चुड़ैल - 2 हिंदी भय कथा | Hindi Horror Story | Hindi Bhaykatha

चुड़ैल - 2  हिंदी भय कथा | Hindi Horror Story 

HINDI KAHANIYA
 HINDI HORROR STORIES 

                                                   लेखक : योगेश वसंत बोरसे. 

               "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो तो..... और भी भयानक हो जाती है !....." " अबे साले गाना तो ढंग से गा !" " अरे  इतने डरावने माहौल में अच्छा गाना कहा से निकलेगा ? "रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक खुली कार रस्ते से गुजर रही थी। करन और विकी साथ मे थे। दोनों दोस्त थे।  करन को गाने का शौक था ,वही गाना  गुनगुना रहा था।    

     विकीने मजे लेते हुए पूछा ,"और ये भयानक हो जाती है का क्या मतलब हुआ ?"कुछ नहीं यार ,ऐसे ही बोल दिया। माहौल देख के मुँह से निकल गया। एक तो ठंडी का मौसम है। हम खुली कार में घूम रहे है ,ऐसे ही हाथ पाव काप रहे है !ऐसे में कोई चुड़ैल पेड़ से उलटी लटकी मिली ,तो सोच क्या होगा ?" "क्या होगा ? हम उसे निचे उतार लेंगे !" "अरे वो क्या चमगादड़ है ,उल्टा लटकेगी तो ?" "लेकिन उसे निचे उतारकर क्या करेंगे ?उससे कहेंगे की बंदर जैसी हरकते न करे!" "अगर वो रूठ गयी तो ?" "तो क्या हमें पता चल जायेगा की कोई  हसीना  जब रूठ जाती है तो कैसी दिखती है ?"

     "अरे मै चुड़ैल की बात कर रहा हूँ ,हसीना की नहीं। "  "अरे तूने फिल्मो में देखा नहीं वो कितनी सूंदर दिखती है ?" अरे वो तो फिल्म है ,सामने देखने को मिले तो मजा आ जायेगा ! लेकिन हमारे इतने भाग्य कहाँ  ?".......  " अबे करन गाड़ी स्लो चला इतनी क्यों भगा रहा है ?" "अरे सचमुच मिल गई ,तो लफड़ा हो जायेगा। " " करन तू इतना डरपोक तो नहीं है ,तो अब क्या हुआ ? " "अरे इन चुडैलो का कुछ भरोसा नहीं ,कही से भी आ जाती है परेशां करने के लिए , तो क्या परेशां करने वाली सब चुड़ैल होती है ?" " नहीं ,लेकिन जो परेशान करती है ,वो जरूर चुड़ैल बनती होगी ?" .....

    करन की नजर सामने रस्ते पर थी।सामने रस्ते के एक साइड में एक बड़ा सा पेड़ था ,उस पर गयी। और उसने दूर ही कार रोक ली। "करन क्या हुआ ?" "अरे सामने देख !" "करन  सामने कुछ नहीं है ?"चल गाड़ी निकाल !"  " विकी सामने पेड़ के ऊपर देख ! कोई तो है जो पेड़ पर बैठा है। " "अरे करन वो बंदर है ,गुलाटी मार रहा  है। " "विकी जरा सोच , रात का एक बज रहा है ,इस वक़्त कोई बंदर पेड़ पर गुलाटी क्यों मारेगा ?" "अरे उसने ज्यादा खा लिया होगा इसलिए ,हजम करने के लिए गुलाटी मार रहा होगा। " "लेकिन ये धीरे धीरे बड़ा क्यों हो रहा है ?" अरे वो हमारी तरफ आ रहा है !" विकी वो हमारी तरफ ही आ रहा है ,और बड़ा भी हो रहा है।" "करन गाड़ी पीछे ले जल्दी !" "अरे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही है। " "करन वो हमारी तरफ आ रहा है ,भाग... "

   दोनों गाड़ी से बाहर निकले और भागे। कुछ ही दुरी पर झाडिया थी ,करन वहा पर घुस गया। उसके पीछे पीछे विकी भागा। एक आफत से तो बच गए थे ,लेकिन दूसरी आफत उनका इन्तजार कर रही थी। जिसका उन्हें अंदाजा नहीं था। वो झाड़ियों में छुपते छुपते रास्ते से बहुत दूर आ गए। उस बंदर जैसे जानवर का कही पता नहीं था।

    लेकिन अब वो डर  गए थे। मजाक की जगह डर  ने ले ली थी। ये कहा आ गए हम ?इससे अच्छा तो उस बंदर से निपट लेते तो ठीक रहता। अब कैसे यहाँसे वापस जायेंगे ?हमे रास्ते तक पोहोचना है ,कैसे पोहोचेंगे ? 

    "मैं  पोहोचा दूँ ?" "कौन है ?" तभी जोर से खिल खिलाती हसी उनकी कानो में गुंजी। उनके रोंगटे खड़े हो गए। "कौन है ?" "तुम्हे क्या मतलब ! तुम्हे रस्ते तक पोहोचना है , मैं पोहोचा दूँ ? " करन  हम फस गए यार !हम इनका मजाक उड़ा  रहे थे ,अब ये हमारा मजाक बना रहे है ! लेकिन कौन है  ? कहाँसे  से बोल रहा है ?

