HOW TO SPEAK - MOTIVATIONAL SPEECH IN HINDI

HOW TO SPEAK - MOTIVATIONAL SPEECH IN HINDI 


                                                                                                                                                                                                                                           लेखक : योगेश बोरसे 

            दोस्तों नमस्कार, मै योगेश बोरसे आप सभी का BORSE GROUP में हार्दिक स्वागत करता हूँ। 

      दोस्तों , मानवी उत्क्रांति में मानव की सबसे बड़ी जीत थी जब उसने बोलना शुरू किया, जिससे समूह से कॉन्टेक्ट करना, अपनी बात लोगो तक पहुँचाना इसलिए यह उत्क्रांति हुई थी। 

            पहले लोग अपने दिल की बात बताने के लिए बोलते थे, शब्दों का इस्तेमाल करते थे। आज लोग दिल की बात छुपाने के लिए झूट बोलते है या बोलना बंद करते है। 

              दोस्तों बोलना, SPEECH, एक कला है। जो कुछ लोगो में निसर्गतः होती है। कुछ लोग सीखकर  कर लेते है। 

          जिसपर हमारी जिंदगी निर्भर करती है। हां दोस्तों हम क्या बोलते है, कैसे बोलते है, कैसे रिएक्ट करते है , इसपर  हमारी कामयाबी निर्भर होती है। अभी आप सोचेंगे की हमने बहुत लोग देखे है जो बोल नहीं पाते तो क्या वो कामयाब नहीं हो सकते ? जरूर हो सकते है। लेकिन हम उन लोगो की बात कर रहे है जो बोल सकते है। 

             दोस्तों इस पर आधारित आज ये छोटीसी कहानी, शायद आपको कामयाबी के सफर में थोड़ी बहुत मददगार साबित हो। 

          हरिया और धनिया दोनों अच्छे दोस्त थे। दोनों बचपन से साथ में रहते थे। हरिया शांत स्वभाव का था। कम बोलता था, लेकिन जब भी बोलता था, तो ऐसा बोलता की सामनेवाला वही ढेर हो जाए। 

           धनिया चुलबुला था, बड़बड़ करना उसकी आदत थी। उसे बात करने के लिए पहचान नहीं लगती थी। कुछ ही क्षणों में सामनेवाले को अपना बना लेता था। जबतक छोटे थे, तबतक इन बातो का महत्त्व समझमे नहीं आया। साथ में खेलते - कूदते जिंदगी चल रही थी। दिन गुजरते गए। वक़्त के साथ साथ दोनों बड़े हो गए। काम धंदे में लग गए। 

          गांव छोटा था। सब लोग पहचानते थे। दोनों ने साथ में काम करना शुरू किया। लेकिन दिमाग यह लगाया की गांव से सब्जी ले कर  शहर में साथ में जाना और वहा पे अलग अलग जगहों पे बेचना। लेकिन अनुभव नहीं था, इसलिए दोनों ने तरकीब निकाली, की पहले अपने ही गांव में आजमाके देखते है। बाद में शहर या दूसरे गांव जाएंगे। 

           और उनका काम शुरू हुआ। दोनों सब्जी लेकर गांव के बाजार में बैठ गए। गांव का बाजार बड़ा था। आजुबाजु के छोटे - मोटे कस्बोसे लोग खरीदारी के लिए आते थे और शाम होते होते चले जाते थे। 

         हरिया और धनिया दोनों अपना अपना ठेला लगाकर बैठ गए। हरिया को ज्यादा बात करने की आदत नहीं थी। और अगर बोलता तो जैसे जहर उगलता और धनिया तो बोलता ही रहता। थोड़ी देर में धनिया की सब्जी ख़तम होने को आई। हरिया मख्खिया मार रहा था।

       एक खरीदार आया, हरिया से पूछा, " सब्जी कैसे दी ? " हरिया ने भाव बताया। "इतनी महँगी ? उधर तो इतनेमे दे रहे है। " तो हरियाने बोला, " तो उधर से ले लो। " ग्राहक चला गया। दूसरा आया, " भाई सब्जी कैसे दी ? " हरिया ने भाव बताया। ग्राहक बोला, " थोड़ा कम कर दो, ज्यादा लेनी है। कम करोगे तो पांच किलो लूंगा। " 

