झूठन -5 हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORY
हिंदी भय कथा |
PART : 5 लेखक :योगेश वसंत बोरसे.
झुठन - 1 हिंदी भयकथा
झूठन - 4 हिंदी भयकथा
समिधाने जानकी के सामने हाथ जोड़े। "अरे दीदी आप ये क्या कर रही है ? " "नहीं जानकी ,तुम्हारी वजह से आज मेरे बच्चे जिन्दा है !" "दीदी ,हम अलग थोड़े ही है ? "जानकी ने समिधा को गले लगा लिया। उन्हें यही अफ़सोस था की हम नीलिमा को नही बचा पाए। लेकिन किस्मत के आगे किसी की नहीं चलती ये उन्हें मानना पड़ा।
श्रेयस अभी हमारे घर रुको ! जबतक सब कुछ ठीक नहीं हो जाता तब तक घर मत जाओ ! जानकी ने श्रीधर की और देखा ! उन्हें ये बात पसंद नहीं आयी वो नाराज थे ,मगर कुछ नही बोले , जानकी को इनसे इतना लगाव क्यों है उन्हें समझ नहीं आ रहा था ,वैसे भी नीलिमा के जाने के बाद इनसे क्या संबंध ? ऐसा उसका कहना था। लेकिन उसने जानकी को विरोध नहीं किया। उसके सिवा उसका था भी कौन ? उसे अच्छा लगता है तो श्रीधर ने मान लिया ,और वो रिंकी के पास रुके ।
चारो निकले ! श्रेयस ने कार निकाली ,श्रुति उसके पास आगे बैठी ,समिधा और जानकी पीछे बैठी। कुछ ही मिनिटो में गाड़ी गांव से बाहर आयी। जानकी के घर के ओर बढ़ने लगी। श्रेयस हैरान हो गया ! उसने गाड़ी रोक दी। "श्रेयस क्या हुआ ?" जानकी ने पूछा। "आंटी ,अंकल यहाँ क्या कर रहे है ?" "श्रेयस क्या बोल रहे हो ? कौनसे अंकल ?" "श्रीधर अंकल !" "क्या ?" "वही तो ! वो देखिये ,वहा खड़े है !जानकी , समिधा ,श्रुति , तीनो दंग रह गयी।
वो व्यक्ति सचमुच श्रीधर जैसी लग रही थी। लेकिन वो तो हॉस्पिटल में है !फिर ये कौन है ? श्रेयस ने गाड़ी उनकी ओर बढ़ा दी। "अंकल , आप यहाँ क्या कर रहे है ? " "श्रेयस तू ? अरे तुम सब साथ में ? रिंकी के पास कौन है ? " "अंकल आपने ही बोला था की आप रिंकी के पास रुक रहे है ,हम घर जाए !" "क्या बात कर रहे हो श्रेयस ? मै गाड़ी ढूंढ के हैरान हो गया हूँ। घरसे कब से निकला हूँ , यहाँ तक आ गया लेकिन कुछ साधन मिले तो न !" "खैर , रिंकी कैसी है ?" "मतलब ?" " अरे मूरख ,अपनी रिंकी कैसी है ?" चारो ने एक दूसरे को देखा ।' अब ये क्या चक्कर है ?' अगर अंकल यहाँ है तो हॉस्पिटल में कौन था ? रिंकी की जान को तो खतरा नहीं ?' "श्रेयस हॉस्पिटल में फोन कर ! रिंकी की जान को खतरा है ! "
"जानकी क्या हुआ ? ""अजी ,मुझेही समझ नहीं आ रहा ! आप वहा थे ,अभी यहाँ हो , फिर वहा कौन था ? " "जानकी तुम लोग वापस क्या गड़बड़ करके आ गए ? मै पूछ रहा हूँ रिंकी कैसी है ? " "रिंकी ठीक थी !" "ठीक थी मतलब ?" "मतलब वो ठीक ही है ,लेकिन अभी उसकी फ़िक्र हो रही है ! "आंटी कोई फोन नहीं उठा रहा !" "तो तुम्हारे अंकल को फोन लगा !"
