महायुद्ध :- एक अनोखी दास्तान
महायुद्ध :- एक अनोखी दास्तान :-
दोस्तों ,नमस्कार ! मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse group.tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है !
हमारे मित्र और सहकारी श्री. अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है !
इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके आशीर्वाद की कामना करता हूँ - आपका , अपना - श्री. योगेश वसंत बोरसे.
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महायुद्ध :- एक अनोखी दास्तान :-
एक घमासान युद्ध हुआ था उस युद्ध के मैदान पर ! चारो ओर मुड़दे थे ,ताजे ताजे मुड़दे ! उनकी गंध से चील और कौए उस ओर आकृष्ट हुए थे ! किसी का हाथ कटा था ,किसी का पैर ,किसी का सर धड़ अलग किया गया था ! किसी का सीना छलनी हो गया था ! चारो ओर की जमीन खून से जैसे सींची गयी थी ! हर तरफ बस खून ही खून !
ऐसे में शायद किसी जवान की आहे कानो पर पड रही थी ! कोई था जो आखरी सांसे गिन रहा था ! सच्चाई थी या वहम ,पता नहीं चल रहा था ! इतने मुर्दो के बीच कैसे पता चले के कौन कराह रहा था ? दिल में आया , जितने भी तीर शरीरो के आर पार गए है निकाल लू ! जो हाथ पाँव धड़ो से अलग हुए है उन्हें वापस जोड़ दू ! कोई मन्त्र डाल दू ! सबके अंदर जान फूक दू !
मेरा दिल कराह उठा ! जो बात मै सोच रहा था ,वो मै नहीं कर सकता था ! वो मुझे मुमकिन ही था ! मै निराश होकर वही बैठ गया ! पाँव में जैसे जान ही नहीं थी ! तभी नजर एक मुर्दे पर पड़ी ! वो मेरी ओर देख रहा था , मतलब उसकी आँखे खुली की खुली थी ! तो मुझे लगा की वो मुझे घूर रहा है ! और मुझे कुछ कहना चाहता है !
'तुम्हारी हमदर्दी की हमे जरूरत नहीं ! हमारा वजूद मिट गया है ! ख़तम हो गया है ! हम कुछ पाने के लिए लड़ रहे थे और शहीद हो गए ! तू खुद की फ़िक्र कर ! तुम्हारे अंदर भी ऐसा ही घमासान चल रहा है ! तुम्हारे अंदर भी कितनी आशाओ का आकांक्षाओ का इच्छाओ का सपनो का खून हुआ है ! उनकी आह तुझे अंदर ही अंदर ख़तम कर रही है ! तू खुद की फ़िक्र कर ! '
और न जाने कैसे मुझे मेरे अंदर झाकने की शक्ति मिल गयी ! वहा भी लड़ाई चल रही थी ! हर एक विचार दूसरे विचार से टकरा रहा था ! कोई खयाल अच्छा ! तो कोई ख्याल बुरा ! कोई विचार अच्छा ,कोई बुरा ! यही बात इच्छाओं के बारे में ,यही बात सपनों के बारे में ! हर क्षण जैसे मौत भीतर ही भीतर तांडव कर रही थी ! मैंने कभी इस बात पर गौर नहीं किया था !
और ऐसा भी नहीं ,की हर बार अच्छे विचारोंकी ,खयालो की ,सपनो की ,इच्छाओं की हर बार जीत होती थी ! नहीं ! कभी कभी बुरे ख्याल भी जित जाते ! मेरे ऊपर हावी हो जाते ! और मै वही करता ,जो ख्याल जीतता !
इन सब अंदर की बातो पर ध्यान न देने का नतीजा ये निकला ,की मेरे अंदर एक तूफान ,एक ज्वालामुखी धधक रहा था ! जो तूफान कभी भी आता ! और सब कुछ तहस नहस कर देता ! जो ज्वालामुखी कभी भी फटता ! और मेरी दुनिया विरान कर देता !
और मेरे ध्यान में आया , की अगर मै अपने अंदर चल रहे इस विनाशकारी युद्ध को रोक सकता ! तो मै यहाँ पड़े हर एक मुर्दे को जिन्दा कर सकता था !
निराश होकर मै वही बैठा रहा ,खून से लथपथ जमीं पर ! और उस खून का रंग मुझ पर भी चढ़ने लगा ! मुझे भी लगा , 'मै भी कहा जिन्दा हूँ ? मै तो रोज मरता हूँ ! मर रहा हूँ ! कोई ऐसा मिलेगा ? जो मेरे अंदर जान फुक दे ? जो लोग मर चुके है ,उनके अंदर जान फुक दे ? '
और मुझे तुम्हारी याद आई ! तुम्हारे अंदर वो शक्ति है ! सामर्थ्य है ,की तुम मुर्दे में भी जान फुक सकते हो !
लेकिन क्या ये भी मेरा ख्याल है ? विचार है ? या सच्चाई है ? दोबारा से दो विचारो के अंदर घमासान शुरू हुआ ! मै घायल होता रहा ,होता रहा !
शायद यही मेरा नसीब है ! यही मेरी फितरत है ,की मरते दम तक लड़ाई करता रहू , झगड़ा करता रहू ! और एक दिन इस शरीर का त्याग कर दूँ !
लेकिन मुझे उम्मीद है ,की आप आएँगे और मुझमे जान फुक देंगे ! आप आएँगे न ? जरूर आना ! मुझे उम्मीद है ! और उम्मीद पर दुनिया कायम है !
कभी किसी की उम्मीद मत तोडना ! नहीं तो वो ख़त्म हो जायेगा ! आपका इंतजार कर रहा हूँ ! और करता रहूँगा ! मरते दम तक और शायद मरने के बाद भी .......
-: THE END :-
लेखक :- श्री. अरुण गर्ताडकर ,
हिंदी अनुवाद :-श्री . योगेश वसंत बोरसे .
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