श्रद्धा और परमात्मा :- { धनुकली - हिंदी बोधप्रद रचनाएँ }

                                श्रद्धा और परमात्मा :- { धनुकली - हिंदी बोधप्रद  रचनाएँ }  


SPIRITUAL
 PHILOSOPHY


 दोस्तों ,नमस्कार ! मै ,योगेश बोरसे आप सभी का borse groups .tech में हार्दिक हार्दिक स्वागत करता हूँ ! दोस्तों हम आपके सामने कुछ ऐसी रचनाये रखने जा  रहे है ,जो आपकी जिंदगी से इत्तेफाक रखती है ! 

    हमारे मित्र और सहकारी श्री.  अरुण पाटिल सर जो 'अरुण गरताडकर 'इस नाम से एक प्रसिद्ध और मशहूर लेखक है उनके कुछ लेख हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे है ! जो मूलतः उनकी एक मराठी किताब ' धनुकली ' जो बहोत ही चर्चा में रही है , उसका हिंदी अनुवाद आपके सामने ला रहे है ! 

   इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वैर रूप से किया गया है ,जो की समझने में आसानी हो ! जो की खुद मैंने मतलब 'योगेश बोरसे ' ने उनकी अनुमति लेकर ,सहमति लेकर किया है ! जो आपको निश्चित ही आनंद प्रदान करने में सक्षम है ,इसकी मुझे ख़ुशी है ! तो चलिए शुरुवात करते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रचनाओं के साथ - आपके  आशीर्वाद की कामना करता हूँ  - आपका , अपना  -  श्री. योगेश वसंत बोरसे. 

                                                       ➤➤➤➤➤➤➤➤➤➤➤


' लैला - मजनू ' ! - ऐसा कोई इंसान शायद ही होगा जिसे इनका नाम पता नहीं। मुझे उस मजनू की कभी कभी दया आती है, हैरानी होती है, गुस्सा भी आता है। उसके पागलपन का गुस्सा आता है। एक मामूली लड़की के लिए इतना दीवानापन किस काम का ? मेरे मन को, मेरे दिल को बिलकुल भी ये बात हजम नहीं होती। 

  यही सवाल उस वक़्त के राजा के मन में भी आया था। उसे मजनू की दया भी आयी।  उसने दरबार में दर्जनभर लड़किया खड़ी कर दी। सब एक से एक खूबसूरत थी। राजा ने उसे कहा, " अरे क्या लैला लैला  करते हो ? वो तो एक साधारण सी लड़की है। इनके सामने वो लैला की औकात ही क्या है ! ये सब कहाँ ! वो कहाँ  ! इनमे से एक चुनलो ! एक नहीं, दो चुनो ! दो नहीं, तीन चुनो ! लेकिन ये जो लैला लैला करते घूमते हो, ये बंद करो ! मै परेशान हो गया हूँ ! " 

  लेकिन...... वो तो मजनू था। उसने हर एक लड़की का घूँघट उठाकर देखा, " ये मेरी लैला नहीं ! ये मेरी लैला नहीं ! " यही हर वक़्त कहता रहा। और लैला लैला करता हुआ वहाँसे भागने लगा !  यहाँपर एक बात हम सोच सकते है। सोचनी चाहिए ! या फिर मन में विचार आता है की वो मजनू कितना बेवकूफ था, उसकी जगह अगर मै होता तो तीन - तीन लड़किया चुनता ! यही बात हम दोस्त कर रहे थे।  मेरी बारी आई तो मैंने भी यही कहा।   

  कह तो दिया ! लेकिन मन मे बिवी का डर था। हां बीवी का डर ! ये क्या होता है वो शादी शुदा लोग ही समझ  सकते है। लेकिन मन कहा मानता है ? वो तो खयालो में खोया रहता है।  ख़याली पुलाव बनाता रहता है।  एक बीवी के होते हुए और तीन की अपेक्षा कर रहा था।  अपेक्षा तो कर रहा था !  लेकिन मेरी कहानी बिलकुल उलटी है।

