सोच का नतीजा - हिंदी प्रेरक कथा - HINDI MOTIVATIONAL STORY


सोच का नतीजा - हिंदी प्रेरक कथा - HINDI MOTIVATIONAL STORY


                                                लेखक : योगेश वसंत बोरसे .

    

    दोस्तों ,नमस्कार ! मैं योगेश बोरसे ,आप सभी का  'BORSE GROUP'S SUCCESS MISSION ' में स्वागत करता हूँ। 

  आज आपके सामने ऐसी स्टोरी पेश करने जा रहा हूँ ,जो आपने न कभी सुनी होगी न देखि होगी !

    दोस्तों ,तरक्की की भुख सबको होती है। लेकिन उसके चक्कर में इंसान अपने हाथ में जो होता है ,वो भी खो देता है ! 

    बहुत पुरानी बात है, एक गांव के पास नदी बहती थी।  नदी में पानी अच्छा रहता था। गांव छोटासा था। उस गांव में रामसिंह नाम का आदमी रहता था।  उसका छोटासा घर था। और रामसिंह के पास एक गाय थी।  गाय रोज दूध देती थी। वह बेचकर उसका गुजारा अच्छे से हो रहा था। 

    उसका जीवन ऐसेही चल रहा था। एक दिन उसके मन में ख़याल आया, की ऐसे कब तक चलेगा ? मेरे पास सालो से एक ही गाय है। उसका दूध निकालता हूँ, बेचता हूँ लेकिन इसका दूध देना बंद हो गया तो फिर मै क्या करूंगा ? 

   बाद में ये कुछ काम की नहीं रहेगी, इसेही खिलाना पडेगा। सोचते सोचते रामसिंह इस नतीजे पे पहुंचा की इसे अभी बेच देते है, इसके अच्छे पैसे आएंगे बाद में कोई खरीदेगा नहीं। 

   लेकिन इसे बेचकर क्या करेंगे ? कुछ ऐसा काम करेंगे जिससे जिंदगी भर आमदनी आती रहे। रामसिंह अपने खयालो से खुश था। वह बाजार के दिन का इंतज़ार करने लगा। जो लोग उसे पहचानते थे वो पूछने लगे, " की भाई आज कल दूध देने क्यों नही लाते ? " वो सबको बताता की अब मुझे बड़ा आदमी बनना है। ये छोटा - मोटा काम मै नहीं करूंगा। और उसका प्लैनिंग लोगो को, दोस्तों को बताता था। कुछ तारीफ़ करते थे, कुछ हसते थे, कुछ मजाक उड़ाते थे। 

        उसका एक दोस्त था, गहरा दोस्त वीरसिंह। उसे ये बात पता चली तो उसने रामसिंह को समझाया, " जो तेरे हाथ में है उसे संभालकर रखना और आगे बढ़ना इसे तरक्की कहते है। और ये तेरा कमाई का जरिया भी है। तू गाय बेच देगा तो क्या करेगा ? "

        रामसिंह को उसकी बात का बुरा लगा, कैसा दोस्त है, मेरी तरक्की की सोच से भी जलता है। आगे मेरी तरक्की  होगी तो इसे सहन नहीं होगा। इससे अच्छा अभी से दोस्ती ख़तम। वो वहा से उठकर चला गया। वीरसिंह समझ गया की रामसिंह नाराज होके जा रहा है, लेकिन उसको रामसिंह का स्वभाव अच्छे तरीके से मालुम था। की ये भोला है, एक ही तरीके से सोचता है। अनुभव नहीं है। जब ठोकर खाएगा, वापस जरूर आएगा। 

       बाजार का दिन आया। रामसिंह सवेरे जल्दी उठ गया। गाय को पानी पिलाया, घास खिलाई, आज वो बहुत खुश था। उसका तकदीर जो बदलने वाला था !उसने गाय को साथ में लिया और घर से निकल गया। 

       बाजार का गांव थोड़ा दूर था। उससे पहले थोड़ा जंगल लगता था। जंगल छोटा था लेकिन घना था। वह सहम सहम कर जंगल से गुजरने लगा। पंछियो की किलबिलाहट ,बंदरों की उछल कूद ,जंगल का माहौल बनाए हुए थी। 

