क्या कहे - इस्तेमाल | Great thoughts

                         क्या कहे - इस्तेमाल | Great Thoughts 


KYA KAHE ISTEMAL ? 



    १ } क्या कहे ? - :- इस्तेमाल .... ?

लेखक :- श्री . योगेश बोरसे :- 

अगर  कोई किसी का दर्द बांट ले  ,  तो उसे हमदर्द कहते है ! 

अगर किसी को बताने के बात दर्द महसूस हो तो उसे दोस्त कहते है ! 

अगर किसीको बताए और वो उसका फायदा उठाये तो उसे खुदगर्ज कहते है !

जो हमें देखकर ही हमारी तकलीफ समझ जाये तो उसे माँ कहते है !

 जिसके पास दर्द को दूर करने की दवा हो तो उसे वैद्य कहते है ! 

 हमारी परेशानी से जो खुश हो उसे दुश्मन कहते है !

और जो हमें सब कुछ देता है और फिर भी चैन से जीने नहीं देता उसे भगवान कहते है !

हम उस भगवान की पूजा करते है ,जो हमे एक हाथ से देता है और दूसरे हाथ से लेता है ! 

और उस माँ को अपनी जिंदगी से बेदखल करते है ,जो हमसे कभी कोई उम्मीद नहीं करती ! 

माँ ,जो अपने बच्चो को देने के सिवा कुछ नहीं जानती ! 

हर पिता अपने बच्चो को वो सब कुछ देने का प्रयास करता है ,जो उसे मुमकिन हो ! 

और शायद कभी कभी तो नामुमकिन भी दे देता है ,बिना कोई अपेक्षा किये !

चुप चाप ,बिना बताये , अहसास जताये बिना !

वैसे तो हर आदमी बाप बनता है !

और हर औरत माँ बनती है ! 

और माँ - बाप का दर्जा भगवान के बराबर का होता है ! 

मतलब हर इंसान में भगवान बसता है !  

हर एक जिव ईश्वर का अंश है !

     और हम क्या करते है ?

 हमारे अंदर के ईश्वरीय अंश को जगाने के बजाय हम हमारे अंदर के शैतान को जगाते है !

लालसा ,वासना ,द्वेष ,तिरस्कार ,खुदगर्जी , लालच , अहंकार ,घृणा , मोह जो हमें अपनों से दूर करते है ! 

हम तरक्की तो करते है ,लेकिन अपनों के ही गले काटकर ,किसी अपने को सताकर !

ना रिश्ता निभा पाते है , न दोस्ती ,न दुश्मनी , न दुनियादारी ! 

     और आखरी वक़्त में न माँ बाप पास में होते  है !

न बेटा पास में होता है ! न बीवी ! न कोई रिश्तेदार ! न पैसा ! न धन दौलत ! 

न कोई साथ में आता है ,न कोई साथ निभाता है ! 

दोस्तों ,जिंदगीभर हम या तो इस्तेमाल करते है !

 या इस्तेमाल होते रहते है ! 

जिसकी जैसी जरुरत !  वैसा उसका इस्तेमाल होता है ! 

  कभी मालिक के रूप में ,कभी नौकर के रूप में ,

कभी नेता के रूप में ,कभी जनता के रूप में , 

 कभी पति  के रूप में ,कभी पत्नी के रूप में , 

कभी भाई के रूप में , कभी बहन के रूप में , 

कभी दोस्त के रूप में ,कभी दुश्मन के रूप में , 

कभी भगवान के रूप में ,कभी शैतान के रूप में , 

कभी शिक्षक के रूप में ,कभी विद्यार्थी के रूप में , 

कभी आशीर्वाद के लिए , कभी शाप के लिए ,

 कभी दाता के रूप में , कभी कर्जदार के रूप में , 

और न जाने कितने तरीके से , आखरी दम तक और शायद मरने के बाद भी !... 

 तो हमे कैसे जीना चाहिए ? कैसे मरना चाहिए ? 

किसके लिए जीना चहिये ,किसके लिए मरना चाहिए , कौन तय करेगा ? 

हम या कोई और ?

या शायद भगवान ? या घरवाले ? या पडोसी ? या रिश्तेदार ? ........ 

शायद इसका कोई जवाब नहीं ........

न मेरे पास , न आपके पास , न ही किसी और  के पास. .......   

                                   लेखक :- श्री . योगेश बोरसे 

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