुरेश मरता !लेकिन अगर ये बात सच थी तो ये भी बात सच है के हमें यहाँ तक कोई छोड़ गया है !अपने आपको सुरेश बनाके ! कौन था वो ?"

     पहेली अनसुलझी थी। कैसे पता लगाए वो कौन था ? योगेश सोचते सोचते चौक गया। इस सब चक्कर में वो एक बात बिलकुल भूल गया था !जो शायद विद्या अभी तक नहीं भूल पायी होगी । 'वो औरत ' जो लेडीज टॉयलेट में विद्या ने देखि थी। वो उठकर खड़ा हो गया।

     "दीपक जरा सुनो तो !" "जी भैया ?" "यहाँ से नजदीक एक ढाबा है। " "नहीं भैया। यहाँ नजदीक कोई ढाबा नहीं है !" "दीपक मै पूछ नहीं रहा हूँ ,बता रहा हूँ !" दीपक उसे घूरता रहा। अब ये क्या नया सुनाने वाला है ? "तो ?" "हमे वहा  जाना है। चल सकते हो ?" "लेकिन भैया मै बता रहा हूँ ,की यहाँ नजदीक कोई ढाबा नहीं है। " "मुझे पता है चल !" दीपक असमंजस में पड गया। 

     "क्या हुआ ?" "माँ से पूछना पड़ेगा। " "क्या ?ढाबा कहा है ?" नहीं भैया हम वह जा रहे है ,तो अभी जाए ,या बाद में जाए !" "तो चल पूछ लेते है। नहीं मै  अकेला जा कर पूछता हूँ।  योगेश समझ गया , इसकी जाने की इच्छा नहीं है। "रुको ,मत पूछो ! मै  अकेला ही जाता हूँ ! गाड़ी की चाबी मिलेगी ? "  दीपक शर्मा गया। "चलो भैया चलते है !" "दीपक एक मिनट ! माँ से बोलके आ। " "नहीं भैया , उसकी जरुरत नहीं है । 

   " लेकिन मुझे है। एक काम करते है माँ को दोनों ही मिलते है !" योगेश ने माँ को और दीपक को सब कुछ बता दिया ,जो अभी तक हुआ था। माँ को उसकी फिक्र होने लगी। "बेटा क्यों वक़्त बेवक़्त यहाँ वहाँ घूमते रहते हो ? रही बात यहाँ आने की ,अगर तबियत ठीक नहीं है ,तो नहीं आना था ! हम थे न यहाँपर ! तुम्हे कुछ हो जाता तो ?"

      योगेश ने माँ का हाथ पकड़ा और बोला "माँ ,मै बिलकुल ठीक हूँ ,तुम टेंशन मत लो ! और विद्या साथ में थी ,इसलिए आप लोग मुझपर यकीं कर रहे हो। वरना मुझपर कौन भरोसा करता ?" " वो बात नहीं है बेटा !लेकिन तुम खयालो की दुनिया में खोये रहते हो ,इसलिए सच क्या ,कल्पना क्या ?पता ही नहीं चलता ! थोड़ा सेहत पर ध्यान दो बेटा ,कैसे हो गए हो ? "

      "ठीक है माँ ! दीपक चले ?" "हाँ भैया ,चलो। बेटा ,संभलकर जाना।" "  हां माँ चिंता मत करो। "हम थोड़ी देर में आ जायेंगे। " दीपक हैरान था ,की गांव के पास ढाबा खुल गया ,और हमें पता ही नहीं ! लेकिन वो सही था। गांव के पास कोई ढाबा नहीं था। हां ,लेकिन काफी आगे था।              कुछ ही देर में वो ढाबे तक पोहोच गए। काउंटर पर जो आदमी था ,वो योगेश को देखकर हसने लगा। " क्यूँ भाईसाब कार मिल गई ? अरे सुनो ये कार वाले भाई साब वापस आ गए !".......  " अभी कार कहाँ लगाई ?" "नहीं कार नहीं लाई है,बाइक पर आये है।" " कहा है बाइक ? " योगेश ने इशारा किया ," दिख रही है ?" "हाँ !" "तो सुबह क्या पी रखी थी ,जो कार नहीं दिख रही थी ?" वह आदमी कार देखकर चुप बैठ गया।

