बोझ:-{ धनुकली - हिंदी बोधप्रद रचनाएँ }

LITRETURE & SPIRITUAL
 PHILOSOPHY

                                         बोझ:-{ धनुकली - हिंदी बोधप्रद  रचनाएँ }  

दोस्तों ,नमस्कार ! मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse groups .tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा  रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है ! 

    हमारे मित्र और सहकारी श्री.  अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है ! 


    इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके  आशीर्वाद की कामना करता हूँ  - आपका , अपना  -  श्री. योगेश वसंत बोरसे.

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           सर पर बड़ा बोझ था , उपरसे तिल तिलाती धुप ! और ऐसे गर्मी के मौसम में सर पर बोझ लिए मै  जा रहा था ! थकान के मारे बुरा हाल था ! जबान सुख रही थी ! अगर कही पानी मिल जाए , थोड़ा बोझ हलका हो जाए तो अच्छा होगा ! 

      यही सोचते सोचते मै आगे बढ़ रहा था।  किसी की आहट  से मै चौक गया।  थोड़ा डर भी लगा। बोझ इतना भारी था ,की मुड़कर भी नहीं देख पा रहा था।  तभी कानो से आवाज टकराई ,"सुनो !" मेरी धड़कने बढ़ गयी।  सांस फूलने लगी।  जान हलक में आ गयी।  वो आगे बढ़ा ,मेरे सर पर रखे बोझ को टटोलते हुए बोला ,"ज्यादा भारी है क्या ?" "थोड़ी मदद मै कर दूँ ?" मन नहीं माना , मै चलता रहा। जबान से एक शब्द भी नहीं निकला।  "कुछ कीमती चीज है क्या ?" मेरा रवैया देख कर उसे जरा अजीब लगा , मै क्यों बताता की जिंदगीभर संभाली हुई चीजे मै  आखरी वक्त में कही सुरक्षित जगह पे रखना चाहता था।  लेकिन जितना उसके बारे में सोचता। बोझ बढ़ता रहा , और मै उसके निचे दबता गया।  

    "पानी पियोगे ?" मै मना नहीं कर सका।  रुक गया।  "जरा हाथ लगाओगे ?" उसने हाथ दिया , उसकी मदद से वो बोझ जमीं पर रखा , और दोनों हाथ उसपर रख कर निचे बैठ गया। उसने पानी दिया ,जो बेहद ठंडा था ! दिल को ,मन को ,जिस्म को , आत्मा को सुकून मिला  ! "बहोत ही भारी है , लेकिन ये साथ में लेकर क्यों घूम रहे हो ? है क्या इसमें ? वो देखो कुछ कपडे जैसा बाहर झांक रहा है।  " "देखो आराम से बैठो ! मै लेकर नहीं भागूंगा ,मुझे वो आदत नहीं ! " 

    मै  झिझकते हुए निचे जमीं पर ही बैठ गया।  पानी पिया था ,और अभी शरीर को भी थोड़ा आराम मिला तो जान में जान आ गयी।  दिल से दुआ निकली ,जो शायद उसकी आत्मा तक पोहोची।  "क्या मुझे बता सकते हो की ऐसा क्या है इसमें ? क्योकि अंदर की चीजे बाहर आने को छटपटा रही है ! " मै  चौक गया , धड़कने तेज हो गयी।  मैंने उधर नजर डाली , एक कपडे का टुकड़ा बाहर झांक रहा था।  

     उसने हाथ बढ़ाया और कपड़ा खींच लिया। " ये क्या है ?" "अरे नाम मत लो उसका ! मेरा बचपन का दोस्त था , बहोत परेशान करता था।  ये उसकी निशानी है ! " एक टुकड़ा खींचा तो दूसरा बाहर आ गया।  "और ये ?" "अरे तुम्हे बताया न ,ये भी उसका ही भाई था ! बहोत तंग किया है मुझे ! " वो हर बार कपडा खींचता गया ,बाहर निकालता गया ,और मै उस टुकड़े से जुडी यादे बताता गया।  ऐसा करते करते कुछ ही देर में वो बोझ कम हो गया ,बाद में नदारद हो गया।  गायब हो गया ! 

