हुकूमत :- { धनुकली - हिंदी बोधप्रद रचनाएँ }

                                              -: हुकूमत :-

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   दोस्तों ,नमस्कार ! मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse groups .tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है ! 

    हमारे मित्र और सहकारी श्री.  अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है, उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है ! 

   इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके  आशीर्वाद की कामना करता हूँ  - आपका , अपना  -  श्री. योगेश वसंत बोरसे.

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                                                            -: हुकूमत :-

        एक आदमी था , दिलेरसिंग !उसके पास घोडा था।  उसे बहोत घमंड था ! गांव के छोटे छोटे गलियारो मे वो अपना घोडा दौड़ाता था।  उसके आते ही भगदड़ मच जाती।  छोटे बच्चे , औरते ,बूढ़े डर के मारे थरथर काँपते थे !  कही इसके घोड़े के निचे न आ जाये ! वो चीखते चिल्लाते ! उनकी ये हालत देखकर दिलेरसिंग खिलखिलाके हसता था।  उसके जाते ही सब राहत की सांस लेते ! उसे टोकता भी कौन ? बड़े बाप का बेटा था !

       लेकिन मैंने उसे एकबार सामने से आते हुए देखा , सद्भाग्य से उसके पास आज घोडा नहीं था।  मैंने उसे रोक लिया ,और पुछा ," दिलेर भाई ,तुम ऐसा क्यों करते हो ? गलियारे में बच्चे ,औरते ,बूढ़े लोग तुम्हारे आने से ही डर जाते है ! क्या ये तुम्हे शोभा देता है ? "

      दिलेर जोर से हस पड़ा।  "क्यों ? तुम्हे जलन हो रही है ? मेरे पास घोडा है, उसपर मेरी हुकूमत है , इसलिए ? " 

       मैंने कहा ," बिलकुल नहीं ! मै क्यों जलूँगा ? पर कभी गलती से तुम्हारा खुद का ही बच्चा सामने आ गया तो ?" 

     दिलेर का चेहरा झट से उतर गया।  मैंने शायद उसकी दुखती नस पर हाथ रख दिया था।  उसकी आँखे भर आयी ! 

  उसने अपने आप को संभाला , और बोला ," सच बताऊ ? इसमें मेरा कोई पुरुषार्थ नहीं ! मै  एक हारा हुआ इंसान हूँ ! मैंने खुद इस घोड़े को लगाम लगाकर दौड़ना चाहा , लेकिन हर बार हार गया।  लगाम हाथ में लेते ही ये एक जगह रूक जाता है ! हिलता ही नहीं ! बहोत तकलीफ देता है ! मेरी हालत देखकर लोग मुझपर हसते थे ! जो मै सहन नहीं कर पाता !" 

  " फिर एक दिन मुझे राज़ पता चल गया !  मैंने घोड़े का लगाम निकाल लिया ! बस ! उसपर सवार हो जाता हूँ , वो जहाँ ले जाता है ,वहाँ चला जाता हूँ ! " मै समझ नहीं पाया ,"इसका क्या मतलब हुआ ?"  दिलेर ने कहा " कम से कम ये तो साबित होता है की घोड़े का मालिक मै हूँ !इसपर मेरी हुकूमत है ! अब लोग मुझे देखकर हसते नहीं , डरते है ! " मेरा दिमाग घूम गया , "अरे मुर्ख आदमी ,..... " 

    मै  उसे चार बाते समझाने वाला था , लेकिन रुक गया ! क्योकि मेरी बाते मेरे ही जहन में एक दूसरे से टकरा रही थी ! मै  अपने आप को मुर्ख कह रहा था !मै चौक गया, 'मै कैसे मुर्ख ? ' तो दिल ने कहा ,'अपने अंदर झांककर देखो ! ये सब तुम्हारी ही  कल्पना है , हुकूमत , कब्ज़ा , हक ! फर्क सिर्फ इतना है की वो घोड़े पर घूमता है ,और तुम विचारो के गधे पर बैठ कर घूमते हो ! वो तो फिर भी गलियारे में घूमता है ! लेकिन तुम्हारे विचारो की तो कोई सिमा ही नहीं  ! तुम्हारा उनपर काबू नहीं , हुकूमत तो बहोत दूर की बात है ! '

   ' तो पहले  अपने आप पर ,अपने मन पर काबू पाने की कोशिश करो ! तुम्हारी बहोत सारी गलत फहमी दूर हो जाएगी ... '  

   दिलेरसिंग मेरी और टकटकी लगाकर देख रहा था , " तूम ,मुझे  मुर्ख कह रहे हो ? अगर हिम्मत है तो तुम मेरे घोड़े को काबू करके दिखाओ !" "मै  मायूस होकर बोला ,"मै  क्या तुम्हारे घोड़े  को काबू में करूँगा ? मै  खुद अपने आप पर आज तक काबू नहीं पा सका ! लेकिन एक बात है , तुम्हारी ये गलत फहमी है की घोड़े पर तुम्हारी  हुकूमत है !" "वो कैसे ?" "अगर होती तो वो तुम्हारे  इशारे पर नाचता ! जैसे हम हमारे मन के इशारे पर नाचते है ,वैसे ही तुम घोड़े के ईशारो पर भागते फिरते हो ! या तो घोड़े को काबू में करो ,या मन को ! अगर दोनों बेकाबू हो गए तो जिंदगी बेकाबू  हो  जाएगी , और उसपर दूसरे हुकूमत करेंगे !" 

   इतना कहकर मै  वहाँ से निकल गया ,दिलेर वही खडा सोच रहा था ,या फिर मैंने जो कहा वो उसे समझ नहीं पाया था ! लेकिन मै समझ गया , अपने आप पर काबू पाना ! जिसको जरुरत है ,जिसको आवश्यकता है ,जो खुद पूछेगा उसे ही ज्ञान देना सही है ,वरना  लोग तो बहोत सारी बाते बगैर कहे समझ जाते है ,.... 

    जैसे आप समझ गए है ! है ना ?

                                       

                                                         -: THE END :-            

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