आप बीती - २ - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORIES

                आप बीती - २ - हिंदी भयकथा - HINDI HORROR STORIES 


HINDI KAHANIYA
 HINDI HORROR STORIES

                                                  लेखक : योगेश वसंत बोरसे. 

      योगेश ने इधर उधर देखा ,कुछ दुरी पर चाय की दुकान थी। "चलो जरा चाय पी लेते है। नींद उड़ जाएगी। " दोनों को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। लेकिन अब गुस्सा करके भी कुछ हासिल होने वाला नहीं था। दिमाग ठंडा रखकर समस्या का हल निकालना जरूरी था। चायवाले से पूछ ताछ की। रिटर्न जाने वाली ट्रैन के लिए ,लेकिन सुबह तक कोई ट्रैन नहीं थी। 

   "अब क्या करे ?" "कहा जाना है आपको ?" पीछे से आवाज आयी। उन्होंने गांव का नाम बताया। भाई साब अगर आपको आना हो तो आ सकते है। हमारी गाड़ी वही पर जा रही है ! योगेश ओर विद्या ने एक दूसरे की तरफ देखा। रात का वक़्त है !जाना ठीक होगा या नहीं ,दोनों सोचने लगे। वह आदमी चाय पीकर चला गया। दोनों को अफ़सोस हुआ। गाड़ी वही पर जा रही थी तो जाना चाहिए था।

    लेकिन अब कुछ फायदा नहीं था। अब इंतज़ार के सिवा कुछ नहीं हो सकता था। तभी वह आदमी वापस आया ,लेकिन इस बार उसने पुछा नहीं,तो योगेश खुद बोला "भाई कितना लोगे ?" अभी जगह नहीं है साहब ,आपको तो पहले ही बोलै थे ,आप नहीं माने। साब हमारा रोज का काम है ,रास्ता खतरनाक है, इसलिए तीन चार गाड़िया साथ में निकलती है ,मेरी गाड़ी आखरी थी। अभी सुबह तक कोई गाड़ी नहीं जाएगी। " और.. वो चला गया।

    रास्ता खतरनाक है ? ऐसा क्या है रस्ते पर ? विद्या सहम गयी।अच्छा हुआ नहीं गए। पहले से ही ये परेशां है। और कुछ मुसीबत हो गयी तो ?वो टहलते टहलते स्टेशन से बाहर आ गए। तभी... पीछे से आवाज आई। उस तरफ अँधेरा था। "भाभीजी प्रणाम ,भैया प्रणाम। "दोनों चौक गए। आवाज जानी पहचानी थी। ' अरे ये तो सुरेश है !' 'लेकिन ये यहाँ क्या कर  रहा है ? '

    सुरेश उनके नजदीक आ गया। उसे देखके अलग ही लग रहा था। 'ये ऐसा क्यों दिख रहा है ?' योगेश और विद्या एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। "सुरेश तबियत तो ठीक है ,तुम तो बहोत बदल गए हो !" "भाभीजी कुछ दिनों से बीमार था ,आज ही बाहर निकला हूँ। मौसी गुजर गयी है न ,वही जा रहा था। 

  " अरे हम भी तो वही जा रहे है !"  "लेकिन जायेंगे कैसे ?अभी कोई गाड़ी भी नहीं !" "क्या बात करती हो भाभी ?मेरी गाड़ी भी आप की ही गाड़ी है !" "तुमने गाड़ी कब खरीदी ?" "कुछ दिनों पहले !"अच्छा अभी निकलते है, देर हो रही है। "लेकिन आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?" "अरे ट्रैन से आ रहे थे नींद आ गयी ,तो यहाँ आना पड़ा। "

    "ठीक है चलिए ?" तीनो वहाँ  से निकले।" सुरेश ,एक बात समझ में नहीं आई ?तुम्हारे पास गाड़ी थी तो तुम स्टेशन पर क्यों आये ?" सुरेश के चेहरे पर गहरी मुस्कान थी। "आपको लेने के लिए ही आया था। " "लेकिन तुम्हे कैसे पता के हम यहाँ आ रहे है ?" "भाभीजी किताबे लिखते लिखते भैया पक्के जासूस बन गए है ! भैया मुझे नींद आ रही थी ,तो सोचा थोड़ी चाय पी लेता हूँ। लेकिन कोई दुकान खुली नहीं थी। सोचा स्टेशन पर जरूर  मिलेगी !" "लेकिन तुमने तो चाय पि ही नहीं ?" "नहीं आप मिल गए मुड फ्रेश हो गया। रास्ते में पी लेंगे ,वैसे ही देर हो रही है। चलिए !" 