      उसने मुझे पुछा ,"एक बात बताओगे ? ये तुम जिनकी यादे साथ में लेकर घूम रहे हो ,क्या ये तुम्हे अभी भी याद करते है ? या सिर्फ तुम्हे ही इनकी याद आती है ?" "मतलब ?" " मतलब जिनकी यादे तुम सर पर बोझ की तरह लेकर घूम रहे हो ,वो क्या तुम्हे अभी भी जानते है ?  पहचानते है ?"  मुझे कुछ बोलने को नहीं सुझा।  मै चुप चाप बैठा सोचता रहा ,उलझन में पड  गया ! पता नहीं उसने क्या किया ? लेकिन मै  उसकी हरकत देखकर दंग रह गया ! मुँह खुला का खुला रह गया।  

      "एक काम करो ,क्या उन सब से मिलना पसंद करोगे ? उन्हें पहचान पाओगे ?" जवाब तो अभी भी  नहीं था।  उसके पास ऐसी कौनसी शक्ति थी पता नहीं , मैंने जितनो के नाम लिए थे,  जितनो  के बारे में उसे बताया था ,वो एक एक करके सामने आने लगे ! उनमे से कई चेहरे मै पहचान भी नहीं पा रहा था , वो तो मुझे जानते भी नहीं थे , मुझे कबका भूल चुके थे ! उन्हें मेरी पहचान देनी पड़ रही थी !

     एक ने तो सीधा बोल दिया ," मै  तो इसे पहचानता ही नहीं , फिर इसका मजाक उड़ाना ,कुछ बोलना ,ये बात कहा से आ गयी ? वहा  मेरा बाप मर रहा है ,और तुम मुझे यहाँ पर उठा लाये , अब मै वापस कैसे जाऊंगा ?" "अगले महीने बेटी की शादी भी है , तैयारी करनी है ,इसके चक्कर में मुझे क्यों परेशान कर रहे हो ?""मुझे बताओ ,अब मै वापस कैसे जाऊँगा ?" वो तिलमिलाने लगा , तो उस पर दया आकर आगंतुक ने उसे वापस भेज दिया।

    मै सोचने लगा , अपने दिल से पूंछा। उसे हर किसीकी पहचान थी , उसकी ही नहीं , ऐसे हर व्यक्ति की जिसने मेरा मजाक उड़ाया था , अपमान किया था ,मेरा ही नहीं ,मेरे प्रियजनों का भी अपमान किया था ! मै  ऐसे लोगो को कैसे भुला सकता हूँ ? इनकी यादो में मेरी जिंदगी बर्बाद हो गयी ,और ये मुझे पहचानने से भी इंकार कर रहे है ? इनकी इतनी हिम्मत ? मुझे भूल गए ? मुझे ? " एक बात पूछू ? " मै  चौक गया , उसने मुझे पुछा " वैसे तुम कौन हो ? " " अरे ये क्या सवाल है ? मै कौन हूँ ! " "बिलकुल , अगर जानते हो तो बताओ , की तुम कौन हो ? "

   ' मै कौन हूँ ? ये कैसा सवाल है ? कितना सब कुछ सहते हुए यहाँ तक पोहोचा हूँ ,क्या क्या नहीं किया मैंने ? माँ बाप की सेवा की ! भाई को पढ़ाया , बहन की शादी की , दोस्तों को हर बार मदद की ! रिश्तेदारों से संबंध अच्छे बनाये रखने के लिए कितने अपमान सहे , दुःख सहे ! और ये मुझे पूछ रहा है की , मै कौन हूँ  ? वैसे मै हूँ कौन ? ' मै  हैरान रह गया ,सोचता रहा !