     "ये कौन है?" "ये दीपक है !मेराभाई!"क्यों ,कार मिल गई ,भाई नहीं मिला ?" योगेश बोला "अभी तू चुप बैठ ! वरना बहोत मार खायेगा ! सुबह बीबी साथ में थी, और मौसी के अंतिम संस्कार मे जाना था। लेकिन अभी सब कर के आया हूँ ! तेरा भी अंतिम संस्कार  यही कर  दूंगा ! अभी मै जितना पूछूंगा ,उतना जवाब दो ,तो तुम्हे पैसे मिलेंगे ! लेकिन जरा उछलना बंद कर !" पैसे की बात सुनते ही वो शरीफ बन गया।

     "अरे साब ,आइये ना ! आप ही का ढाबा है ! आइये यहाँ बैठते है ,यहाँ कोई नहीं आएगा !" वह तीनो एक कोने में खटिया पकड़कर बैठ गए।" बोलिये साब, "कुछ दिनों पहले यहाँ बड़ा एक्सीडेंट हुआ था ,काफी लोग मर गए थे। उसके बारे में बताओ !""साब पुलिस वाले हो क्या ?"  "नहीं क्यों ?" तो क्यों पूछ रहे हो ?" "ठीक है ,मत बताओ !कोई और बता देगा !मुझे क्या ?किसीको भी पैसे देने है !चलो दीपक !"वो उठके जाने लगे।

  " अरे नहीं साब बैठो बैठो। तो पहले ये बताओ तुम्हारे यहाँ टॉयलेट में वो औरत दिखती है। क्या चक्कर है ? " "कुछ नहीं साब ! अफवा है, ऐसा कही होता है ?" " अफवा के बच्चे, मेरी बीबी तुम्हारे यहाँ आके डर गई ! और तुम कहते हो अफवा है, बताओ जल्दी !"

       " साब ये जल्दी का काम नहीं है।" "  तो ?"  "आपको इत्मीनान से सुनना पडेगा। " " ठीक है, बताओ। " " आप ने देखा होगा हम हर गाड़ीवाले की पूछताछ करते है। आप की भी की थी। " "हाँ। " " जो पहले नहीं होती थी। लेकिन ये ढाबा चौबीस घंटे खुला रहता है। जो उस दिन भी था। शायद शादी के लिए जानेवाली बस थी। या कही ट्रिप के लिए निकले थे, पता नहीं। लेकिन लेडीज ज्यादा थी। और अच्छे घर की भी थी। जेंट्स भी थे लेकिन इतने नहीं थे। हम किसी पर ध्यान नहीं दे रहे थे। लेकिन औरतो का हंगामा बढ़ता ही रहा। मौज मस्ती, मजाक मस्ती, जोर जोर से बाते करना , हँसना , खिलखिलाना शुरू था। कोई कोई तो ख़ुशी से नाच भी रही थी। शायद उन्होंने पी रखी थी। 

       अभी इतना बड़ा ग्रुप था, टॉयलेट कौन गया, कौन नहीं गया, कौन बाहर आया, कौन नहीं आया ये कौन ध्यान रखेगा ? मस्ती में झूमती हुई आती थी जाती थी। ऐसा करते करते कुछ देर बाद वो लोग निकल गए। फिर पूरा सन्नाटा छा गया। किसी को कुछ पता नहीं था। बाद में एक कार में कपल आया। " " जैसे हम लोग आए थे। " " साब मजाक मत करो आप के पास कोई कार नहीं थी। "

   " तो तुम्हे क्या लगता है हम लोग रात के तीन-चार बजे मिया- बीबी पैदल घूम रहे थे ? वो भी हाइवे पर ? हमारी यहाँ मौसी गुजर गई, उसी सिलसिले में घर से निकले थे। ट्रेन से निकले तो नींद लग गई। इसलिए अगले स्टेशन पर उतरे, वहाँ पर भाई मिल गया, तो उसके साथ ही यहाँ तक आए थे और घर पर भी गए। " 

       " वो आपका भाई नहीं था साब ! " " तुम्हे कैसे पता ? " " क्यों की वो सिर्फ आपको दिख रहा था, हमे नहीं। और आप अकेले ऐसे नहीं थे जिसके साथ ऐसा हो रहा था।  यहाँ रोज ऐसी उटपटांग बाते होती रहती है जिनका कोई मतलब नहीं होता। अगर सोचने लगे तो पागल हो जाएंगे और डरेंगे तो मर जाएंगे। इसलिए हर बार हंसी मजाक करते रहते है। यहाँ रोजी - रोटी है। ये छोड़के जा भी तो नहीं सकते। "