       हरिया का मुँह खुला, " मै क्या घर में उगाता हूँ ? एक रूपया कम नहीं करूँगा। लेना हो तो लो वरना रास्ता नापो। " ग्राहक हैरान होक देखने लगा। और वहा से निकल गया। ऐसे ही दिन गुजर गया, हरिया की सब्जी पड़ी रही और धनिया की पूरी की पूरी खतम हो गई। 

         शाम को दोनों मिले। हरिया का मुँह लटका था, तो धनिया खुश था। धनिया ने पूछा, " क्यों भाई, कैसा रहा आज का दिन ? " हरिया नाराज होकर बोला, " भाई ,मत पूछो , सब सब्जी वैसे ही पड़ी रही। तुम्हारा कैसा रहा ? " " मेरी तो पूरी बिक गई " हरिया चौक गया, " क्या ? कम भाव में बेचीं या फ़ोकट में बाट दी ?" धनिया मुस्कुराकर बोला, " नहीं भाई। तुमने क्या भाव बताया ? " हरिया कुछ नहीं बोला। उसने कागज़ निकाला, दो टुकड़े किए और बोला, "  इसपे लिखो। " और दोनों ने चिठ्ठी बनाई और और एक दूसरे को थमाई। 

          हैरान की बात ये थी की दोनों की कीमत लगभग एक ही थी। उलटा धनिया ने दो पैसे ज्यादा लिए थे। हरिया हैरान हो गया। " अगर नहीं बताना तो झूठ क्यों बता रहे हो ? " और वो वहाँसे निकलने लगा। " अरे भाई सुन तो। " धनिया ने बोला, " एक काम करते है कल दोनों आमने - सामने बैठते है। " "ठीक है ?" " हां ठीक है।" हरिया ने गर्दन हिलाकर कहा। 

           दोनों दूसरे दिन साथ में एक दूसरे के सामने बैठे। एक ही सब्जी एक ही भाव फिर भी धनिया कुछ ही देर में पूरा माल बेचकर फ्री हो गया। हरिया हैरान होकर देखता रहा। उसकी सब्जी वैसी ही पड़ी थी। धनिया उसके पास आकर बोला, " भाई क्या हुआ ? " हरिये ने मुँह फेर लिया। धनिया समझ गया। वो बोला,"  एक काम करो ,थोड़ा साइड में बैठो , मै कुछ करता हूँ ,इतना कह कर धनिया , हरिया की जगह बैठ गया। 

                 ग्राहक आया, " भाई क्या भाव है ? " धनियाने बोला " साहब आपसे ज्यादा क्या लेंगे जो भाव है ,वही दे दो। " " लेकिन तुम बताओ तो सही ! " धनिया ने भाव बताया। " अरे इतना रेट तो कही भी नहीं है। " " साहब आप कॉलिटी देखो ! बड़े घर के हो, अच्छा खाना पसंद करते हो। आप निश्चिंत होक ले जाना। भाभीजी खुश हो जाएगी। तो वापस कल आओगे। " ग्राहक ने हां - ना कर के सब्जी ले ली। " साहब भाभीजी को मेरा प्रणाम करना और कल मेरे पास ही आना। आपको और अच्छी कॉलिटी के फ्रूट और सब्जी मिलेगी। "ग्राहक खुश होकर चला गया।

           ऐसे ही ग्राहक आते गए, धनिया बाटे करता रहा और शाम होते होते उसने हरिया की पूरी सब्जी बेच दी। हरिया देखता ही रहा। कुछ नहीं बोला। दोनों बाजार से घर लौटे। खाना खाने के बाद वापस मिले। तो हरिया से रहा नहीं गया उसने पूछा की, " ये कैसे संभव है ? की दोनों एक ही माल एक ही  रेट में बेच रहे थे, लेकिन दोनों बार तुम सफल हुए। " 

              धनिया सोच में पड़ गया, ' बचपन के दोस्त है। अगर इसे कुछ कहा तो बुरा मान जाएगा। लेकिन बताना तो पड़ेगा। नहीं तो ये वैसे ही नाराज हो जाएगा। ' 