  " क्यों जवाब नहीं है ,या पता नहीं है ? तुम लोगो के बारे में सोचते सोचते अपने आप को भूल गए ! अपना अस्तित्व गवां बैठे , ये मेरा , वो मेरा ,बीबी मेरी ,मेरे बच्चे ,मेरी जिम्मेदारी ,मेरे माँ बाप , मेरे भाई - बहन , मेरा भगवान ! जिनको तुम अभी भी अपना समझ रहे हो न, वो भी तुम्हे इस पल शायद ही याद कर रहे होंगे , अरे लोग तो भगवान को भूल जाते है , तो तुम कौन हो ? क्या उन्हें इस बात का एहसास है ? की तुम उनके लिए ये सब कर रहे हो , किया है  ?

     उन्हें तो यही लगता है की तुम्हारा यही काम है ,जो तुम्हे करना ही पड़ेगा ! मतलब तुम्हारी औकात उस कपडे से  ज्यादा नहीं जिसे हम पोंछ कर फेक देते है ! और तुम उन्हें सर पर बिठाए घूम रहे हो ? इतना की अपने आप को भूल गए ? अपना अस्तित्व ही खो दिया ? कल यमराज लेने को आएंगे तब भी यही कहोगे , मेरा ये काम बाकी है ,वो बाकी है ! " 

  "अभी भी वक्त है ! सम्भल जाओ ! अपने आप को पहचानो ! जो गलतिया आज तक की है , उन्हें भूल जाओ ! जितने पल बचे है जिंदगी के वो खुद की पहचान में लगाओ..... " वो बाते करता रहा ,मैंने अपने आजू बाजू देखा ,बोझ गायब था , उठकर खड़ा हो गया , अभी सर हल्का महसूस कर रहा था ! बिलकुल तरोताजा लग रहा था !

       तभी आवाज आयी ," एक बात कहूँ ,अभी तुम्हारे सर पर बोझ नहीं है ,तो तुम्हे हल्का लग रहा होगा !  ज्यादा देर ऐसी ख़ुशी सह नहीं पाओगे ! "मै समझ नहीं पाया ,क्यों ? "  " क्योकि तुम्हे सर पर बोझ रख कर जीने की आदत पड गयी है ! तुम मरने के बाद भी सर पर बोझ लेकर जाओगे ? सर का बोझ कब दिल पर आ जायेगा तुम्हे पता भी नहीं चलेगा ! " इतना कहकर वो वहा से निकल गया ... 

    कहाँ गया पता नहीं ? ' लेकिन वो था कौन ? उसने ये सब क्यों किया ? क्या मतलब था इन सब बातो का ? और मुझे ही क्यों मिला वो ? ' सर पर दोबारा बोझ आने लगा ,महसूस होने लगा। .. बहोत देर हो गयी बीबी घर पर इंतजार कर रही होगी ! पर वो क्यों इंतजार करेगी ? वो तो मेरे मरने का इंतजार कर रही ही है। .... जब से शादी करके लाया हूँ ,दिमाग ख़राब करके रखा है , .... लेकिन बच्चो की वजह से चुप बैठना पड़ता है ! वरना ...... 

   बोझ दोबारा बढ़ता गया,  इतना बढ़ गया की  घर आते आते थक गया...... "कहाँ  गए थे ? और इतने कैसे थक जाते हो काम तो कुछ करते नहीं ! ...... बोझ बढ़ता ही गया ..... 

    खैर आपका क्या चल रहा है ? क्या आपके सर पर भी कोई बोझ है ? एक बार चेक कर लो ! नहीं तो फस जाओगे ! हम ही है जो छोटी छोटी बातो में फस जाते है ,उसे मान अपमान का मूल्य देते है ,और सर पर बोझ बढ़ाते रहते है , जिम्मेदारी का ,प्यार का ,फर्ज का , कर्तव्यो का  ,सपनोका , उम्मीदोका , आशाओं का ... ...  

    कोई कम करने वाला मिल गया तो ठीक , नहीं तो ये बोझ कब सीने  पर आ जाता है ,पता ही नहीं चलता ! 

    वैसे भी कहा जाता है ,की मरे हुए आदमी को जब जलाते है ,तो उसके सीने  पर बोझ रखते है , नहीं तो वो उठकर बैठ जाता है ! 

   क्या पता ? लोग तो कुछ भी बोलते है ! आपको क्या लगता है ? ये सब सही है ?........ 

                                         

                                                       THE END      

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