     उसके मन में ख्याल आया की,अगर जंगल है तो शेर भी होगा। वो डर गया।  उसे लगा की शेर मुझे खा गया तो ?मेरी गाय को खा गया तो ?यहाँ आकर गलती तो नहीं करदी ?लेकिन अभी वापस भी नहीं जा सकते !सब लोगो को बोल के रखा है की मैं क्या करने वाला हूँ। 

   वो डरते सहमते जंगल से निकल कर बाहर आया ,तो राहत की सांस ली। उसके सौभाग्य से किसी जंगली जानवर से उसका पाला नहीं पड़ा था। बाजार बहुत बड़ा था। बहुत सारे जानवर वहा थे। जैसे जानवरोका मेला लगा हो,जानवर भी थे और पंछी भी थे। 

     रामसिंह  की गाय अच्छी थी। सबकी नज़रे उसपर टिकी हुई थी। जो आता जाता वह उसीके बारे में पूछता। लेकिन रामसिंह का काम दूध बेचना था। गाय वो पहली बार बेच रहा था। तो अब क्या करे ? इसका सही दाम कितना होगा ? वो उलटा सोचने लगा की मुझे गाय बेचकर क्या क्या लेना  है? उसके जितने पैसे होंगे उससे थोड़े ज्यादा में बेच दूंगा। लेकिन उसकी समझ में आया की उसे तो खरीदना भी नहीं आता।

      तभी एक आदमी आया और उसने पूछा, " क्यों भाई बेच रहे हो या खरीद रहे हो ? " " नहीं बही बेचनी है। " " कितने में दोगे ? " " पता नहीं। " वह मुस्कुराकर कहता है, " क्या भाई मजाक कर रहे हो, बेचने आए हो और कीमत पता नहीं। " रामसिंह ने मायूस होकर कहाँ, " भाई सचमुच पता नहीं। मेरा दूध बेचने का काम है। गाय तो मै पहली बार लाया हूँ। "

       वो आदमी अच्छा था, सज्जन था। उसने  रामसिंह को समझाया की " देखो मेरे पास गाय नहीं है लेकिन मुझे बेचना आता है। तुम्हारे पास गाय है तुम्हे बेचना नहीं आता। हम एक काम करते है, दोनों मिलकर गाय बेचते है, तुम्हे जो ठीक लगे, दे देना। 

      रामसिंह को ठीक लगा। उसने ख़ुशी से हां कह दिया। थोड़ी देर में गाय बिक गई। अच्छे दाम आए। उसने खुश होकर कुछ पैसे उस आदमी को दिए। वो पैसे लेकर निकलने लगा। तभी रामसिंह उसे टोककर बोला, " भाईसाहब आप भले आदमी लगते हो आपने मेरी इतनी सहायता की थोड़ी और कर दीजिए। उसने पूछा, " क्या करना है ? " रामसिंह बोला, " मुझे कुछ जानवर खरीदने है, लेकिन मैंने कभी ख़रीदे नहीं। अगर आप मदत कर दे तो अच्छा होगा। " वह आदमी सचमुच अच्छा था। उसने रामसिंह के कंधे पर हाथ रखा, " भाई, घबराओ मत। बताओ तुम्हे क्या क्या खरीदना है ?

      रामसिंह ने पहले सोच के रखा था। फिर एकबार सोचकर बोला, " एक कम कीमत वाली गाय जो थोड़ा बहुत दूध देती हो। एक - दो मुर्गीया अंडे जो  देगी, और एक एक भेड़ - बकरी। 

        " भाई रामसिंह देखो तुम कुछ एक ही ऐसी चीज खरीदो की तुम आरामसे कमाके खा सको। ये चार - पांच चीज लेकर कैसे होगा। एक का भी ध्यान नहीं रख पाओगे। " रामसिंह नाराज होकर बोला, " वो तो मेरे पास वैसे भी अच्छी गाय थी। तो मेरा क्या फायदा हुआ ? " वह आदमी समझ गया की ये मानेगा नहीं। 