      " तो तुम लोग हमारा मजाक क्यों उड़ा रहे थे ? " " क्यों की आप डरे नहीं। अगर आप डर जाते तो घर तक नहीं पहुंचते। आपने गौर किया होगा, हमने आपका मजाक उडाया तो आप उसी सोच मे  घरतक पहुंच गए। उस ड्रायव्हर पर ध्यान नहीं दिया। उसने ना चाय पी होगी ना पानी पीया होगा। और उसने आपको हाइवे पर ही छोड़ा होगा। घरतक वो जाएगा ही नहीं। " " तुम्हे कैसे पता ?  " " साब यही सब चल रहा है यहाँपर, हमें आदत पड़ गई है। " 

     " लेकिन उसने हमें कोई हानी  नहीं पहुंचाई। " "साब आप उलटा सोचते है।  " "मतलब ? " " आपको हानी ना पहुंचे इसलिए उसने ऐसा किया। " " लेकिन वो था कौन ? क्यों की तुम्हारा कहना सही है। मेरा भाई उस एक्सीडेंट  में  मर गया था। " " साब हम आपको वही समझाने की कोशिश  कर रहे  थे लेकिन आप सुनने के मूड में नहीं थे । "

       " लेकिन हम कार से ही गांव तक पहुंचे थे। यही सच्चाई है। " "साब आपको पहुंचाया गया था। " " बात तो एक ही है। " " नहीं साब अगर आप मौसी के यहाँ जाने की बजाए ऊपर पहुंच जाते तो ? " " लेकिन हमे पोहोचाया किसने ? " " उसीने जिसने आपको पोहोचाया था। वह आपके भाई की आत्मा थी। जिसने आपको सही सलामत पोहोचाया। और आपको ही नहीं ऐसे बहुत सारे लोग है जिनको वो रोज पहुंचाता है।

        लेकिन कोई क्रॉस चेक नहीं करता। आपने किया इसलिए आपको मालुम हुआ। इस दुनिया में कुछ लोग अच्छे होते है। कुछ बुरे ! वैसे ही कुछ आत्मऐ  अच्छी होती है ,कुछ बुरी ! बुरी आत्माए  जितने बुरे काम करेंगी  उतनी उनकी ताकद बढ़ती है। अच्छी आत्माए जितने अच्छे काम करेगी उतनी उनकी ताकद बढ़ जाती है। आज तो संयोगवश आप उसे मिल गए। नहीं तो वह रोज ही यही काम करता होगा। जैसे बुरी आत्माओ का दायरा बढ़ रहा है, वैसे ही अच्छी आत्माओ का दायरा भी बढ़ रहा है। "

     " ये दायरे की बात तो वो भी कर रहा था।" " हाँ , और उसका दायरा बड़ा था। इसलिए आप सही सलामत घर तक पहुंच गए ! "  योगेश सन्न रह गया। इसमें क्या सही है, क्या गलत है, कैसे ढूंढेंगे ? लेकिन जो हुआ था वो कुछ इसी प्रकार हुआ था।

     " और वो औरत का क्या चक्कर है ? " " वो ग्रुप था उसमे से ही वो थी। उसमेसे ही किसीने उसे मार दिया। नशे में थी। अंदर भी नाच रही होगी। किसीने उसका वही काम तमाम कर दिया। इसलिए वो अभी भी नाचती हुई दिखाई देती है।

       लेकिन किसी को हानी नहीं पोहोचाती। उसे किसने मारा अभीतक पता नहीं चला। पुलिस आई थी। हमें बहुत परेशान किया। लेकिन हमें कुछ मालुम ही नहीं था तो क्या बताते। ना तो वो बस मिली ना वो औरते जो यहाँ आई थी। धुए की तरह ना जाने कहाँ उड़ गई।  इसलिए हम आने वाले लोगोंपर ध्यान  रखते है, की दुबारा कोई उचनीच ना हो जाए। " 

    " भैया अब आगे क्या करे ? " " मै स्टेशन वापस जाऊंगा। " " क्या ? " " हाँ दीपक ! रात को सुरेश मिलेगा तो उधर ही मिलेगा।".......................... 


                 TO BE CONTINUED....... 


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                                               लेखक:योगेश वसंत बोरसे. 

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