क्या कहे - इस्तेमाल | Great Thoughts
KYA KAHE ISTEMAL ? |
लेखक :- श्री . योगेश बोरसे :-
अगर कोई किसी का दर्द बांट ले , तो उसे हमदर्द कहते है !
अगर किसी को बताने के बात दर्द महसूस हो तो उसे दोस्त कहते है !
अगर किसीको बताए और वो उसका फायदा उठाये तो उसे खुदगर्ज कहते है !
जो हमें देखकर ही हमारी तकलीफ समझ जाये तो उसे माँ कहते है !
जिसके पास दर्द को दूर करने की दवा हो तो उसे वैद्य कहते है !
हमारी परेशानी से जो खुश हो उसे दुश्मन कहते है !
और जो हमें सब कुछ देता है और फिर भी चैन से जीने नहीं देता उसे भगवान कहते है !
हम उस भगवान की पूजा करते है ,जो हमे एक हाथ से देता है और दूसरे हाथ से लेता है !
और उस माँ को अपनी जिंदगी से बेदखल करते है ,जो हमसे कभी कोई उम्मीद नहीं करती !
माँ ,जो अपने बच्चो को देने के सिवा कुछ नहीं जानती !
हर पिता अपने बच्चो को वो सब कुछ देने का प्रयास करता है ,जो उसे मुमकिन हो !
और शायद कभी कभी तो नामुमकिन भी दे देता है ,बिना कोई अपेक्षा किये !
चुप चाप ,बिना बताये , अहसास जताये बिना !
वैसे तो हर आदमी बाप बनता है !
और हर औरत माँ बनती है !
और माँ - बाप का दर्जा भगवान के बराबर का होता है !
मतलब हर इंसान में भगवान बसता है !
हर एक जिव ईश्वर का अंश है !
और हम क्या करते है ?
हमारे अंदर के ईश्वरीय अंश को जगाने के बजाय हम हमारे अंदर के शैतान को जगाते है !
लालसा ,वासना ,द्वेष ,तिरस्कार ,खुदगर्जी , लालच , अहंकार ,घृणा , मोह जो हमें अपनों से दूर करते है !
हम तरक्की तो करते है ,लेकिन अपनों के ही गले काटकर ,किसी अपने को सताकर !
ना रिश्ता निभा पाते है , न दोस्ती ,न दुश्मनी , न दुनियादारी !
और आखरी वक़्त में न माँ बाप पास में होते है !
न बेटा पास में होता है ! न बीवी ! न कोई रिश्तेदार ! न पैसा ! न धन दौलत !
न कोई साथ में आता है ,न कोई साथ निभाता है !
दोस्तों ,जिंदगीभर हम या तो इस्तेमाल करते है !
या इस्तेमाल होते रहते है !
जिसकी जैसी जरुरत ! वैसा उसका इस्तेमाल होता है !
कभी मालिक के रूप में ,कभी नौकर के रूप में ,
कभी नेता के रूप में ,कभी जनता के रूप में ,
कभी पति के रूप में ,कभी पत्नी के रूप में ,
कभी भाई के रूप में , कभी बहन के रूप में ,
कभी दोस्त के रूप में ,कभी दुश्मन के रूप में ,
कभी भगवान के रूप में ,कभी शैतान के रूप में ,
कभी शिक्षक के रूप में ,कभी विद्यार्थी के रूप में ,
कभी आशीर्वाद के लिए , कभी शाप के लिए ,
कभी दाता के रूप में , कभी कर्जदार के रूप में ,
और न जाने कितने तरीके से , आखरी दम तक और शायद मरने के बाद भी !...
तो हमे कैसे जीना चाहिए ? कैसे मरना चाहिए ?
किसके लिए जीना चहिये ,किसके लिए मरना चाहिए , कौन तय करेगा ?
हम या कोई और ?
या शायद भगवान ? या घरवाले ? या पडोसी ? या रिश्तेदार ? ........
शायद इसका कोई जवाब नहीं ........
न मेरे पास , न आपके पास , न ही किसी और के पास. .......
लेखक :- श्री . योगेश बोरसे
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