Hindi Horror Story - संक्रांत...
HINDI HORROR STORY |
संक्रांत एक मीठा त्यौहार,लेकिन किसी की जान पे बन आये तो क्या कहेंगे ? जान लेवा संक्रांत !!!
यह त्यौहार शहरो मे गाँओ मे धुमधाम से मनाया जाता है .खास करके शहरों में देर रात तक लोग घूमते रहते है.गाओ में थोड़ी रात होने तक चहलकदमी रहती है.,लेकिन दस से ग्यारह बजे तक पुरे गाँओ मे सन्नाटा छा जाता है.पूरा गांव नींद में खो जाता है.
लेकिन ........ एक गांव में.... कोई था, जो दिन ढ़लनेका इंतजार कर रहा था, रात होने का इंतजार कर रहा था. जैसे ही रात का सन्नाटा छा गया, रात गहरी होती गयी ,वह हाथ में लालटेन लेके निकल गया. उजाला काफी कम था ,उतनाही जिससे वो चलते वक़्त निचे देख सके. पैरो को जैसे आदत सी थी,वो अपने आप जंगल की और बढ़ रहे थे.
हां जंगल की और, उस गांव के पास में ही घना जंगल था ,जहाँ दिन में जानेसे डर लगे, वहा ये रात में बेफिक्र होके जा रहा था. अन्धकार ,घना अन्धकार ,पाव के नीचे आने वाले पत्तोकी ,टहनिओ की चरमराहट ,पत्तो की सांय सांय , कुछ पंछियो की फड़फड़ाहट ,माहौल को खौफनाक बनाने में सक्षम थी. इसकी आहट से बंदर उछल-कूद कर रहे थे. पूरा जंगल जैसे जाग गया था, जैसे-जैसे ये आगे बढ़ता इसके पीछे ख़ामोशी छा जाती ,लेकिन इन सब बातो का उस व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था. जैसे इन सबकी उसे आदत थी ,जैसे कुछ होने वाला था, जिसकी उसे कल्पना थी ,जानकारी थी, कुछ ठान के निकला था. उसकी गति और बढ़ गई. गर्द झाडियो मे जाके वो गुम हो गया.
और...... थोडीही देर में रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली ,जिसकी गूंज पुरे जंगल में गुंजी. तो एक बार जंगल फिर जाग गया.और थोडीही देर में फिर ख़ामोशी छा गयी, जानलेवा ख़ामोशी,सन्नाटा! कुछ ही पल में झाड़ियो में किसीकी आने की आहट सुनाई दी.
लेकिन इस बार उस आहट में कोई जल्दबाजी नहीं थी.धीरे धीरे शांतिपूर्वक अपना काम पूरा होने की तसल्ली जैसे उसे मिल गयी थी. पैरोकि आहट धीरे धीरे नजदीक आने लगी और हाथ में लालटेन लिये वो सामनें आ गया. सामने का दॄश्य किसी भी साधारण आदमी की धड़कने रोकने के लिए पर्याप्त था. कितना भी हिम्मतवाला क्यूँ न हो ,उसके पसीने छूट जाते.
हाँ ,क्योकि उस व्यक्ति के एक हाथ में किसी स्त्री का सर था.हाँ उस स्त्री के सर के बाल उस व्यक्ति के हाथ में थे. उसकी मुंडी से लगातार खून बह रहा था. आँखे खुली की खुली थी. जो इतने अँधेरे में भी किसी का होश उड़ा सकती थी. और उसका धड़ ? बाकि जिस्म? मतलब इतने आसानी से इसने? ... बाप रे बाप !
कुछ ही देर में शोर सुनाई देने लगा. भागम भाग शुरू हो गई. झाडियो के पीछे से लोगो की भागने की आवाज़े आने लगी. वैसे इस व्यक्ति की गति बढ़ गयी. कुछ ही पल में वो भागने लगा.,जैसेउसे मालूम था. कहा जाके रुकना है. वहा जाके उसने लालटेन बुझादी, और अँधेरे में गायब हो गया.