           " ठीक है चलो तुम्हे जो चीज चाहिए वो बताना, पैसो की बात मै करूंगा। " रामसिंह ने ख़ुशी से हां कर दी। 

                 शाम होते होते उसकी खरीदारी पूरी हुई। गाय, भेड़ - बकरी, दो मुर्गीया इसमें बहुत सारे  पैसे चले गए, थोड़े बचे। दोनों हाथो में जैसे तैसे सभी को  संभालते हुए रामसिंह ख़ुशी से निकला। गांव के बाहर आ गया। रास्ता सुनसान था। जंगल में पहुंचते पहुंचते शाम गहरी होती गई। रामसिंह मुर्गीयो के टांगे पकड़के चल रहा था। मुर्गीया कितनी देर रुकने वाली थी वह फड़फड़ाने लगी। घबराहट में रामसिंह के हाथ से छूट गई और इधर उधर भागने लगी। अभी इन्हे कैसे पकडे ?इन्हे पकड़ने जाएंगे तो गाय, भेड़ - बकरी को छोड़ना पडेगा। उसे लगा गाय शांत है, कहा जाएगी उसे पकड़ सकते है। उसने भेड़ - बकरी को एकसाथ बाँधा। और मुर्गीयो के पीछे भागा। 

                  लेकिन वो मुर्गीया थी। हाथ में आने वाली नहीं थी। बहुत देर उनके पीछे भागता रहा। लेकिन वह जंगल में गुम हो गई। वह थककर एक पेड़ के निचे बैठ गया। और कुछ पल में उसे गुर्राने की आवाज सुनाई दी। और थोडी ही देर में शेर की दहाड़ सुनाई दी। भेड़ - बकरी शेर की दहाड़ सुनके भागने लगी लेकिन दोनों साथ में होने की वजह से भाग नहीं पाई। गाय भाग गई। रामसिंह उसके पीछे भागा। लेकिन वह भेड़ - बकरी को नहीं बचा पाया। शेर को आसानी से शिकार मिल गया। रामसिंह बहुत देर गाय के पीछे भागा जैसे तैसे उसने गाय को पकड़ा। वो थक गया। वही रस्सी पकड़कर बैठ गया। 

                 रात को मायूस होकर घर आया। गाय को पानी पिलाया, घास खिलाई खुद भूखे पेट सो गया। सुबह उठा अब क्या करे ? दूध निकालने की आदत थी इसलिए गाय का दूध निकाला। लेकिन देखकर हैरान हो गया, रोज जितना दूध निकलता था। उसका आधा भी नहीं था। दूध लेकर बाजार गया। पहचानके लोग मजाक उड़ने लगे। उनकी बाते सुनकर वह नाराज हो गया। मायूस होक वीरसिंह के पास आया। 

         वीरसिंह ने प्यार से पूछा, " भाई क्या हुआ ? " रामसिंह ने सब विस्तार से बताया। वीरसिंह ने गहरी साँस ली और बोला, " दोस्त बुरा मत मानना, लेकिन मैंने पहले ही तुम्हे समझाया था। "रामसिंह ने पूछा, "अब क्या करे ? "

            "क्या कुछ पैसे बचे है ? " " हां रामसिंहने पैसे दिखाए। " अभी एक काम कर सकते है, इसमें और थोड़े पैसे डालकर और वो गाय बेचकर पहले जैसी अच्छी दूध देने वाली गाय खरीदनी होगी। " रामसिंह नाराज होकर बोला, " ठीक है शायद यही मेरी तक़दीर है। " वीरसिंह बोला, नहीं दोस्त तुम्हारी तक़दीर अच्छी है की वहा शेर मिल गया। अगर चोर - लुटेरे मिल जाते, तो ना गाय बचती ना पैसा ना तुम ! 

             दोस्तों हम हमारी तक़दीर को हमेशा कोसते है। लेकिन हम अपने अच्छे पैलुओं पे नजर डालेंगे, जो है, उसकी व्हॅल्यू करना सीखेंगे तो जो नहीं है उसके पीछे नहीं भागेंगे। 

              और यही सही भी है। 

                so take care of everything. 

               it's precious for us! 

                                                                                            

                          

                                                                                                                                लेखक : योगेश वसंत बोरसे.   


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