धनुकली :- {परंपरा और रिवाज } हिंदी बोधप्रद रचनाएँ

    

       दोस्तों ,नमस्कार !

 मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse group.tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा  रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है ! 

    हमारे मित्र और सहकारी श्री.  अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है ! 

   इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके  आशीर्वाद की कामना करता हूँ  - आपका ,अपना  -  श्री. योगेश वसंत बोरसे. 

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                                               -: परंपरा और रिवाज :- 
litreture
 philosophy

   एक आदमी था , उसका नाम सुशिल था ! सुशिल बहोत ही सीधा साधा ,सरल व्यक्ति था ! उसके पास एक गधा था ,उसे वो जान से भी प्यारा था ! अपने बेटे की तरह ! 

   एक दिन उस गधे की हालत बहोत ख़राब हो गयी। सुशिल उसका खयाल रखने लगा। मगर फिर भी उसकी हालत बिगड़ती गयी।  वो पाँव झटकने लगा। छटपटाने लगा ! और उस गधे ने आँखे  बंद कर ली।  सुशिल घबरा गया।  

        भागते भागते सुशिल  डॉक्टर के पास गया।  " डॉक्टर साब कुछ भी कीजिये ,पर मेरे गधे को बचाइये !" "हां ,हां ! बैठो ,देखो डरो नहीं।  पहले ये बताओ की उसे हुआ क्या है ? " सुशिल ने जो कुछ हु आ था वो सब कुछ बता दिया।  "घबराओ नहीं ! मै दवाई बना के देता हूँ ,उसे पीला दो ! ठीक है ?" सुशिल ने हामी भरी। डॉक्टर ने पानी में दवाई डालकर घोल बना दिया ,उसे एक बोतल में भरा ! साथ में एक पाइप दिया , और कहा - "ये पाइप गधे के मुँह में डालकर उसमे दवाई डाल दो ,और जोर से फूंक मारो ! ताकी दवाई सीधे उसके पेट में जाए ! ठीक है ? जाओ जल्दी !"  

     दवाई लेकर सुशिल भागा भागा घर पोहोचा।  वो बहोत खुश था ! उसे लगा मेरा गधा अभी ठीक हो जायेगा ! लेकिन...... कुछ ही देर में वो लड़खड़ाता हुआ वापस डॉक्टर के पास पोहोचा ! पागलों की तरह हरकते कर रहा था।  आँखों से आंसू बह रहे थे ! उसे बात करने में भी तकलीफ हो रही थी।  उसने सीधे डॉक्टर का गिरेबान पकड़ लिया , और जोर जोर से बड़बड़ाने लगा।  "डॉक्टर ये क्या कर दिया ?" डॉक्टर उसे समझाते हुए बोले ," देखो ,शांत हो जाओ ! गधे को मरना था ,वो मर गया ! जो होना था वो हो गया ! अपने आप को तकलीफ मत दो !"  

  " दवाई पेट में जाने के बाद भी शांत रहूँ ?" सुशिल गुस्से में आकर बोला।  "दवाई पेट में डालने के लिए ही दी थी !" डॉक्टर ने शांति  पूर्वक कहा।  " डॉक्टर ,मै गधे की नहीं ,अपनी बात कर रहा हूं ! वो दवाई मेरे पेट में गई !" डॉक्टर हैरान होकर बोले ," वो कैसे ? वो दवाई तुमने क्यों ली ? " अरे ,मैंने नहीं ली ! मै  क्यों लूंगा ?" "तो ?" "आपने जैसे बोला , मैंने वैसे ही किया।  पाइप गधे के मुँह में डाला , और दवाई डाली ,फुकने लगा तो मेरे पहले गधे ने ही उधर से फूंक मार दी !" 

   उनकी बाते सुनकर बगल में जो आदमी खड़ा था ,वो हसने लगा , " अरे गधा वो नहीं ! गधे तुम दोनों हो ! ऐसा कोई करता है क्या ? वो गधा है वो वैसा ही करेगा ! उसे अपने भले बुरे की समझ नहीं ! लेकिन तुमको तो है ?" और वो आदमी हसते हसते वहाँ  से चला गया ! 

   सही तो है - बहोत मुश्किल है किसी गधे का भला करना ! जैसे समाज होता है , समाज की रीत  होती है ,उसे बदलना चाहेंगे तो हम ही गधे कहलाते है ! और उससे मुश्किल है ,किसी की सोच बदलना ! जिन में जान नहीं है ,ऐसे कितने रीती रिवाज हम आज भी बदल नहीं सकते ! जिनको सब सँभालते है।  इसलिए हमे भी सँभालने पड़ते है ! 

    मेरी लड़की की शादी में , मैंने सबको बड़े प्यार से विनम्रता से  गिफ्ट न लाने को कहा , लेकिन कुछ लोगो को ये बात हजम नहीं हुई ! कुछ लोग मुंहफट होते है !ऐसे ही एक मुँह फट ने सबके सामने मुझे सुना दिया ," हमने तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार किया , और यहाँ तक आये ! हम क्या भिखारी है ? हमे क्या घर पे खाना नहीं मिलता ? गिफ्ट तो लेना ही पड़ेगा ! यही रीत है , परंपरा है ,रिवाज है ! " मै सन्न हो गया।  

    मेरे मन में आया , की भिखारी ' ये ' सब नहीं मै ही था !जो सबको बिनती करके हाथपांव जोड़ कर बेटी की शादी में बुलाया था।  मैंने रीती रिवाज बदलने की मूर्खता की थी ,परिणाम सामने था ! 

    लेकिन....' भगवान श्रीकृष्ण ' धन्य है !  उन्होंने एक ही झटके में इंद्र की पूजा बंद करवाई थी ,मै वैसा ही कुछ करने गया , तो चार बातें सुननी पड़ी ! कितना मुश्किल होता है , दुसरो को बदलना ?  इसिलये तो संत महात्माओं के  जीवन में जिंदगीभर दुःख और कष्ट भरे होते है ! 

   ये जब से समझ में आ गया ,तब से किसी भी शादी में जाता हूँ तो वहां की रोशनाई का आनंद उठाता हूँ ! दारू पीकर नाचने वालो का हंगामा देखता हूँ तो उसका मजा लेता हूँ ! शादी करने वाले की ,संगीत की , बारातियो की और देखके मजा लेता हूँ ! कोई दहेज़ देता है ,तो उसका मजा लेता हूँ ! कोई शादी में बचा खाना गरीबों को न बाट कर फेक देता है ,तो चुप चाप देखता हूँ ! 

    लेकिन आपका क्या ? मुझे पता है ,की आपको भी यह सब देख कर तकलीफ होती होगी !लेकिन आप क्या करेंगे ? बहोत मुश्किल होता है ,समाज का परिवर्तन करना ! रीती रिवाज बदलना ! अगर बदलने का प्रयत्न करेंगे तो अपने ऊपर ही ऊँगली उठती है ! क्या बदलना चाहेंगे ? समाज को ?

      एक बार प्रयत्न करके जरूर देखिये ! ... तब तक 'जय श्री कृष्ण '.... 

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