    वहा राजा उसे खुद लैला के बदले तीन लड़किया दे रहा था और यहाँ में बीवी के बदले तीन लड़कियों की ख्वाहिश रख रहा था।  जो कभी पूरी नहीं होनेवाली थी। होती भी कैसे ? जितना प्यार मजनूने लैला से किया था उससे आधा भी मैंने पूरी जिंदगी में नहीं किया था। प्यार के नाम पर बस व्यवहार पूरा किया था। बच्चे पैदा करने का ! बस हमारे लिए तो वही प्यार था। वही प्यार की परीभाषा थी, वही प्यार का पैरामीटर था।  मेरे किसी नजदीकी दोस्त ने मेरी ख्वाहिश मेरी बीवी तक पोहोचा दी। बड़ी शालीनता से, गंभिरतासे, ध्यानसे ! मुझे ज्यादा से ज्यादा तकलीफ हो इस ढंग से ! और मेरे सामने आते ही वो मंद मंद मुस्कुराता हुआ चला गया। 

   " तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी ! " 

  अचानक आयी  आवाज से मै हड़बड़ा गया। सामने बीवी खड़ी  थी। रौद्र रूप धारण किये हुए ! उसके हाथ में आइना था ! जो वो शायद अभी फेकने वाली थी ! और..... उसने निचे पटक ही दिया ! छन्न की आवाज से कांच के टुकड़े पुरे फर्श पर बिखर गए ! और मेरे पैरो तले से जमीं खिसक गयी ! 

   वो फिर दहाडी ! "देखो , अपनी जितनी आँखे है , सब खोल कर देख लो ! इन कांच के टुकड़ो में देख लो ! कही भी तुम्हे ऐसी खूबी नजर आती है ? की दुनिया की कोई भी औरत तुम्हारे साथ शादी करके रह सकती है ? " "लेकिन , मैंने की ! " उसका स्वर अचानक कोमल हो गया ! शांत हो गया ! मै हैरान हो गया ! ये चमत्कार कैसे हुआ ?  वो फिर बोली ," फिर भी तुम मेरे लिए परमेश्वर हो ! मैंने तुम्हारे तरफ हमेशा प्यार से ही देखा है ! आज भी ! अभी भी ! सर के सभी बाल झड़ गए है तभी भी ! आँखे कमजोर हो गयी है तभी भी ! मुँह में दातो की जगह नकली दांत लगाने की  नौबत आयी है तब भी ! यहाँ तक का सफर साथ में किया है हमने ! और आज भी मै तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ , शायद उससे भी ज्यादा ! जितना हमारी शादी हुई तब किया था ! "

       " तुम जैसे भी दीखते हो मेरे लिए असामान्य ही हो ! दुनिया का कोई आदमी तुम्हारी जगह नहीं ले सकता ! क्योंकी तुम्हारे प्रति जो प्यार था , उसकी जगह श्रद्धा ने ले ली है ! ऐसे में मुझे तुम्हारी जगह परमात्मा का साक्षात्कार होता है ! तो फिर ऐसी हरकते क्यों करते हो ? जो किसी ईश्वर को शोभा नहीं देती ?" 

       मै हैरान हो गया ! मेरी आँखे खुल गयी !' मै भगवान हूँ ? ईश्वर हूँ ? मेरी पत्नी की नजरो में ! तो मेरे करम ईश्वर जैसे ही होने चाहिए ! मेरी सोच वैसी ही होनी चाहिए ! तो मै  ऐसा क्यों सोचता हूँ? कैसे सोच पाता हूँ ? या फिर मेरी औकात ही नहीं , की मै  किसी इंसान के लिए भी भगवान बन पाऊं ? '  

      और मुझे लैला मजनू की कहानी की सच्चाई समझ में आ गयी । की ये केवल टाइम पास के लिए बनाई गई कोई कहानी नहीं है।  ये सिख है हमारे जैसे पुरुषो के लिए , जो खुद की बीवी को छोड़कर दुसरो की बीवी पर नजर रखते है ,उसकी ख्वाहिश  रखते है ! 

