- : अहंकार :- { धनुकली - हिंदी बोधप्रद रचनाएँ }

                              - : अहंकार :- { मनोगत }  

       दोस्तों ,नमस्कार !

      मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse group.tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा  रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है ! 

    हमारे मित्र और सहकारी श्री.  अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है ! 

   इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके  आशीर्वाद की कामना करता हूँ  - आपका , अपना  -  श्री. योगेश वसंत बोरसे. 

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                                           -: अहंकार :- 
litreture
 PHILOSOPHY

          अजय का छोटा बच्चा और बीबी अस्पताल में थी।  अभी अभी बच्चे का जनम हुआ था।  सिस्टर ने एक पर्ची लेकर उसके हाथ में थमा दी , और बोली ,"ये  दवाई लाओ जल्दी !"  वो कुछ सोच रहा था , किसीने उसका आज दिल दुखाया था।  लेकिन सिस्टर की आवाज सुनकर वो हड़बड़ाकर उठ कर खड़ा हो गया।  पर्ची ली , "दवाई कितने की आएगी ?" उसने पूछा।  सिस्टर ने सहज आवाज में कहा ,"कुछ नहीं , हजार पाँच सौ की आएगी। " इतना कहकर वो चली गयी।  

    अजय ने जेब से पर्स निकाला ,लगभग एक हजार रुपये ही थे।  दो चार  कदम पर ही मेडिकल स्टोर था।  वैसे तो उसे दस पंधरा मिनिट ही लगते जाकर आने में, पर आज उसके कदम ही नहीं उठ रहे थे।  वैसे तो अजय बहोत स्मार्ट था , और एक्टिव भी।  लेकिन किसीने आज उसके अहंकार को ठेस पोहोचाई थी।  उसकी औकात निकाली थी। निर्धन लोगो को भी स्वाभिमान रहता है ये सामने वाला भूल गया था।  और निर्धन आदमी को ही ये अहंकार सबसे ज्यादा दुःख और परेशानी देता है !

     सोचते सोचते वो रस्ते पर आ गया।  एक जगह भीड़ लगी थी।  ये भी भीड़ का हिस्सा बन गया।  एक तोते पर बोली लगाई जा रही थी । वो मायूस हो गया। इससे मेरा कुछ लेना देना नहीं ,ये सोचकर वो भीड़ से अलग होने ही वाला था ,के उसके विचार बदल गए।  वो दोबारा भीड़ में शामिल हुआ।  और अभी बोली में भी हिस्सा लेने की ठान ली।  क्योंकि सुबह जिसने उसका मजाक उड़ाया था ,वो भी सामने था।  

      अजय ने बोली लगाई 'पचास रुपया !' ,जवाब आया 'इक्क्यावन ', ये सौ बोला , जवाब आया 'एक सौ एक '! ऐसा ही चलता रहा।  आखिर जीत  अजय की हुई।  जेब से हजार रूपया  निकालकर तोतेवाले को दिया।  विजयी मुद्रा में तोते का पिंजरा हाथ में लिया।  और हवा में लहराया।  जैसे वो कोई विजय पताका थी। कुछ सोचकर अजय बोला ,"ये बोलता तो है न ?" "अरे साब ! क्या बात करते हो ? आपके सामने से यही तो था बोली लगाने वाला !" और वो मुस्कुराता हुआ निकल गया ! एक आदमी उसे सरे आम फसाकर जा रहा था और वो कुछ नहीं कर पाया ! उसे झटका सा लगा।  

     ' ये मैंने क्या कर दिया ?' 'अभी दवाई को पैसे कहाँ से लाऊ ?' 'मेरी बीबी वहाँ राह  देखती होगी , बच्चे को दवा की जरुरत है ! अब क्या करू ?'वो वही सर पकड़कर बैठ गया .......                 मेरा भी कईबार ऐसा ही होता है , मै अपने होश खो देता हूँ ,उस वक्त मै  किसी की नहीं सुनता ,मुझे जो सही लगता है वही करता हूँ ! अपने आप की भी नहीं सुनता ! बस ! जो मन में आया वो करता हूँ ! खुद की इज्जत बढ़ाने की चेष्टा करता हूँ ! जिंदगीभर .... 

    मै कही पीछे न रह जाऊ , मेरी इज्जत कम न हो जाये ! इसलिए जिंदगी से लड़ता रहता हूँ ! उस वक़्त मेरे अंदर किसी को सुकून मिलता है ! वो बिच बिच में डकार मारता रहता है ! मुझे समर्थन देते रहता है ! उत्तेजना प्रदान करता है ! कौन होता है वो ? और मै लुटा जाता हूँ , नंगा हो जाता हूँ , भिखारी हो जाता हूँ ! नशे में जैसे आदमी झूमता रहता है ,वैसे ही झूठे अहंकार में झूमता रहता हूँ ! मेरे साथ तो ऐसा ही होता है , कभी कभी , कभी कभी नहीं हर बार ,कई बार ,लगातार ! 

    आपके साथ तो ऐसा नहीं होता होगा ? हो भी नहीं सकता ! क्योंकि , मै जानता हूँ , आपके अंदर बिलकुल भी अहंकार नहीं है ! इतना सा भी नहीं ! 

    आप नीर अभिमानी है !  आपको कोई नहीं फसा सकता ! लूट नहीं सकता ! सही है ना ! या फिर आप में भी ...... 

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