झाडियो के पीछे छोटी सी बस्ती थी,जहांसे लोग हाथ में हथियार लिए जंगल में ढूंढने लगे. लेकिन वह किसीके हाथ नहीं लगा. धीरे धीरे गुस्से की जगह निराशा ने ली. निराशा की जगह लोगो के चेहेरे पे दुखद भाव आने लगे. और वो अपनी बस्ती की और मुड गए. उस छोटीसी बस्ती की एक झोपड़ी मे यह भयानक घटना घटी थी.
इंसान का शरीर! जब तक उसमे जान होती है न, कितना सुन्दर दिखता है , उस वक़्त वह दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज होती है , जिस पर अनगिनत कविताएं , गीत लिखे जाते है , लेकिन जब उस शरीर में जान ही न रहे तो उससे ज्यादा डरावना इस दुनिया में कुछ नहीं होता।
उस झोपड़ी के अंदर , उस कुटिया के अंदर एक स्त्री का शरीर फैला हुआ था , हां बिना मुंडी का, बिना सर का बाकि शरीर फड़फड़ा रहा था , छटपटा रहा था , जैसे उसमे अभी भी ज़ीने की उम्मीद हो. वहाँ पे रहने वाले सभी जंगली थे , फिर भी उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी , इतना खौफनाक मंज़र था , पूरा बदन उस स्त्री का फड़फड़ा रहा था , गर्दन की जगह से खून बह रहा था. जो निडर थे वही देख पा रहे थे कुछ पल छटपटाने के बाद छटपटाहट रुक गयी जिस्म ठंडा पड गया , धीरे धीरे बातें होने लगी, शोर बढ़ता गया लेकिन अभी सामने जो मसला था वो पहले हल करना जरूरी था , उस स्त्री का अंतिम संस्कार करना जरूरी था , जिसने मारा उसे बाद मे ढूंढा जायेगा , ये तय करके सब लोग तैयारी में जुट गए.
थोड़ी दुरी पर चीता बनायीं गयी और उस बेजान शरीर को अग्नि के स्वाधीन किया गया , थोड़ी ही देर में चीता की अग्नि बढ़ गयी , सब लोग पीछे खिसक गए , और तभी वातावरण में , उस भयानक माहौल में , एक कलेजा चीरने वाली चीख सुनाई दी , और क्या हुआ ? यह देखने के लिए सब उस और भागे.....
यह त्यौहार शहरो मे गाँओ मे धुमधाम से मनाया जाता है .खास करके शहरों में देर रात तक लोग घूमते रहते है.गाओ में थोड़ी रात होने तक चहलकदमी रहती है.,लेकिन दस से ग्यारह बजे तक पुरे गाँओ मे सन्नाटा छा जाता है.पूरा गांव नींद में खो जाता है.
लेकिन ........ एक गांव में.... कोई था, जो दिन ढ़लनेका इंतजार कर रहा था, रात होने का इंतजार कर रहा था. जैसे ही रात का सन्नाटा छा गया, रात गहरी होती गयी ,वह हाथ में लालटेन लेके निकल गया. उजाला काफी कम था ,उतनाही जिससे वो चलते वक़्त निचे देख सके. पैरो को जैसे आदत सी थी,वो अपने आप जंगल की और बढ़ रहे थे.
हां जंगल की और, उस गांव के पास में ही घना जंगल था ,जहाँ दिन में जानेसे डर लगे, वहा ये रात में बेफिक्र होके जा रहा था. अन्धकार ,घना अन्धकार ,पाव के नीचे आने वाले पत्तोकी ,टहनिओ की चरमराहट ,पत्तो की सांय सांय , कुछ पंछियो की फड़फड़ाहट ,माहौल को खौफनाक बनाने में सक्षम थी. इसकी आहट से बंदर उछल-कूद कर रहे थे. पूरा जंगल जैसे जाग गया था, जैसे-जैसे ये आगे बढ़ता इसके पीछे ख़ामोशी छा जाती ,लेकिन इन सब बातो का उस व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था. जैसे इन सबकी उसे आदत थी ,जैसे कुछ होने वाला था, जिसकी उसे कल्पना थी ,जानकारी थी, कुछ ठान के निकला था. उसकी गति और बढ़ गई. गर्द झाडियो मे जाके वो गुम हो गया.