     मजनू को लैला में उसका ईश्वर दिखता था।  और वो नहीं मिलता , नहीं दीखता , तो वो परेशान हो जाता।  और अपने ईश्वर के दीदार के लिए भागता फिरता ,यहाँ से वहाँ ,वहाँ से वहाँ ! की कही तो वो सामने नजर आ जाये ! 

     क्या हम किसी से इतना प्यार करते है ? कर पाते है ? कर पाएंगे ? शायद नहीं ! क्योंकि  जिंदगी गुजर गयी बाहर की सुन्दरता देखते देखते ! अंदर की सुंदरता ,परमात्मा का वो अंश उस तक हम कभी पोहोच ही नहीं पाए ! और शायद  कभी पोहोच भी नहीं पाएंगे ! 

    हमने कही  पढ़ा था ,सुना भी था , किसीने कहा है ,की कुदरत की सुन्दरता का आनंद लेना चाहिए ! उसका उपभोग करना चाहिए ! हम जिंदगी भर वही करते आये ! ये बात इतनी आसानी से हजम हो गयी की जिंदगी के आखरी पड़ाव तक पोहोच गए ,फिर भी वही आनंद ढूंढते रहते है की कही तो हरियाली दिख जाए , और आँखे भरकर उसे देख ले ! 

    जब पहली बार लैला मजनू की कहानी सुनी थी ,तो मजनू के बारे में गुस्सा आया था ! हसी आयी थी ! पागलपन भी लगता था ! लेकिन अब वैसा नहीं होता ! 

   अब तो मुझे भी मजनू बनना है ! मगर किसी लैला के लिए नहीं ! उस ईश्वर के लिए ! उस परमात्मा के लिए ! जो हम सबके अंदर बसता है संसार के कण कण में बसता है ! लेकिन उसके लिए श्रद्धा चाहिए ! भक्ति चाहिए ! समर्पण चाहिए ! त्याग चाहिए ! पागलपन चाहिए ! जो मजनू में था !

   क्या मुझमे वो पागलपन है ? या मै डरता हूँ की लोग मुझे  पागल न घोषित कर दे ? 

   शायद ये डर मजनू को कभी लगा नहीं ! महसूस ही नहीं हुआ ! ख्याल ही नहीं आया ! इसलिए वो अमर हो गया ! 

  और मै ? शायद मेरे बाद की दो पुश्ते मेरा नाम भी भूल जाएगी ! क्योंकी मैंने पुश्ते बढ़ने का काम किया ! और मजनू ने परमात्मा तक पोहोचने का ! वो पोहोचा  के नहीं मुझे मालूम नहीं , लेकिन अब मै  पोहोचना चाहता हूँ ! 

     उतनी श्रद्धा मुझमे जरूर है ,वरना एक ही औरत के साथ जिंदगी क्यों बिताता ? उसमे भी कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी ,की कोई उसके साथ जिंदगी बिताता ! तो ऐसी कौनसी बात थी ? जो हमने जिंदगी साथ में बिताई ! 

    प्यार ? मोहब्बत ? श्रद्धा ! जरुरत ? समाज का डर ? माँ  बाप का डर ? बच्चो के लिए ? या फिर कुछ और जो मै जान नहीं पाया ? समझ नहीं पाया ? कौन समझायेगा मुझे ? कौन बताएगा ? आप बताएँगे मुझे ? 

     अगर जिंदगी के किसी मोड पर आपको ईश्वर का साक्षात्कार हो गया तो उसे जरूर बताना की मै भी उसे ही ढूंढ रहा हूँ ! उसके लिए तड़प रहा हूँ ! मचल रहा हूँ ! पागलो की तरह भटक रहा हूँ ! क्या आप मेरे लिए इतना कर सकते है ? 

     जरूर बताना ...... तब तक मै निकलता हूँ ,उस परमात्मा की खोज में ! शायद मुझे ही पहले मिल जाये। .. क्योंकि मेरी तड़प ज्यादा है शायद ....... 

                                         जय परमात्मा की .......       

   ENJOY SPIRITUAL & LITRETURE ON OUR YOU TUBE CHANNEL  

   ENJOY MUSIC WITH US  


➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣➣

    




















Previous
Next Post »