दायरा - हिंदी कविता | Dayra - hindi kavita

 दायरा - हिंदी कविता | Dayra - hindi kavita 


दायरा 

hindi kavita | hindi poem 

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 hindi poems

 कवि : राज योगेश बोरसे




जिंदगी में किया हर काम दायरे में रहकर
 हर बार जिया मै दायरे में रहकर

निकल पड़ा मै मंजिल की ओर, जिसके लिए की कोशिशे दायरे में रहकर 
निभाता चला गया उसे जो लिखा था , मेरे दायरे ने खुद मेरे दायरे रहकर

फिर, मेरे इन कोशिशों, प्रयासों का हिसाब लगाया, भगवान ने भी दायरे में रहकर 
कुछ ना मिला मुझे ,जो ढूंढ रहा था मै, मेरे दायरे में रहकर
 
फिर सोचा क्यों ना कर लू कुछ ऐसा,जो हो मेरे दायरे से बढ़कर 
शायद मिल जाए वो,जो कभी सोचा न हो , मैंने दायरे में रहकर
 
बस अब करता चला गया वो काम, जो था मेरे दायरे से बढ़कर
हुआ होनहार, होशिआर हर चीज में, जो चाहता था दायरे से बढ़कर
दिया भगवान ने भी मुझे दायरे से बढ़कर

अब मै खड़ा था उस वक़्त पर जहाँ ये दायरा भी बदलना था !
शायद मै अब से ज्यादा पाने की सोच रहा था !
बदल दिया ये भी दायरा और करने लगा बढ़कर से भी बढ़कर 
बना लिया फिरसे एक नया दायरा,जो मुझे और बढ़कर देने वाला था ,बढ़कर से भी बढ़कर 
लग पड़ी थी आग, लड़ गई थी जिद और बन गई थी आदत मेरी दायरा बदलने की,
खुदसे खुद को बड़ा करने की, अनोखा मुकाम हासिल करने की

यूँ ही हररोज दायरे से दायरा बदलता चला गया
करता मै जो काम उसे ही दायरा बनाते चला गया
चाहे जो हो, अच्छा या बुरा , उसे दायरा नाम देकर  दायरे में शामिल करता चला गया
यूँ आदत सी लग गई , मैं माहिर सा बन गया
यूँ ही दायरे से दायरा बदलने का मेरे लिए खेल सा बन गया 
आगे निकल चुका था मै इस खेल में बहोत,
पा लिया सबकुछ बस !
खुदको ही शायद भूल सा गया
  
एक दिन हुआ कुछ ऐसा, की याद आ गई खुद की, बीते दिनों की
देखा पीछे मुड़के सोचा, मिल जाएंगे बीते दिन फिरसे ...
कोई न था साथमे 
बस ! खड़ी थी एक नई चुनौती, सामने था एक और मुस्कुराता नया, एक और बड़ा दायरा  
जो ललकार रहा था मुझे ,क्या मेरे जितना बनोगे ? या इतनाही है तुम्हारा दायरा ........ ?

                                       
                                                                        कवी : राज योगेश बोरसे 

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