और...... थोडीही देर में रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली ,जिसकी गूंज पुरे जंगल में गुंजी. तो एक बार जंगल फिर जाग गया.और थोडीही देर में फिर ख़ामोशी छा गयी, जानलेवा ख़ामोशी,सन्नाटा! कुछ ही पल में झाड़ियो में किसीकी आने की आहट सुनाई दी.
लेकिन इस बार उस आहट में कोई जल्दबाजी नहीं थी.धीरे धीरे शांतिपूर्वक अपना काम पूरा होने की तसल्ली जैसे उसे मिल गयी थी. पैरोकि आहट धीरे धीरे नजदीक आने लगी और हाथ में लालटेन लिये वो सामनें आ गया. सामने का दॄश्य किसी भी साधारण आदमी की धड़कने रोकने के लिए पर्याप्त था. कितना भी हिम्मतवाला क्यूँ न हो ,उसके पसीने छूट जाते.
हाँ ,क्योकि उस व्यक्ति के एक हाथ में किसी स्त्री का सर था.हाँ उस स्त्री के सर के बाल उस व्यक्ति के हाथ में थे. उसकी मुंडी से लगातार खून बह रहा था. आँखे खुली की खुली थी. जो इतने अँधेरे में भी किसी का होश उड़ा सकती थी. और उसका धड़ ? बाकि जिस्म? मतलब इतने आसानी से इसने? ... बाप रे बाप !
कुछ ही देर में शोर सुनाई देने लगा. भागम भाग शुरू हो गई. झाडियो के पीछे से लोगो की भागने की आवाज़े आने लगी. वैसे इस व्यक्ति की गति बढ़ गयी. कुछ ही पल में वो भागने लगा.,जैसेउसे मालूम था. कहा जाके रुकना है. वहा जाके उसने लालटेन बुझादी, और अँधेरे में गायब हो गया.
झाडियो के पीछे छोटी सी बस्ती थी,जहांसे लोग हाथ में हथियार लिए जंगल में ढूंढने लगे. लेकिन वह किसीके हाथ नहीं लगा. धीरे धीरे गुस्से की जगह निराशा ने ली. निराशा की जगह लोगो के चेहेरे पे दुखद भाव आने लगे. और वो अपनी बस्ती की और मुड गए. उस छोटीसी बस्ती की एक झोपड़ी मे यह भयानक घटना घटी थी.
इंसान का शरीर! जब तक उसमे जान होती है न, कितना सुन्दर दिखता है , उस वक़्त वह दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज होती है , जिस पर अनगिनत कविताएं , गीत लिखे जाते है , लेकिन जब उस शरीर में जान ही न रहे तो उससे ज्यादा डरावना इस दुनिया में कुछ नहीं होता।
उस झोपड़ी के अंदर , उस कुटिया के अंदर एक स्त्री का शरीर फैला हुआ था , हां बिना मुंडी का, बिना सर का बाकि शरीर फड़फड़ा रहा था , छटपटा रहा था , जैसे उसमे अभी भी ज़ीने की उम्मीद हो. वहाँ पे रहने वाले सभी जंगली थे , फिर भी उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी , इतना खौफनाक मंज़र था , पूरा बदन उस स्त्री का फड़फड़ा रहा था , गर्दन की जगह से खून बह रहा था. जो निडर थे वही देख पा रहे थे कुछ पल छटपटाने के बाद छटपटाहट रुक गयी जिस्म ठंडा पड गया , धीरे धीरे बातें होने लगी, शोर बढ़ता गया लेकिन अभी सामने जो मसला था वो पहले हल करना जरूरी था , उस स्त्री का अंतिम संस्कार करना जरूरी था , जिसने मारा उसे बाद मे ढूंढा जायेगा , ये तय करके सब लोग तैयारी में जुट गए.
थोड़ी दुरी पर चीता बनायीं गयी और उस बेजान शरीर को अग्नि के स्वाधीन किया गया , थोड़ी ही देर में चीता की अग्नि बढ़ गयी , सब लोग पीछे खिसक गए , और तभी वातावरण में , उस भयानक माहौल में , एक कलेजा चीरने वाली चीख सुनाई दी , और क्या हुआ ? यह देखने के लिए सब उस और भागे.....
THE END
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लेखक :योगेश वसंत बोरसे
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