        योगेश सुरेश के पास आगे बैठ गया , और विद्या पीछे। "भाभी थोड़ा आराम कर लीजिये ,रास्ता दूर का है ,रात का वक़्त है ,मै जगा दूंगा । विद्या कुछ नहीं बोली ,वह पीछे सीट पर सर टिकाये बैठी रही ,और सोच रही थी ,'ये इत्तेफाक है ? या और  कुछ ? की हमें गाड़ी नहीं मिल रही थी और सुरेश मिल गया !'

     कार की खिड़किया खुली थी ,ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी। कुछ ही पल में उसे नींद आ गयी। योगेश और सुरेश बाते करते रहे। ...... अचानक ब्रेक की तेज आवाज के ससथ कार रुक गयी। विद्या को झटका लगा तो वो हड़बड़ाके उठ गयी। "क्या हुआ ? भैया जरा आराम से चलाइये।" "भाभीजी जरा काच ऊपर कर लीजिये। " क्यों ?क्या हुआ ?" "कुछ नहीं आप दोनों खिडकियो के काच ऊपर कर लीजिये। भैया वो साइड का कांच ऊपर कीजिये। " 

       " सुरेश क्या बात है ?कुछ परेशानी है ?" "भैया  आप टेंशन मत लो ,मुझे इन चीजोंकी आदत है। " "किन चीजों की ?" "भैया मैंने कहा न ,आप टेंशन मत लो। अगर आपको सोना है ,तो सो जाइये ,गांव पहोचते ही मै आपको जगा दूंगा। "

       " सुरेश लगता है तुम कुछ छुपा रहे हो ! बताओ,मै इतना भी कमजोर नहीं हूँ की इतनीसी बात से डर जाऊंगा !या मुझे अटैक आ जायेगा !"

     " भैया ,ऐसा क्यों कहते हो ?" "तो  बताओ न क्या हुआ था ?" सुरेश ने पीछे के शीशे में देखते हुए बोला "लगता है ,भाभी सो गयी !" " को टालो मत !"

    "भैया ,ये रास्ता गांव के पास से जाता है। " "तो ?" "तो  उस गांव में आये दिन ऐसी घटनाये घट रही है ,जिनका कोई सर पेर नहीं है , और धीरे धीरे उनका दायरा बढ़ रहा है !" "सुरेश कुछ पल्ले पड़े ऐसी बात कर। " "भैया कार से कोई टकराया था !" "क्या ?" योगेश भौचक्का  रह गया। "सुरेश गाड़ी रोक !" "भैया मैंने कहा आपसे, के आप टेंशन मत लो। " "अरे नालायक ! कोई गाड़ी से टकराया ,और तू रुका भी नहीं !" 

       "भैया पहले पूरी बात  तो सुन लो। और टेंशन मत लो। क्यों की उनका दायरा उनका इलाका बढ़ रहा है। " "सुरेश क्या इलाका इलाका लगा रखा है ? भैया क्योकि और कोई गाड़ी से टकराने वाला है !" "क्या ?" "सुरेश बहोत हो गया। क्या तूने  इसलिए हमे साथ में लिया था ?" "भैया शांत हो जाओ। आप जैसा सोचते हो वैसा कुछ भी नहीं है ! बल्कि बिलकुल उसके विपरीत है ! जो गाड़ी से टकराया था वो पहले ही मर चूका है !"

       इसबार योगेश हक्का बक्का रह गया ,उसका मुँह खुला  का  खुला रह गया। एक भी शब्द नहीं निकला ,सुरेश  को लगा जैसे योगेश को कुछ हो गया ! " भैया ! आप ठीक तो है न !

     योगेश अचानक हसने लगा ,जोर जोर से। तो विद्या की नींद खुल गयी। उसने घबराकर पूछा ,"क्या हुआ जी ? तबियत तो ठीक है ?" " विद्या मेरी तो थी ठीक है ,लेकिन लगता है ,गाड़ी चलाते चलाते इसका स्क्रू ढीला हो गया। ये बता रहा है ,की इस रास्तेपर मरे हुए लोग गाड़ी से टकराते है ! " "क्या?" विद्या की चीख निकल गयी। 

 " और नहीं तो क्या ? अरे मेरी जिंदगी निकल गयी कहानिया लिखते लिखते !मैंने आज तक एक भूत नहीं देखा ! और ये कहता है ,की ये रोज का है !" सुरेश कुछ नहीं बोला ,उसके हिसाब से अच्छा ही था की दोनों डरे नहीं थे। लेकिन उसे मालूम था..... जब इन्हे सच पता लगेगा ,ये हजम नहीं कर पाएंगे ! अभी उन्हें मालूम ही क्या था ?

                      

                       TO BE CONTINUED....... 


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           लेखक :योगेश वसंत बोरसे. 


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