   " तुम कहासे बोलते हो ?" "मै  तो यही से बोल रहा हूँ।" " तो मै भी  यही हूँ। इधर देखो !  "हसती  खिलखीलाती आवाज चारो ओर से आ रही थी।लेकिन कोई नहीं दिख रहा था। दोनों चक्कर लगाकर परेशां हो गए। घूम घूम कर चक्कर  आने लगे। 

    " करन ये जो कोई भी है , औरत तो नहीं हो सकती। कोई औरत इतनी रात को झाड़ियों में क्या करेगी ? " "अरे यार ये क्या झाडिया है ?या तो जंगल ही लग रहा है।  "मैं यही रहती हूँ ! यही मेरा घर है। और तुम मेरे मेहमान हो। तुम्हारी खातिरदारी तो करनी पड़ेगी। तो मैं आ जाऊं ?" नहीं हमे नहीं चाहिए तुम्हारी खातिरदारी !"

     लेकिन मैं तो आ गयी। दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया। एक बड़े पेड़ के नीच कोई था। जो उनकी ओर बढ़ रहा था,बड़ी तेजी से ,और पलक झपक ते ही  सामने आ गयी एक  औरत ! हाँ ,फिगर  तो औरत का ही था ,पर चेहरा देखने का दोनों को कोई शौक नहीं था। नाही बिजली चमक रही थी, नाही कोई चमकने की संभावना थी। आसमान साफ़ था। चांदनी टिमटिमा रही थी। लेकिन बड़े बड़े पेड़ होने की वजह से अँधेरा घना लग रहा था। चांस एक ही था भागने का।        "भागो करन !" "ऐसे थोड़ी होता है ! "वह अपने लम्बे घने बालो पर हाथ फेरते हुए बोली। "ऐसे थोड़ी होता है ?भागता तो अर्जुन है !करन तो बचाता है। " "लेकिन यहाँ पे अर्जुन  कौन  है ?" " करन तो है। तो तुम भागो।  करन  तुम्हे बचाएगा !और मैं पकड़ूँगी भागो। 

      " अरे ये पागल तो नहीं है ?हमें भागने के लिए कह रही है। एक काम करते है अलग अलग दिशा में भागते है ,ये दोनों तरफ तो नहीं भाग सकती। " और दोनों ने वही किया ,दोनों अलग अलग  दिशा में भागे। "ये तो चीटिंग है। करन को पिछे से आवाज आयी। ठीक है तुम्हारी मर्जी। उसे पीछे से आने वाली आवाज नजदीक आने लगी। और... कुछ ही पल में उसकी दाई ओर कोई परछाई उड़ती हुई उसके साथ साथ आगे बढ़ती रही। हसती ,खिलखिलाती।" तुम इधर क्यों भाग रहे हो ?रास्ता तो उधर है ! "करन का सर चकराने लगा। यही बात विकी के साथ भी हुई। उसे भी पीछे से आवाज सुनाई दी। और कुछ ही देर में उसकी दाई  ओर परछाई दिखने लगी और साथ साथ आगे बढ़ने लगी। "तुम यहाँ क्यों भाग रहे हो ? रास्ता तो उधर है। 

     विकी पलटा और उसी दिशा में आया। जहाँसे  भागना शुरू किया था। देखा तो सामने से कोई भागते हुए आ रहा था। करन ही है। दोनों हाँफते हुए एक दूसरे के सामने पोहोचे। और वो औरत भी। "ये हुई न बात ! तुम्हारा याराना बहुत पक्का है। वापस मिल गए। लेकिन अभी एक ही दिशा में भागना।

    दोनों की हालत बेहद ख़राब थी। "हमें नहीं भागना !तुम्हे जो करना है ,करो !" "ठीक है तुम्हारी मर्जी  !" बाद में मत कहना ,मौका नहीं दिया। " और... वो .. गायब हो गयी। "विकी ,वो तो चली गयी ,अब निकलते है यहाँसे। " "लेकिन करन ,जायेंगे कहाँ ? यहाँ तो हर जगह एक जैसी दिख रही है। जैसे भूल भुलैया हो।"  तभी उन्हें दूर से तेज रौशनी गुजरती हुई दिखी।         'इसका मतलब हम रस्ते से दूर नहीं है !'दोनों का हौसला  बढ़ गया। जिस्म में नयी जान आ गयी। "करन चलो " विकी ने कहा। दोनों उस ओर निकले। उन्हें इतना तो पता चल गया था की हर बात का मजाक उड़ाना ठीक नहीं है। ऐसे माहौल में आये और मजाक उड़ाकर दिखाए। यहाँ पर तो वही मजाक बन गए थे। 

      दोनों आराम से उस रास्ते की ओर बढ़ रहे थे। की पीछे से गुरगुराने जैसी आवाज आने लगी। विकी का ध्यान उधर गया। वह हक्का बक्का रह गया। एक बड़ी सी परछाई  इनकी और देखके गुर्रा रही थी। 'ये क्या है ?' "करन भाग !" और एक नई आफत !

     दोनों सर पर पैर रखकर सड़क की ओर भागे।उन्हें कुछ ही दुरी पर रौशनी आती जाती दिखाई दे रही थी। लेकिन उनके पसीने छूट गए। जब उन्हें पैरो के निचे पानी महसूस हुआ !

     सामने एक विशालकाय नदी बह रही थी ! और दूसरी ओर वह रास्ता था। दोनों के हाथ पाँव कापने लगे। अब ?.... उसपार कैसे जायेंगे ? और हमारी कार ? मतलब ये दुसरा ही रास्ता था। तभी उन्हें खिलखिलाते हसने की आवाज सुनाई दी !हैरानी की बात यह थी के अब उन्हें डर नहीं लग रहा था। उन्हें लगा हमारी कोई मदद करेगा तो यही है। जो कुछ देर पहले हमारी मदद ही कर रही थी ,लेकिन हम उल्टा सोच रहे थे।

      सचमुच क्या आत्माए इतनी बुरी होती है ?या हमारी सोच ही हमे अलग सोचने पर मजबूर करती है ?........

                                                           THE END 

                                            लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 


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