              " भाई फर्क सिर्फ बात करने का है। " हरिया चौक कर बोला। उसके लिए ये बात नै थी। " यहाँ बात करने का क्या संबंध है ? तुम रहने दो मत बताओ " धनिया फिर समझ गया, " देखो भाई, लोग बाजार आते है। किसलिए या तो उन्हें कुछ खरीदना है या पैसे खर्च करने होते है। यानी जो इंसान बाजार में आता है वो जेब में पैसे लेके ही आता है।

           लेकिन हर कोई प्यार का, अपनेपन का भूखा होता है। जाने अनजाने में उन्हें जहा अपनापन, अच्छा बर्ताव, अच्छा व्यवहार मिल गया, आदर मिल गया , वही से वो खरीदते है , या पैसा खर्च करते है! 

    दोस्त तुम कम बोलते हो , लेकिन सामनेवाले का दिल तोड़ देते हो। उसे बुरा भला कह देते हो और खुद का नुकसान कर रहे हो। उसे तो चीज खरीदनी है , पैसा खर्च करना है तो वो दूसरी तरफ जाता है। जहां  उसे तुमसे ज्यादा अच्छा व्यवहार, अच्छी बाते सुनने को मिले। भले ही ज्यादा पैसे जाए।

          तुम कितना बोलते हो ये मायने नहीं रखता, तुम कैसे बोलते हो ये मायने रखता है। जबतक बचपन था तबतक ये बाते मायने नहीं रखती थी। लेकिन अब हम बड़े हो गए है। हमे लोगो से व्यापार करले पैसा ही नहीं, प्यार, स्नेह, विश्वास, अपनापन, हमदर्दी, दोस्ती सबकुछ पाना है। 

         अगर ये सबकुछ पा लिया तो पैसा अपने आप आ जाएगा। काम तो हम दोनों कर रहे है। लेकिन दोनों का नजरिया शायद अलग है। तुम पैसा कमाने के लिए बाजार में जाते हो, और में पहचान बढ़ाने जाता हूँ। तो जैसे जैसे मेरी पहचान बढ़ती जाएगी, लोग मेरे पास आएँगे और मेरा व्यापार बढ़ेगा, तो पैसा अपने आप बढ़ेगा। 

           दोस्त , पैसे को विटामिन M कहते है। लेकिन विटामिन M के अलावा ये बाकी चीजे भी मायने रखती है।  तुम भी ये कर सकते हो। सिर्फ नजरिया बदलो। मै ये नहीं कह रहा हूँ की तुम गलत कर रहे हो। लेकिन अगर आगे बढ़ना है तो कुछ दुनियादारी अपनानी जरुरी है। चाहे अच्छा लगे या ना लगे। " 

           कुछ देर में शांती छा गई। कोई कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर बाद हरिया उठा उसने धनिया का हाथ अपने हाथ में लिया और उसके पैरो को हाथ लगाकर बोला, " दोस्त तो तुम पहले से ही  अच्छे थे। आज अच्छे गुरु भी बन गए। तुम्हारी बात सोलह आने सच है। मै जरूर सीखूंगा और तुम से ही सीखूंगा लेकिन इस में वक़्त लगेगा। " 

           धनिया ने शांतिपूर्वक पूछा, " तो फिर आगे क्या करने विचार है ? " हरीया ने सोच समझकर जवाब दिया, " आज से तुम मेरे गुरु हो। जबतक में अच्छा नहीं बन जाता, अच्छी बाते  नहीं कर पाता, लोगो का प्यार नहीं पाता, विश्वास नहीं पाता, तबतक हम साथ मे व्यापार करेंगे।  माल तुम बेचोगे  और तुम्हारे साथ रहके मै भी धीरे धीरे सिख जाऊंगा। तुम्हे कोई मुश्किल तो नहीं ? " 

        धनियाने खुश होकर कहा, " इससे ज्यादा ख़ुशी की बात मेरे लिए क्या होगी ? मै  भी यही सोच रहा था। लेकिन तुम्हे बुरा लगेगा इसलिए नहीं कहा। " 

                   दोनों ने एक दूसरे को प्यार से गले लगाया और वहा से चले गए। एक नयी शुरुवात करने के लिए..........                                                                                                                                                                                                                                                                            लेखक और प्रस्तुतकर्ता :योगेश वसंत बोरसे. 

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