" जानकी ,दिमाग तो ठिकाने पर है ,मै सामने हूँ ,और मुझे क्यों फोन लगा रही हो ?वैसे फोन घर पे रह गया ,नहीं तो क्या मै तुम लोगो से कांटेक्ट नहीं करता ? " "तो अभी क्या करे ?" "क्या करे मतलब ? वहाँ रिंकी अकेली है चलो !" चारो के पसीने छूट गए थे ,और सामने वाली व्यक्ति इतने अधिकार से बोल रही थी की उन पर शक करना परेशानी का कारण बन सकता था।
"जानकी तुम लोग एक काम करो तुम तीनो यहाँ से पैदल निकल जाओ ,यहासे घर ज्यादा दूर नहीं है ! मै और श्रेयस हॉस्पिटल जाते है ! श्रेयस मुझे छोड़ के वापस आ जायेगा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था की सही क्या है ,और गलत क्या है ? "श्रुति हम दोनों घर जाते है , तुम और श्रेयस इन्हे छोड़कर वापस आ जाओ ,तो हमे फ़िक्र नहीं होगी। "समिधाने कहा। " भाभी ,मै खा नहीं जाऊंगा श्रेयस को ! वो क्या छोटा बच्चा है ? " लेकिन श्रुति ने सीधे सीधे कह दिया ,श्रेयस मै तुम्हारे साथ ही आऊंगी !उसे शक होने लगा था। कुछ न कुछ गड़बड़ है !लेकिन दूसरा रास्ता भी नहीं था।
"अंकल ! दो मिनिट रुकिए ! मै इनको घर पे छोड़ देता हूँ ! " अरे वो जाएँगी ! उनको आदत है रात को यहाँ वहाँ घुमनेकी !" " नहीं ! मै इनको छोड़के आता हूँ ! " श्रेयस ने पल भी नहीं गवाया ,और कार घर की ओर घुमा दी। " श्रेयस अरे रुक !" पर श्रेयस रुका नहीं ! चारो पसीना पसीना हो गए थे। " मम्मी ये क्या "चक्कर है ?" "श्रेयस ये सब अजीब ही है। " "लेकिन अंकल यहाँ पर कैसे आए ?""वही तो समझ नहीं आता। " "इसका एक ही इलाज है ,हॉस्पिटल जाकर देखना पड़ेगा। पर इनको टाल के कैसे जायेंगे ? आंटी ,दूसरा रास्ता है क्या हॉस्पिटल जाने के लिए ?"
" है ! लेकिन बहोत घूम के जाना पड़ेगा ,समय बर्बाद होगा ,लेकिन जाना तो पड़ेगा ,ये कुछ अलग ही लग रहा है। तुम एक काम करो तुम हमें घर के पास छोड़ो ,और वैसे ही आगे निकल जाओ। आगे एक ब्रिज आएगा। वहासे बाई ओर मुड जाना , वो रास्ता हॉस्पिटल की ओर जाता है।" श्रेयस ने जानकी और समिधा को घर के पास छोड़ दिया ,और वैसे ही आगे बढ़ गया।
"श्रेयस मुझे शक हो रहा है ,वो अंकल नहीं थे ! " "कौनसे ?" "अभी जो रस्ते पर मिले वो। " "मुझे भी वही लग रहा है। लेकिन इतना सेम टू सेम दिखने वाला कौन होगा !" "श्रेयस अभी मेरे समझ में आ रहा है ,की क्या चल रहा है ! " "क्या ?" " श्रेयस हमारे घर में मैंने रिंकी को देखा था ,जब की वो हॉस्पिटल में थी , और अभी अंकल हॉस्पिटल में है ,वो हमें यहाँ मिले ! इसका मतलब हमारे ऊपर का संकट अभी टला नहीं ! श्रेयस हम फस गए !" "श्रुति क्या हुआ ?" "श्रेयस उन ताकदो ने हमे दुसरो से दूर कर दिया , अलग कर दिया , खास कर तुम्हे ! अच्छा हुआ मै तुम्हारे साथ आई ! वरना तुम अकेले ही जाते उधर !"
" अरे , माँ जी ने बड़ी मुश्किल से बचाया था हमें ! अभी दोबारा फस गए हम ! "श्रुति डरो मत ! मै तुम्हारे साथ हूँ ! " "मै भी हूँ ! " आवाज एकदम पीछे से आई थी। दोनों एकदम चौक गए। दोनों ने पिछली सीट की तरफ मुड़कर देखा। पिछली सीट पर श्रीधर अंकल बैठे थे। इस सब गड़बड़ी में श्रेयस का कार से कण्ट्रोल छूट गया।
और कार पुल पर लगे पत्थरोंपर टकराके निचे पानी में पलटी हो गयी। "श्रेयस sss " "श्रुति sss " दोनों जोर से चिल्लाये। और एक शैतानी हसी ने पूरा माहौल हिला दिया। लेकिन नियति को ये पसंद नहीं था। श्रेयस और श्रुति को इतनी सी ही चोट नहीं आई ! वो बिलकुल सही सलामत कार से बाहर निकले। "श्रेयस ,श्रुति , कही चोट तो नहीं आई ?"आवाज पहचान की थी। दोनों सहम गए ,और आँखों में पानी आ गया।
"भैया ?पापा ?" "भैया ,पापा ,कहा है आप ?हमें छोड़कर कहा चले गए ? " "अरे तुम्हे छोड़कर हम कहाँ जायेंगे ? तू तो हमारी जान है !हमारी भी और नीलिमा की भी ! " "भाभी ? भाभी कहा पर है ? " "वो रिंकी का ध्यान रख रही है !" दो धुंएदार परछाईया सामने हिल रही थी। "पापा आप हमे छोड़कर क्यों गए ? पापा क्या चल रहा है ,कुछ भी समझ नहीं आ रहा। " "श्रेयस हमारी तरक्की हमारी अच्छाई लोगो से देखि नहीं जाती ! लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो खुद सामने नही आते ,वो दूसरोके माध्यमसे अपना काम कर लेते है ! जिन्होंने पहले हमें ख़तम किया और अभी तुम्हारे पीछे पड़े है !"
श्रुति से रहा नहीं गया ,"लेकिन ये सब कौन कर रहा है ?" "कौन कर रहा होगा ,ये सब श्रीधर कर रहा है। " " क्या ? " "हां श्रेयस ! " "लेकिन वो ऐसा क्यों करेंगे ? और अभी कहाँ गए ? की कार में ही ..... " "नहीं श्रेयस !वो श्रीधर नहीं था। और अभी यहाँ भी नहीं है !" "फिर कौन था ?" "वो अभी इम्पोर्टेन्ट नहीं है ,उसे लगा तुम इसमें से नहीं बचोगे !इसलिए वो झट से निकल गया !" "लेकिन पापा वो ऐसा क्यों करेंगे ? और अपनी ही बेटी को क्यों मारेंगे ?"
"नहीं उसे नीलिमा नहीं को नहीं मारना था , वो बिच में आयी ,इसलिए मर गयी ,वरना उनका टारगेट तो श्रुति थी। और उसके बाद तू !" "लेकिन किसलिए ?" "उन्हें अपना घर ,अपने सम्बन्ध पहले से पसंद नहीं थे। लेकिन नीलिमा और शेखर उनकी एक नहीं सुन रहे थे। एक ही लड़की थी इसलिए वो मजबूर थे। लेकिन उन्होंने वैसा जताया नहीं और शादी को परमिशन दे दी। लेकिन दिल के अंदर बदले की भावना बढ़ती रही । तुम हनीमून के लिए गए थे ,मै और शेखर काम के लिए बाहर गए थे ,शेखर की कुछ भी गलती नहीं थी। पिछेसे एक ट्रक आया ,और हमें उड़ाकर चला गया। "
" पापा ,भैया ,अभी क्या करना है ?"कुछ नहीं !तुम यहाँसे घर जाओ ,रिंकी ठीक है। उसकी फ़िक्र मत करो। तुम्हारी माँ और जानकी भाभी को सम्भालो ,वो अच्छी है !" "पापा लेकिन अंकल को सबक सीखाना पड़ेगा।" "वो तो करना ही पड़ेगा। लेकिन वो भी इससे बचनेवाले नहीं है। क्योकि उन्होंने जिन माध्यमोंका इस्तेमाल किया है वो अभी उनके कण्ट्रोल में नही है। लेकिन वो जानकार है। ऊपर से वो प्रगत विचारों के दिखते है लेकिन वो वैसे बिलकुल नहीं है। उनका दिमाग अलग ही चलता है। "
"फिर अब क्या करे ? " "तुम अभी घर जाओ। " "लेकिन क्या उनके घर जाना ठीक रहेगा ?क्योकि हम घर पोहोच गए ये उन्हें बराबर मालूम हो जायेगा। वो हमे घर में भी हानि पोहोचा सकते है। " "नहीं वो अभी कुछ नहीं करेगा ! जल्दबाजी करना उसकी फितरत नहीं है !और उसके घर में वो तुम्हे कुछ नहीं होने देगा। वरना वो तुम्हे घर पे ही रुकाता ! बाहर क्यों रखता ? और मेन बात ये है की घर पर समिधा और जानकी भाभी है। " "पापा ,लेकिन उनसे क्या कहेंगे ? आंटी विश्वास नहीं रखेगी। "
" तुम इतना ही बोलो की रिंकी ठीक है !आज की रात निकालो और कल समिधा के साथ जाकर आओ। " "अभी जाओ यहासे !" " लेकिन कार ?" "श्रेयस जान की फ़िक्र करो। वो अगर वापिस आ गया तो फिर हम भी कुछ नहीं कर पाएंगे। जल्द से जल्द घर पोहोचो। पोलिस स्टेशन फोन करो ,एक्सीडेंट हुआ ,कैसे तो भी घर पोहोचे इतना ही बताओ। श्रुति ,जाओ बेटा !सम्भालो एक दूसरे को। और श्रीधर को जैसा हुआ है वैसा ही बताना। सिर्फ उसका जिक्र मत करो। और वो भी वो खुद पूछे तो ही बताना वरना जरुरी नहीं !"
"पर ,पापा ... " लेकिन वो दोनों अब गायब हो चुके थे उन्हें पता था , श्रेयस बाते करता ही रहेगा। श्रेयस और श्रुति की आँखों में पानी था। "श्रेयस ,चलो देर हो रही है !" वो सोच रहा था। अपने लोग अपने साथ हमेशा रहते है ,मरने के बाद भी रहते है , हमारी मदद करते है ,ये उसे यकीं हो गया !
क्या आपको कभी ऐसा अनुभव हुआ है ! जरूर हमे बताना। तब तक......
HAVE A GOOD NIGHT ! TAKE CARE AT NIGHT !
TO BE CONTINUED .......
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लेखक : योगेश वसंत बोरसे.
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